अभी हाल ही में भारत ने Deaf T20 World Cup की मेज़बानी की थी और इसमें भारतीय टीम फ़ाइनल तक पहुंची थी. हालांकि, इंडिया की टीम फ़ाइनल में श्रीलंका से 36 रन से हार गई थी, लेकिन क्या आपको पता था कि इंडिया में ऐसा कोई वर्ल्ड कप खेला गया था. नहीं न, पता भी कैसे होगा जब न ही मीडिया ने इसको कवर किया और न ही BCCI की तरफ़ से इसके बारे में कोई जानकारी या प्रेस कॉन्फ़्रेंस की गई. और अगर की भी गई तो उसको उतना फ़ुटेज नहीं मिला, इतना बॉलीवुड सेलेब्स की शादी को मिला. ख़ैर, यहां हम न ही मीडिया और न ही BCCI की किसी आलोचना कर रहे हैं.
बल्कि आज हम आपको खेल जगत की ऐसी ही एक ख़बर से रू-ब-रू करवाने जा रहे हैं कि कैसे इंडिया में क्रिकेट के अलावा बाकि अधिकतर खेलों और उनके खिलाड़ियों को किन समस्याओं का सामना करना पड़ता है. ये मामला जुड़ा है उत्तर प्रदेश में आयोजित हुई नेशनल चैंपियनशिप में हिस्सा लेने आये महाराष्ट्र के रेसलर्स से. इन रेसलर्स को ट्रेन की टिकट कंफ़र्म न होने की वजह से मजबूरन जनरल बोगी में टॉयलेट के पास बैठकर यात्रा करनी पड़ी. उत्तर प्रदेश से मुंबई तक का 30-35 घंटों का ये सफ़र इन चैंपियन खिलाड़ियों ने ऐसे ही तय किया.
नवभारत टाइम्स के अनुसार, हुआ यूं कि उत्तर प्रदेश के गोंडा के नंदिनीनगर में आयोजित हुई नेशनल चैंपियनशिप में महाराष्ट्र के रेसलर्स भाग लेने आये थे, और जब चैंपियनशिप ख़त्म हुई और वो अपने घर लौट रहे थे, तो उनको पता चला कि उनकी ट्रेन की टिकट कन्फ़र्म नहीं हुई है और टीसी से बात करने के बाद भी उनको कोई मदद नहीं मिली और उनको टॉयलेट के पास बैठकर 30-35 घंटो की लम्बी दूरी तय करनी पड़ी. हैरानी की भारत तो ये है कि उन खिलाड़ियों में कुछ महिला खिलाड़ी भी थीं और उनको भी सीट नहीं मिली. गौरतलब है कि इस चैंपियनशिप में महाराष्ट्र से आये इन खिलाड़ी ने 1 गोल्ड सहित कुल 5 पदक जीते हैं.
आपको बता दें कि महाराष्ट्र के इन चैंपियंस की लौटने की टिकट साकेत एक्सप्रेस में कराई गयीं थीं, और इनको ये ट्रेन फ़ैजाबाद से पकड़नी थी. पर स्टेशन पहुंचने के बाद इन प्लेयर्स को पता चला कि उनकी सीट कन्फ़र्म नहीं हुई हैं. तब उन्होंने टीसी से बात करने की कोशिश की और पूरी बात बताई, पर टीसी ने उनको ही डांट दिया. जिसके बाद मजबूरन खिलाड़ियों को इस तरह घोंटों लंबा सफ़र करना पड़ा.
फ़ेडरेशन की मेहरबानी देखिये कि खुद तो प्लेन और एसी ट्रेन से अपने गंतव्य तक पहुँच गए और राज्य के लिए मैडल जीतने वाले इन खिलाड़ियों को टिकट कन्फ़र्म न होने के चलते हुई असुविधा और परेशानियों के एवज में 400-500 रुपये का भुगतान कर दिया. सोचनीय है कि वर्तमान में नॉर्मल स्टैंडर्स के हिसाब से उनको हुई परेशानियों के लिए 400-500 रुपये बहुत कम राशि है. क्या इन खिलाड़ियों को ये रक़म देना जायज़ है. इस घटना से आहात इन रेसलर्स ने फ़ेडरेशन से सवाल किया है कि वो वक़्त कब आएगा जब इन परिस्थियों से निपटने के लिए असोसिएशन हम जैसे खिलाड़ियों को पर्याप्त धनराशि देगा? आखिर ऐसा कब होगा जब असोसिएशन खिलाड़ियों को ऐसे हालात से निपटने के लिए पर्याप्त पैसा मुहैया कराएगा?
गौरतलब बात ये है कि जब इन खिलाड़ियों का टिकट कन्फ़र्म नहीं हुआ था, तो इसकी जानकारी इनको पहले से क्यों नहीं दी गई, और उनके जाने के लिए कोई दूसरी व्यवस्था क्यों नही हुई. किसी अधिकारी ने इनकी कोई ख़बर नहीं ली. वहीं एक ओर स्टेट रेसलिंग फ़ेडरेशन के अधिकारी हवाई जहाज़ या एसी ट्रेन में आराम से बैठकर अपने-अपने घर पहुंच गए. इतना पक्षपात क्यों किया गया इन खिलाड़ियों के साथ? क्या फ़ेडरेशन का फ़र्ज़ नहीं बनता था कि वो इनके आने-जाने की व्यवस्था को देखते?
अब यहां सवाल ये उठता है कि देश में क्रिकेट (धोनी और विराट कोहली वाला) के अलावा शायद ही किसी स्पोर्ट्स को इतना महत्व दिया जाता है पर क्यों? अन्य स्पोर्ट्स के खिलाड़ी भी तो अपने राज्य और देश के लिए खेलते हैं दिन-रात मेहनत करते हैं, फिर उनके साथ इतना भेदभाव क्यों किया जाता है? मगर उनको क्या मिलता है और अगर दूसरे खेलों के साथ इसी तरह पक्षपात होता रहेगा, तो कोई मां-पिता नहीं चाहेंगे कि उनके बच्चे क्रिकेट के अलावा कोई और खेल खेलें.