ये है बांग्लादेश का ‘ताजमहल’ जिसे ‘गरीबों का ताजमहल’ भी कहा जाता है, दिलचस्प है इसके बनने की कहानी

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आगरा स्थित ताजमहल (Taj Mahal) विश्व धरोहर और दुनिया के 7 अजूबों में से एक है. इसका निर्माण 17वीं सदी में मुग़ल सम्राट शाहजहां ने अपनी पत्नी मुमताज़ महल की याद में करवाया था. ताजमहल मुग़ल वास्तुकला का एक उत्कृष्ट नमूना है. इसकी वास्तु शैली में फ़ारसी, तुर्क, भारतीय और इस्लामी वास्तुकला का अनोखा मेल देखने को मिलता है. सन 1983 में ‘ताजमहल’ को युनेस्को ने विश्व धरोहर दर्ज़ा दिया था. ताजमहल का निर्माण सन 1648 में हुआ था. इसके निर्माण में लगभग 22 वर्ष लगे थे. इसे उस्ताद अहमद लाहौरी ने डिज़ाइन किया था.

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भारत समेत दुनिया के कई देशों में ताजमहल जैसा दूसरा अजूबा बनाने की कई कोशिशें हुई, लेकिन इस जैसा न कभी बना, न ही कभी बनेगा. ऐसी ही एक कोशिश बांग्लादेश में भी हुई थी. लेकिन जो नतीजा सामने आया उसे देख लोगों ने कहा ‘यो के देख लउ ताऊ’. बांग्लादेश में बने इस ताजमहल को ग़रीबों का ताजमहल भी कहा जाता है. इसे बनाने के पीछे एक ख़ास मक़सद था.

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5 साल में बनकर हुआ तैयार

भारत के ताजमहल की भव्यता के सामने बांग्लादेश के ताजमहल की भव्यता कुछ भी नहीं है. बांग्लादेश की राजधानी ढाका से क़रीब 30 किलोमीटर दूर स्थित है. इसका निर्माण बांग्लादेशी फ़िल्म मेकर अहसानुल्लाह मोनी ने किया था. क़रीब 1.6 हेक्टेयर में फ़ैले इस अजूबे का निर्माणकार्य साल 2003 में शुरू हुआ था. साल 2008 में 5 साल में बनकर तैयार होने वाले बंगलादेशी ताजमहल को बनाने में 58 मिलियन डॉलर की लागत आई थी. इसे मार्च 2009 में जनता के लिए खोला था.

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क्यों कहा जाता है ‘ग़रीबों का ताजमहल’

बांग्लादेशी फ़िल्म मेकर अहसानुल्लाह मोनी मोहब्बत की निशानी ‘ताजमहल’ से बेहद प्रभावित थे. वो हमेशा से चाहते थे कि बांग्लादेशी नागरिक इस अद्भुत संरचना को ज़िंदगी में एक बार ज़रूर देखे. लेकिन भारत आकर इसे देख पाना हर आम इंसान के लिए इतना आसान नहीं था. ऐसे में अहसानुल्लाह ने अपनी ज़िंदगी भर की कमाई से बांग्लादेश में ही ‘ताजमहल’ बना डाला. आज बांग्लादेश में इसे कम आय वाले परिवारों के लिए एक प्रमुख पर्यटन स्थल के रूप में देखा जाता है.

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भारतीय उच्चायोग ने तब इसे भारत के संभावित ‘ताजमहल’ के कॉपीराइट उल्लंघन को लेकर चिंता व्यक्त की थी.

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