Tokyo Olympic में नीरज चोपड़ा ने भारत को इकलौता गोल्ड मेडल जीताया था. ट्रैक एंड फ़ील्ड इवेंट में वो स्वर्ण पदक जीतने वाले पहले भारतीय भी हैं. मगर वो पहले भारतीय नहीं हैं जिन्होंने भाला फेंक(जेवलिन थ्रो) में स्वर्ण पदक जीता है. उनसे पहले देवेंद्र झाझड़िया(Devendra Jhajharia) एक नहीं ,दो बार पैरालंपिक गेम्स में गोल्ड मेडल (Gold Medal) जीत चुके हैं.
8 साल की उम्र में खोया था अपना हाथ
कहते हैं कुछ लोग होते हैं जो सफ़लता की ऊंचाइयों को छूने के लिए बने होते हैं फिर चाहे कितनी ही बाधाएं क्यों न आ जाएं वो इतिहास रच कर ही दम लेते हैं. ऐसे ही लोगों में से एक हैं देवेंद्र झाझड़िया जिन्होंने बचपन में बिजली की चपेट में आकर अपना एक हाथ खो दिया था.
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मगर एक हाथ न होने की कमी भी उनके अंदर के खिलाड़ी को मार न सकी. वो निरंतर प्रयास करते रहे और एक ऐसे खेल की तलाश में जुट गए जिसमें बस एक ही हाथ की ज़रूरत हो. उनकी तलाश जैवलिन थ्रो(Javelin Throw) पर जाकर ख़त्म हुई. लोगों ने लाख कहा कि उनसे न हो पाएगा पर देवेंद्र ने हार नहीं मानी.
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2016 रियो पैरालंपिक गेम्स में बनाया 63.97 मीटर का विश्व रिकॉर्ड
उन्होंने बांस का भाला बनाकर इसकी प्रैक्टिस करना शुरू की थी. फिर आया वो दिन जब देवेंद्र ने एक हाथ से इतिहास रच दिया. देवेंद्र ने 2004 के एथेंस पैरालंपिक गेम्स में पहला स्वर्ण पदक जीता. इसके बाद 2016 में रियो पैरालंपिक गेम्स में 63.97 मीटर के विश्व रिकॉर्ड के साथ गोल्ड हासिल किया. वो भारत के एकमात्र पैरालंपिक खिलाड़ी हैं जिनके नाम एथलेटिक्स (पुरुष भाला फेंक) में 2 स्वर्ण पदक हैं.
पद्मश्री से सम्मानित होने वाले पहले पैरा एथलीट
यही नहीं वो पहले पैरा एथलीट हैं जिन्हें पद्मश्री से सम्मानित किया गया है. देवेंद्र राजस्थान के चुरू ज़िले के रहने वाले हैं. फ़िलहाल वो टोक्यो पैरालंपिक 2020 की तैयारियों में जुटे हैं. भारत के इस लाल को उम्मीद है कि वो इस बार फिर से अपना ही वर्ल्ड रिकॉर्ड तोड़ 69 मीटर तक भाला फेकेंगे. अगर ऐसा हुआ तो इस इवेंट में भारत का तीसरा गोल्ड पक्का है.
बेस्ट ऑफ़ लक देवेंद्र झाझड़िया.