Tokyo Olympics: रेवती वीरामनी के लिए आसान नहीं थी ये डगर, बिना जूतों के करती थीं प्रैक्टिस

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Tokyo Olympics: रेवती वीरामनी! आप में से अधिकतर लोगों ने आज से पहले ये नाम सुना नहीं होगा, लेकिन अब ये नाम इंटरनेशनल लेवल पर सुनाई देगा. आज हम बात करने जा रहे हैं ‘Tokyo Olympics 2020’ में भारत का प्रतिनिधित्व करने जा रहीं एथिलीट रेवती वीरामनी की.

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बेहद मुश्किलों में बीता बचपन 

रेवती वीरामनी जब केवल 7 साल की थीं उनके माता-पिता का निधन हो गया था. उनकी नानी ने दिहाड़ी मज़दूरी करके रेवती का पालन-पोषण किया. रेवती को बचपन से ही खेलकूद में दिलचस्पी थी. वो स्कूल लेवल से ही दौड़ में अव्वल रहीं. रेवती बचपन से ही ओलंपिक में दौड़ लगाने का सपना देखा करती थीं. आज उनका ये सपना भी पूरा हो गया है, लेकिन मुकाम तक पहुंचने के लिए उन्होंने तमाम मुश्किलों का सामना किया है.

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दौड़ने के लिए नहीं थे जूते

23 वर्षीय रेवती की ज़िंदगी चुनौतियों से भरी रही. स्टेट लेवल की एथलीट बनने के बावजूद भी उनके पास दौड़ने के लिए जूते नहीं थे. बावजूद इसके वो नंगे पैर ही अपने ओलंपिक के सपने के लिए दौड़ती रहीं. रेवती ने पहले स्कूल लेवल पर कई मेडल जीते. इसके बाद स्टेट जूनियर और सीनियर लेवल पर भी कई मेडल अपने नाम किए. रेवती के इसी टेलेंट की बदौलत उन्हें देश के लिए खेलने का मौक़ा मिला.

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कोच ने बदल दी रेवती की ज़िंदगी 

साल 2014 में तमिलनाडु के ‘मदुरै सेंटर ऑफ़ स्पोर्ट्स डेवेलपेमेंट अथॉरिटी’ के कोच के. कनन एमजीआर रेस कोर्स स्टेडियम में 17 साल की रेवती को नंगे पांव दौड़ता देख हैरान रह गए. रेवती नंगे पांव किसी एक्सपीरियेंस एथलीट की तरह दौड़ रही थीं. इस दौरान वो रेस तो जीत नहीं सकी, लेकिन कोच कनन का दिल जीतने में क़ामयाब रहीं.

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इसके बाद कोच कनन ने रेवती को हर हाल में अच्छी ट्रेनिंग देने का फ़ैसला लिया. लेकिन रेवती की नानी शुरुआत में तैयार नहीं हुईं, उन्हें लगता था कि ट्रेनिंग काफ़ी महंगी होगी. रेवती की दादी के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वो अपने घर से ट्रेनिंग सेंटर तक जाने के लिए रोजाना 40 रुपये का किराया दे सके, लेकिन कोच कनन, रेवती को इंटरनेशनल एथलीट बनाने पर अड़े रहे.

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आख़िरकार कोच कनन की कोशिश रंग लाईं और रेवती की नानी मान गईं. इसके बाद कोच कनन ने न सिर्फ़ रेवती को फ़्री ट्रेनिंग देने का फ़ैसला किया, बल्कि उन्हें मदुरै के ‘लेडी डॉक कॉलेज’ में मुफ़्त दाखिला भी दिलवाया. कोच कनन ने रेवती को दौड़ने के लिए कई जोड़ी नए जूते भी दिए. लेकिन रेवती के लिए जूतों के साथ दौड़ लगान सबसे बड़ी चुनौती थी क्योंकि वो नंगे पांव दौड़ने में ही सहज थीं. हालांकि बाद में उन्होंने जूतों के साथ दौड़ना सीख लिया. 

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साल 2016 में रेवती की ज़िंदगी में सबसे बड़ा बदलाव आया. इस साल कोयंबटूर में उन्होंने 100मी, 200 मीटर और 4X100 मीटर रीले में जूनियर नेशनल में गोल्ड मेडल अपने नाम किया. साल 2019 तक रेवती को कोच कनन ने हो ट्रेनिंग दी. इसके बाद वो पटियाला शिफ़्ट गईं. यहां वो नेशनल कैंप का हिस्सा थीं.

पहले रेवती 100 मीटर और 200 मीटर के इवेंट में दौड़ती थीं, लेकिन बाद में 400 मीटर इवेंट में हिस्सा लेने लगी. इसका श्रेय भारत की 400 मीटर कोच गलिना बुखारीना को जाता है. साल 2019 में रेवती ने ‘इंडियन ग्रां प्रीं 5 ऐंड 6’ में 400 मीटर के इवेंट में जीत हासिल की. इस दौरान उन्होंने 54.44 और 53.63 सेकंड का समय निकाला.

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साल 2020 सीज़न पूरी तरह से कोरोना की भेंट चढ़ गया. साल 2021 में घुटने की चोट के कारण वो सीजन के शुरुआत दौर में भाग नहीं ले सकीं. चोट से उभरने के बाद रेवती ने पिछले महीने ‘इंडियन ग्रां प्री 4’ में 400 मीटर इवेंट में जीत हासिल कर वापसी की. इस दौरान 4×400 मीटर रीले के आख़िरी सेलेक्शन ट्रायल में रेवती ने 53.55 सेकंड का समय निकाला और टॉप पर रहीं.  

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कोच कनन की ज़िद्द और रेवती की मेहनत का नतीजा आज आप सबके सामने है. रेवती Tokyo Olympics 2020 में भारतीय 4×400 मिक्स्ड रीले टीम का हिस्सा होंगी. जब रेवती वीरामनी का नाम ‘टोक्यो ओलंपिक’ के लिए तय हुआ तो कुछ समय के लिए उन्हें विश्वास ही नहीं हुआ. उसकी आंखों के सामने ज़िंदगी का संघर्ष किसी फ़िल्म की तरह चलते लगा.

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