कहते हैं गुरू वो मोमबत्ती होती है, जो ख़ुद जलकर अपने शिष्यों को रौशनी देता है. शिष्य बनना सरल है लेकिन सभी गुरू नहीं बन पाते.
भारतीय क्रिकेट को भी रमाकांत आचरेकर के रूप में ऐसा ही गुरू मिला. मुंबइया लड़कों को क्रिकेट से मोहब्बत करना सिखाया रमाकांत आचरेकर ने. आचरेकर वो गुरू हैं, जिन्होंने विश्व क्रिकेट को सचिन तेंदुलकर दिया. ये कहना अतिश्योक्ति नहीं होगी कि अगर आचरेकर नहीं होते, तो सचिन ‘क्रिकेट के भगवान’ नहीं बन पाते.
न सिर्फ़ सचिन, आचरेकर ने भारतीय क्रिकेट को विनोद कांबली, प्रवीण अमरे और अजीत अगरकर जैसे खिलाड़ी भी दिए.
2 जनवरी 2019 को लंबी बीमारी के बाद 86 की उम्र में आचरेकर जी की उनके शिवाजी पार्क स्थित आवास में मृत्यु हो गई. सचिन, शिवाजी पार्क में ही गुरू आचरेकर से क्रिकेट के गुर सीखने आते थे.
बचपन में ही आचरेकर ने सचिन की प्रतिभा को भांप लिया था. युवा गेंदबाज़ों को स्टम्प्स पर सिक्के रखकर घंटों प्रैक्टिस करवाते थे आचरेकर.
आचरेकर स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया की तरफ़ से क्रिकेट खेलते थे. मुंबई के विकेटकीपर समीर दीघे के शब्दों में,
वो हर खिलाड़ी की Ability पता कर लेते थे- यही उनकी महानता थी. उन्हें पता था कि किसके लिए क्या काम करता है. वरना सचिन का Bottom Hand सर कभी का Change कर देते. लेकिन नहीं किया. उनको पता था कि Bottom Hand से खेल रहा है और बॉल ऊपर से जा रहा है. लेकिन उनको सचिन का Exact Ability पता था.’ उसी तरह उन्हें विनोद कांबली और लालचंद राजपूत की खूबियों का भी पता था… सभी अलग तरह के बल्लेबाज़ हैं.
दीघे ने आगे बताया,
उनका यही मानना था कि अच्छी बल्लेबाज़ी एक प्रोसेस है. आप रोज़ सुधार कर सकते हैं. वो बल्लेबाज़ों को मानसिक तौर पर सख़्त बनाते थे. सचिन नेट्स पर 100-150 मारते थे लेकिन आचरेकर जी तब भी उनकी ग़लतियां निकालते थे. ये आलोचना नहीं थी. वो बस सारी ग़लतियों को ख़त्म करना चाहते थे.
अमोल मज़ूमदार ने आचरेकर के लिए कहा,
जैसे सचिन और विराट के आने से ग्राउंड में खलबली मच जाती है, वैसे ही आचरेकर जी के ग्राउंड पर पहुंचने पर हलचल मच जाती थी. मैंने उन्हें कभी कोई छुट्टी लेते नहीं देखा.
अजीत अगरकर का कहना है,
मैंने जो भी हासिल किया है सब उन्हीं की बदौलत है. उनका सिर्फ़ एक सिद्धांत था, ‘आराम के लिए पूरी ज़िन्दगी पड़ी है, पर अभी कड़ी मेहनत करने का समय है.’ और इसके वो उदाहरण भी देते थे, सबसे पहले ग्राउंड पर पहुंचते थे और सबसे आख़िर में जाते थे. हम उन्हें देखकर सोचते थे वो करते हैं तो हम क्यों नहीं?
आचरेकर कभी किसी खिलाड़ी को फ़ीस न देने के लिए नहीं टोकटे थे. खिलाड़ियों के खाने-पीने का ख़र्च वे ख़ुद उठाते थे. 5 बेटियां होने के बावजूद वो खिलाड़ियों को अपने बच्चों जैसा ही देखते थे.
सिडनी टेस्ट के पहले दिन भारतीय बल्लेबाज़ों ने काला आर्मबैंड पहना. ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज़ों ने भी काला आर्मबैंड पहना. बल्लेबाज़ बिल वॉटसन को श्रद्धांजलि देने के लिए काले आर्मबैंड पहने थे.
आचरेकर जैसा गुरू हो तभी सचिन जैसा खिलाड़ी निर्मित होता है. आचरेकर की कमी भारत ही नहीं, विश्व क्रिकेट हमेशा महसूस करेगा.