इंडियन क्रिकेट टीम का वो कप्तान, जिसने टीम इंडिया को सिखाया था विदेशी धरती पर जीतना

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साल 1998-99 का वो समय जब भारतीय क्रिकेट टीम बुरे दौर से गुज़र रही थी. उस वक़्त टीम इंडिया के कप्तान थे मास्टर ब्लास्टर सचिन तेंदुलकर. कप्तान और बल्लेबाज़ के तौर पर सचिन लगातार असफ़ल हो रहे थे. इसी दौरान टीम के आधे से ज़्यादा खिलाड़ियों पर मैच फ़िक्सिंग के आरोप लगने से टीम मुश्किल में घिर चुकी थी. इन्हीं सब मुश्किलों के बाद सचिन ने कप्तानी छोड़ दी.

कैसे बने दादा कप्तान?

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बीसीसीआई मुश्किल में था कि इस कठिन समय में टीम की अगुवाई कौन करेगा? इस बीच बोर्ड ने जब कप्तानी को लेकर सौरव गांगुली से बात की, तो उन्होंने कप्तानी के इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया. साल 2000 में टीम इंडिया का कप्तान प्रिंस ऑफ़ कोलकाता, सौरव गांगुली को बनाया गया. उस समय दादा के सामने मुश्किल ये थी कि टीम के कुछ प्रमुख खिलाड़ी या तो फ़ॉर्म में नहीं थे या फिर मैच फ़िक्सिंग के आरोप में घिरे थे. ऐसे में दादा ने पुराने खिलाड़ियों के बजाय नए खिलाड़ियों जैसे हरभजन सिंह, युवराज सिंह, ज़हीर खान, मोहम्मद कैफ़, वीरेंद्र सहवाग, महेंद्र सिंह धोनी और इरफ़ान पठान पर भरोसा दिखाकर उनको ज़्यादा से ज़्यादा मौके दिए. इस दौरान गांगुली ने कम समय में ही सीनियर और जूनियर खिलाड़ियों को लेकर एक मज़बूत टीम बनायी.

दादा ने सिखाया टीम इंडिया को विदेशी धरती पर जीतना

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बस यहीं से शुरू हुआ टीम इंडिया का स्वर्णिम युग. इस बीच दादा ने अपनी आक्रामक कप्तानी के दम पर भारत को विदेशों में जीतना सिखाया. इस दौरान दादा ने खिलाड़ियों को आक्रामक होकर खेलना सिखाया. इस दौरान उन्होंने अपने मन मुताबिक टीम चुनी, जिस खिलाड़ी को टीम में खिलाया वो उनकी उम्मीद पर खरा भी उतरा. टीम इंडिया इस समय तक पूरी दुनिया में अपनी दहशत क़ायम कर चुकी थी. साल 2002 इंग्लैंड में नेटवेस्ट सीरीज़ की जीत भला कौन भूल सकता है.

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टीम इंडिया ने दक्षिण अफ़्रीका, ज़िम्बाब्वे और कीनिया की अगुवाई में साल 2003 वर्ल्ड कप में आगाज़ किया. भारत ने पूरी सीरीज़ के दौरान शानदार खेल दिखाया और टीम फ़ाइनल तक पहुंची. भले ही टीम इंडिया फ़ाइनल में ऑस्ट्रेलिया से बुरी तरह हार गयी. लेकिन दादा की इस टोली ने इसके बाद पीछे मुड़कर नहीं देखा. भारत लगातार विदेशी दौरों पर अच्छा प्रदर्शन करता रहा. उनके शानदार प्रदर्शन को देखते हुए सरकार ने गांगुली को सन 2004 में पद्मश्री से भी सम्मानित किया.

क्या था गांगुली-चैपल विवाद?

