Footpath School: अनोखा है नीरजा का ‘फ़ुटपाथ स्कूल’, यहां ग़रीब बच्चे फ़ीस में देते हैं प्लास्टिक कचरा

Abhay Sinha

Neerja Saxena Footpath School Fees Plastic Waste: एक इंसान की छोटी सी कोशिश पूरे समाज में बड़ा बदलाव ला सकती है और इसके लिए शिक्षा से बेहतर दूसरा कोई माध्यम हो ही नहीं सकता है. गाज़ियाबाद की नीरजा सक्सेना कुछ ऐसा ही काम कर रही हैं. वो पिछले दो सालों से इंदिरापुरम में ‘फ़ुटपाथ स्कूल’ चला रही हैं, जहां ग़रीब बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ पर्यावरण बचाने की सीख भी मिलती है.

thebetterindia

अनोखे स्कूल की अनोखी फ़ीस

इस स्कूल का नाम है ‘नीरजा की फ़ुटपाथशाला’. क़रीब 40 बच्चे यहां पढ़ते हैं. यहां शिक्षा के साथ-साथ बच्चों को खाना, Uniform और Stationary जैसी चीजें भी मिलती हैं. हालांकि, ये सब मुफ़्त में नहीं है, बल्क़ि इसके लिए स्पेशल फ़ीस देनी पड़ती है. ये स्पेशल फ़ीस पैसा-रुपया नहीं, बल्क़ि ‘वेस्ट प्लास्टिक’ है.

नीरजा सक्सेना बड़े बच्चों से महीने में चार ईको ब्रिक्स लेती हैं, और छोटे बच्चों से 2 Eco Bricks. ये उनकी पहल का ही नतीजा है कि अब तक इन बच्चों ने 4000 ईको ब्रिक्स बनाकर सैकड़ों किलो प्लास्टिक वेस्ट को लैंडफिल में जाने से बचाया है.

thebetterindia

इस तरह NTPC की रिटायर अधिकारी नीरजा सक्सेना ग़रीब बच्चों को शिक्षित करने के साथ-साथ वातावरण से प्लास्टिक कचरे जैसे ज़हर को हटाने की भी कोशिश कर रही हैं.

लॉकडाउन में आया फ़ुटपाथ स्कूल का आइडिया

नीरजा लॉकडाउन में आसपास की बस्तियों में ग़रीब बच्चों को खाना बांटने जाती थींं. उस वक़्त उन्होंने नोटिस किया कि ये बच्चे खाना तो किसी तरह जुटा लेते हैं, लेकिन भविष्य बेहतर करने के लिए शिक्षा हासिल नहीं कर पाते. ऐसे में उन्होंने अपने खाली समय को इन बच्चों के लिए इस्तेमाल करना का फैसला किया. इसी सोच के साथ फुटपाथ स्कूल शुरू हुआ.

asianetnews

नीरज ने पहले इस स्कूल की फ़ीस 20 रुपये महीना रखी थी, मगर बच्चे उसे भी देने में सक्षम नहीं थे. ऐसे में नीरजा को पर्यावरण सुधार का आइडिया आया. तब उन्होंने बच्चों से फ़ीस के बदले प्लास्टिक वेस्ट लेना शुरू कर दिया.

नीरजा इन बच्चों को सलीके से रहना, पढ़ना और शिक्षा की अहमियत सिखा रही हैं. यही नहीं नीरजा बच्चों से पौधारोपण कार्यक्रम भी करवाती रहती हैं. नीरजा की इस शानदार कोशिश के कारण जो बच्चे कभी खुद कूड़ा फैलाथे थे, वो अब किसी भी सड़क या चैराहे पर पड़ा प्लास्टिक झट से उठा लेते हैं.

नीरजा ने अपने ‘फ़ुटपाथ स्कूल’ से पर्यावरण और बच्चों, दोनों का भविष्य सुरक्षित कर रही हैं.

ये भी पढ़ें: Khan Chachi: 92 साल की उम्र में पढ़ना सीख कर मिसाल बनीं ‘ख़ान चाची’, रोज़ जाती हैं स्कूल

आपको ये भी पसंद आएगा
कौन हैं Apala Mishra जिन्होंने UPSC इंटरव्यू में सबसे अधिक अंक हासिल कर तोड़े सारे रिकॉर्ड्स