मीर सुल्तान ख़ान: कहानी एशिया के पहले ‘Grandmaster’ की, जिसे कहा जाता था शतरंज का जीनियस

Nripendra

Story of Mir Sultan Khan in Hindi: भारत में स्पोर्ट्स भले ही वर्तमान की तरह उतना लोकप्रिय और मज़बूत न रहो हो, लेकिन भारतीय खेल इतिहास से जुड़े ऐसे कई क़िस्से और फ़ैक्ट्स मौजूद हैं, जो आपको गर्व ज़रूर महसूस कराएंगे. भारत के खेल इतिहास पर नज़र डालें, तो पता चलेगा कि कई ऐसे भारतीय खिलाड़ी रहे, जिन्होंने न सिर्फ़ देश बल्कि विदेश में भी भारत का नाम रोशन किया. एक ऐसे ही खिलाड़ी के बारे में हम आपको बताने जा रहे है, जिसे शतरंज का जिनियस कहा जाता था और जिसे एशिया के पहले ‘Grandmaster’ का ख़िताब अपने नाम किया. 

आइये, विस्तार से जानते हैं मीर सुल्तान ख़ान (Story of Mir Sultan Khan in Hindi) के बारे में. 

बचपन से ही था शतरंज खेलने का शौक़ 

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Story of Mir Sultan Khan in Hindi: मीर सुल्तान ख़ान का जन्म 1903 में पंजाब के खुशाब ज़िले के मीठा तिवाना में हुआ था, जो विभाजन के बाद पाकिस्तान की सीमा के अंतर्गत आता है. मीर सुल्तान ज़मीदारों के परिवार से ताल्लुक रखते थे. उनके बारे में कहा जाता है कि उन्हें बचपन से ही शतरंज खेलने का शौक़ था और बचपन में वो अपने भाइयों के साथ नियमित रूप से शतरंज खेला करते थे. वहीं, थोड़े बड़े हुए थे, तो शतरंज में दिलचस्पी रखने वाले अन्य लोगों के साथ में भी खेलने लगे थे. 

इसके अलावा, उन्हें शतरंज के दांव-पेच सिखाने वाले उनके पिता मियां निज़ाम दीन थे. उनपर घर का कोई बोज नहीं था, इस वजह से वो खुलकर शतरंज पर ध्यान दिया करते थे और शतरंज के भारतीय फॉर्मेट की पैक्टिश करने लगे थे. 

भारत से पहुंचे लंदन 

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Asia’s 1st Grandmaster in Hindi: 21 साल की उम्र में वो पंजाब प्रांत में शतरंज के सर्वश्रेष्ठ खिलाड़ी के रूप में जाने गए. उनका खले देख अमीर जमींदार सर उमर तिवाना काफ़ी प्रभावित हुए. उस समय सर उमर तिवाना बड़ी हैसियत रखने वाले व्यक्ति थे, जिनका अंग्रेज़ों में अच्छा उठना-बैठना था. उन्होंने मीर सुल्तान से पड़ोसी गांव कालरा में अपनी ज़मीन पर शतरंज की टीम बनाने की लिए कहा, जिसके बदले उन्हें प्रतिमाह कुछ पैसे, बोर्ड और रहने की जगह दी गई. 

ट्रेनिंग के दौरान ही उन्होंने 1928 में आयोजित हुए ‘ऑल इंडिया चेस चैंपियनशिप’ में शानदार प्रदर्शन के साथ जीत अपने नाम की. इसके अगले साल ही सर उमर, सुल्तान को सीधे लंदन ले गए और इंपीरियल चेस क्लब का सदस्य बना दिया. 

उस दौरान शतरंज अमीरों का खेल हुआ करता था और इसे खेलने के लिए क्लब की मेंबरशिप ज़रूरी थी. यहां रहकर मीर सुल्तान ने चेस के इंडियन फ़ॉर्मेट से अलग पश्चिमी फ़ॉर्मेट को जाना और समझा. 

 ब्रिटिश चेस चैंपियनशिप

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Mir Sultan Ali life in Hindi: शतरंज के वेस्टर्न फ़ॉर्मेट की सीमित जानकारी होने के बावजूद, मीर सुल्तान अलीन ने इंग्लैंड में आयोजित हुए ब्रिटिश चेस चैंपियनशिप में भी जीत दर्ज की. ये वो दौर था जब ब्रिटिश साम्राज्य से विश्व का एक बड़ा हिस्सा अपने नियंत्रण में ले रखा था. इसलिये, ये जीत मीर उस्मान और भारत के लिए काफ़ी ज़्यादा मायने रखती थी. 

इस ऐतिहासिक जीत के बाद उन्हें यूके और यूरोप से खेलने के आमंत्रण आए. खेलने के लिए मई 1930 में यूरोप जाने से पहले उन्होंने भारत आने का फैसला किया. इसके बाद वो यूरोप चले गए. 

उन्होंने यूरोप में कई टूर्नामेंट में भाग लिया, जिसमें Scarborough Tournament, Hamburg Olympiad और Lige Tournament आदि शामिल थे. वहीं, 1930 में उन्होंने इंग्लैंड में 11th Hastings Christmas Chess Festival में अपने सबसे बड़े प्रतिद्वंदी और उस समय के चैंपियन José Raúl Capablanca को हराकर जीत हासिल की. 

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शतरंज के जीनियस थे मीर सुल्तान 

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José Raúl Capablanca ने कई वर्ष बाद मीर सुल्तान के लिए लिखा था कि “वो शतरंज के जीनियस हैं और वो चैंपियन बनने में सफल रहे.” मीर सुल्तान ने अपने सामने पोलिश-फ्रांसीसी शतरंज मास्टर सेविली टार्टाकॉवर को भी नहीं टीकने दिया. इसके अलावा, उन्होंने प्राग इंटरनेशनल टीम टूर्नामेंट में चेक प्लेयर सालो फ्लोहर और पोलिश शतरंज मास्टर अकीबा रुबिनस्टीन को भी हरा डाला. 

वहीं, उन्होंने एक मैच उस समय के विश्व चैंपियन  अलेक्जेंडर अलेखाइन के साथ ड्रॉ भी किया था. 

शतरंज कि जिनियस मीर सुल्तान को एंड गेम का मास्टर माना जाता था और वो खेल के बीच ख़ुद को कंट्रोल करते हुए कठिन स्थितियों से भी बाहर आ जाया करते थे. 

विभाजन के बाद पाकिस्तान आ गए

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ऐसा कहा जाता है कि मीर सुल्तान 1940 तक  शतरंज में सक्रीय थे. वहीं, ब्रिटेन से आने के बाद मुंबई में 40 खिलाड़ियों के साथ मैच भी खेला था. वहीं, विभाजन के बाद उन्होंने पाकिस्तान में रहने का फ़ैसला किया, जहां वो अपनी पत्नी और बेटों के साथ अपने निधन (1966) तक रहे. 

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