साल 2005 तक गांगुली भारत के सबसे सफ़ल कप्तान भी बन गए. जॉन राईट की कोचिंग में टीम इंडिया लगातार अच्छा प्रदर्शन कर रही थी. साल 2005 में जॉन राईट का कार्यकाल समाप्त हो गया और टीम इंडिया के नए कोच नियुक्त किये गए ग्रेग चैपल. बस यहीं से भारतीय क्रिकेट और सौरव गांगुली का बुरा दौर शुरू हुआ. चैपल ने कोच बनते ही पहले विदेशी दौरे से ही मनमानी शुरू कर दी.

सितम्बर 2005 ज़िम्बाब्वे में खेले जा रहे एक टेस्ट मैच के दौरान कप्तान गांगुली ने शानदार शतक बनाया. लेकिन इनिंग ख़त्म होने के बाद शाम को चैपल ने गांगुली को कप्तानी से इस्तीफ़ा देने की बात कह दी. बस यहीं से इन दोनों के बीच विवाद शुरू होने लगे. टीम अचानक बिख़रने लगी. दादा और चैपल के बीच लगातार विवाद होने लगे. चैपल नहीं चाहते थे कि गांगुली कप्तान रहें. इसलिए उन्होंने बोर्ड से राहुल द्रविड़ को कप्तान बनाये जाने की मांग रखी.

विवाद बढ़ता गया और अंततः गांगुली को कप्तानी से हटा दिया गया. खिलाड़ी के तौर पर इस विवाद का असर गांगुली की बैटिंग में भी दिखा. उनके प्रदर्शन में लगातार गिरावट आने की वजह से दादा एक साल तक टीम से बाहर भी रहे. घरेलू क्रिकेट में अच्छा प्रदर्शन करने के बाद साल 2006 में दादा ने राष्ट्रीय टीम में वापसी की और बेहतरीन प्रदर्शन कर टीम में जगह पक्की की. इसी बीच कोच ग्रेग चैपल और गांगुली के बीच विवाद और बढ़ गए. दादा को एक बार फिर टीम से निकाल दिया गया, पर 2007 विश्व कप के लिए टीम में चुने गए. द्रविड़ की कप्तानी में भारत इस विश्व कप के लीग मुक़ाबले से ही बाहर हो गया था.

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पूर्व कोच ग्रेग चैपल ने अपनी आत्मकथा में पूर्व कप्तान गांगुली के बारे में कहा कि टीम में उनके जैसा दहशत पैदा करने वाला कोई दूसरा नहीं था.

इस दौरान सचिन-सौरव की जोड़ी ने बोर्ड के समक्ष धोनी को टी-20 टीम की कमान सौंपने का प्रस्ताव रखा. इन दोनों की बदौलत ही धोनी को साल 2007 में भारत की टी-20 टीम का कप्तान बनाया गया. कप्तान बनते ही धोनी ने भारत को टी-20 चैंपियन भी बना दिया. यहीं से भारतीय टीम का एक नया दौर शुरू हुआ.

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जब धोनी ने दादा को सौंप दी टीम की कमान

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सौरव गांगुली ने अपनी आत्मकथा में कहा है कि वो सालों से ऐसे खिलाड़ी को देख रहे हैं, जो दबाव में टीम को संभालना और मैच का रूख पलटने की क्षमता रखता है. धोनी मुझे ऐसे ही खिलाड़ी लगे हैं. मैं पहले दिन से ही धोनी के खेल से प्रभावित हो गया था. 

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अपनी किताब में दादा ने साल 2008, नागपुर में ऑस्ट्रेलिया के ख़िलाफ़ खेले गए अपने आख़िरी टेस्ट का ज़िक्र करते हुए कहा कि ‘धोनी ने मुझे उस मैच का नेतृत्व करने का ऑफ़र दिया था, लेकिन मैंने मना कर दिया था. जब मैच रोमांचक होने लगा, तो धोनी ने एक बार फिर मुझे टीम का नेतृत्व करने को कहा. लेकिन इस बार मैं उन्हें मना नहीं कर पाया और टीम की कमान संभाल ली.’ उस मैच में भारत ने ऑस्ट्रेलिया को 172 रन से करारी मात दी थी.

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