औरतें चाह लें तो क्या नहीं कर सकती हैं. आज का दौर इस बात का गवाह है. महिलाएं न सिर्फ़ ख़ुद सफलता की नयी-नयी इबारत लिख रही हैं, बल्क़ि आदमियों को भी सफल बनाने के लिए एड़ी से चोटी तक का जोर लगा देती हैं. बिहार के जमुई जिले के रहने वाले जीतेंद्र शार्दुल इस बात का जीता-जागता उदाहरण हैं.
जीतेंद्र को पढ़ाने के लिए पत्नी संजना कुमारी ने अपने गहने और बर्तन तक बेच डाले. जिसकी बदौलत जीतेंद्र सरकारी टीचर बन गए. वहीं, संजना ने ख़ुद भी मेहनत के दम पर सरकारी नौकरी हासिल कर ली है.
आइए बताते हैं आपको इस कपल के संघर्ष की प्रेरणादायक कहानी-
बेरोजगार युवक से हुई संजना की शादी
संजना की शादी जीतेंद्र से साल 2003 में हुई थी. ग़रीब परिवार से ताल्लुक रखने वाले जीतेंद्र ने मैट्रिक पास की थी, मगर वो बेरोज़गार थे. संजना के पिता बिजली विभाग में लाइन इंस्पेक्टर के पद पर मुंगेर में कार्यरत थे. उनका कोई बेटा नहीं था. उन्होंने जीतेंद्र शार्दुल से घर जमाई बनने की बात कही, लेकिन जीतेंद्र ने मना कर दिया.
जीतेंद्र ने बताया कि जब वो 10वीं क्लास में थे, तब उनके पिता का निधन हो गया. उसके बाद परिवार की आर्थिक स्थिति खराब हो गयी. ऐसे में पढ़ाई छोड़ कर मज़दूरी करनी पड़ी.
पति को पढ़ाने के लिए बेच दिए गहने
परिवार के कमज़ोर आर्थिक हालात के कारण जीतेंद्र चाहते हुए भी नहीं पढ़ पा रहे थे. संजना भी शादी के समय हाईस्कूल पास थीं. मगर उन्होंने जीतेंद्र को पढ़ाने के लिए अपने जेवर तक बेच डाले. यहां तक कि घर के कुछ तांबे और पीतल के बर्तन भी बेच डाला, जो वो मायके से लेकर आई थीं.
जीतेंद्र ने बताया कि एक समय ऐसा भी आया जब घर में पूरा खाना नहीं था. संजना उन्हें खाना देकर खुद भूखे सो जाती थी. उस समय बहुत मुश्किल दौर से गुज़रना पड़ा था.
संजना और जीतेंद्र अपने संघर्ष के दिनों को याद करते हुए इमोशनल हो जाते हैं. जीतेंद्र ने कहा, ‘कभी-कभी घर में खाना पकाने के लिए चूल्हे की जलावन नहीं होती थी. मां सड़क पर फेंकी हुई चप्पलों और प्लास्टिकों की मदद से चूल्हा जलाकर खाना पकाती थीं. तब जाकर रोटी नसीब होती थी.’
पति-पत्नी दोनों को मिली सरकारी नौकरी
भले ही कितना संघर्ष करना पड़ा हो, लेकिन जीतेंद्र और संजना ने हार नहीं मानी. संजना के त्याग और जीतेंद्र की मेहनत साल 2007 में रंग लाई. जीतेंद्र सरकारी टीचर बन गए. वो वर्तमान में जमुई प्रखंड के कल्याणपुर मध्य विद्यालय में शिक्षक के पद पर कार्यरत हैं.
वहीं संजना ने भी अपनी पढ़ाई जारी रखी और मेहनत के दम पर साल 2014 में सरकारी नौकरी हासिल करने में कामयाब रहीं. वर्तमान में संजना खैरा प्रखंड में आवास सहायिका के पद पर कार्यरत हैं.
सही कहते हैं कि ‘हर सफल आदमी के पीछे एक औरत का हाथ होता है.’
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