दिल्ली विधानसभा चुनाव के अधिकतर नतीजे ‘आम आदमी पार्टी’ की तरफ़ जाते नज़र आ रहे हैं. साल 2015 में ऐतिहासिक जीत हासिल करने के बाद ‘आम आदमी पार्टी’ इस बार भी शानदार जीत की ओर बढ़ रही है. इस दौरान सभी उम्मीदवारों ने शानदार प्रदर्शन किया.
शुरूआती रुझानों में ‘आप’ के कुछ उमीदवारों ने पिछड़ने के बावजूद आख़िरी चरणों में बढ़त हासिल कर ली है. हालांकि, इस दौरान ‘बीजेपी’ के कुछ उम्मीदवारों ने उन्हीं टक्कर देने की कोशिश की लेकिन वो जीत के क़रीब नहीं पहुंच पाए. इस दौरान कांग्रेस के अधिकतर उम्मीदवार दूसरे नंबर पर भी नहीं आ सके. कई उम्मीदवार तो ‘जमानत जब्त’ के क़रीब हैं.
अक्सर चुनाव नतीजों के दौरान आपने ‘ज़मानत ज़ब्त’ शब्द काफ़ी सुना होगा. क्या आप जानते हैं ‘ज़मानत ज़ब्त’ का मतलब क्या होता है?
दरअसल, चुनाव लड़ने के लिए सभी प्रत्याशियों को पर्चा भरते वक्त एक निश्चित रक़म चुनाव आयोग में जमा करनी होती है. इसी राशि को चुनावी ज़मानत राशि कहते हैं. ये राशि कुछ मामलों में वापस दे दी जाती है, अन्यथा आयोग इसे अपने पास रख लेता है.
विधान सभा के लिए कितनी जमा राशि देनी होती है?
लोक प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 34(1)(ख) के अनुसार विधान सभा का निर्वाचन लड़ने वाले सामान्य प्रत्याशियों को 10,000 रुपए की प्रतिभूति राशि जमा करानी होती है, जबकि अनुसूचित जाति/अनुसूचित जनजाति के प्रत्याशियों को 5000 रुपए की प्रतिभूति राशि जमा करनी होती है.
किन प्रत्याशियों की ज़मानत राशि होती है ज़ब्त?
जब कोई प्रत्याशी किसी भी चुनाव क्षेत्र में पड़े कुल वैध वोट का छठा हिस्सा हासिल नहीं कर पाता है तो उसकी जमानत राशि ज़ब्त मानी जाती है. ऐसे में नामांकन के दौरान दी गई राशि उन्हें वापस नहीं मिलती. जैसे- अगर किसी सीट पर 1 लाख लोगों ने वोट दिया है और उम्मीदवार को 16666 से कम वोट हासिल हुए हैं तो उसकी ‘ज़मानत ज़ब्त’ मानी जाएगी.
किसे वापस मिलती है ज़मानत राशि?
1- जब किसी उम्मीदवार का नामांकन ख़ारिज हो जाता है या वह अपनी उम्मीदवार वापस ले लेता है तो यह राशि लौटा दी जाती है.
कहां जाता है ‘ज़मानत ज़ब्त’ का पैसा?
सभी हारे हुए यानि कि ‘ज़मानत ज़ब्त’ वाले प्रत्याशियों की जमानत राशि पैसों को इलेक्शन अकाउंट में जमा किया जाता है.