1999 में इंग्लैंड में हुए विश्व कप के दौरान सचिन तेंदुलकर के पिता का निधन हो गया था. टीम इंडिया पर दक्षिण अफ़्रीका और ज़िम्बाब्वे से मैच हारने के बाद विश्व कप से बाहर होने का खतरा मंडराने लगा था. लेकिन सचिन ने अपने पिता के अंतिम संस्कार के बाद केन्या के खिलाफ़ 140 रन ठोक साबित कर दिया था कि वो किस मिट्टी के बने हैं.
सात सालों बाद 2006 में टीम इंडिया के नए ‘सचिन’, यानि विराट कोहली ने भी अपनी मानसिक क्षमताओं का परिचय दे दिया था. 2006 में 18 साल के विराट दिल्ली की रणजी टीम का हिस्सा थे और कर्नाटक के खिलाफ़ दिल्ली की टीम संकट में थी. मैच के तीसरे दिन, सुबह 3 बजे कोहली के पिता का देहांत हो गया था. इस सदमे से उबरते हुए कोहली ने न केवल 90 रनों की पारी खेली थी, बल्कि दिल्ली को इस मैच में संकट से बाहर भी ले आए थे.
11 सालों बाद एक बार फिर मानसिक मज़बूती और अद्भुत कमिटमेंट का उदाहरण क्रिकेट की पिच पर देखने को मिला. दिल्ली डेयरडेविल्स के युवा विकेटकीपर, रिषभ पंत ने अपने पिता के निधन के बावजूद IPL में रॉयल चैलेंजर्स बंगलोर के खिलाफ़ शानदार पारी खेली.
4 अप्रैल को ही रिषभ के पिता राजेंद्र पंत का असामयिक निधन Cardiac Arrest की वजह से हुआ था. अंतिम संस्कार के लिए उन्हें टीम का साथ छोड़कर रुड़की जाना पड़ा था. पिता की इस तरह अचानक मौत पंत के लिए बड़ा झटका थी, लेकिन इस खिलाड़ी ने अपनी मनोस्थिति को बखूबी नियंत्रित किया. पिता का अंतिम संस्कार करके वे वापस लौटे और अपनी टीम के लिए 36 गेंदों में 57 रनों की पारी खेली, हालांकि कई प्रयासों के बावजूद वे अपनी टीम को जीत नहीं दिला पाए.
उनकी इस साहसिक पारी को सोशल मीडिया पर जमकर सराहना मिल रही है और हम भी उनके हौसले को सलाम करते हैं.