सिर्फ़ BCCI नहीं, देश का हर खेल बोर्ड है भ्रष्ट, आंकडे़े और खिलाड़ियों का प्रदर्शन इसकी गवाही देता है

Jayant

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अनुराग ठाकुर को BCCI अध्यक्ष पद से हटा दिया गया. कई सालों से BCCI पर अलग-अलग आरोप लगते रहे थे. आम भाषा में बोलें, तो इसे सबसे पैसे वाली और भ्रष्ट संस्था कहा जाता रहा है. लोढ़ा कमिटी की रिपोर्ट में भी यही बात सामने भी आई है. लेकिन क्या सिर्फ़ क्रिकेट बोर्ड भ्रष्ट है? क्या सिर्फ़ क्रिकेट बोर्ड को बदलने की ज़रूरत है? या ऐसी कमिटी दूसरे खेलों पर नज़र रखने के लिए भी बैठानी चाहिए.

सिर्फ़ क्रिकेट में ही नहीं, हमारे देश के बाकी खेलों में भी राजनीति का एक बड़ा प्रभाव रहा है. हर खेल के उच्च पदों पर राजनेताओं का ही दबदबा ही रहा है. इस कारण कई बार खिलाड़ियों तक को समस्याओं का सामना करना पड़ा है.

Indian Olympic Association (IOA)

शरू करते हैं IOA से, क्योंकि हर ओलम्पिक में जाने वाली टीम से हर किसी को आशा होती है मेडल की. लेकिन ऐसा होता नहीं. तो क्या इसमें सिर्फ़ खिलाड़ियों की गलती होती है? क्या खिलाड़ी उस लायक नहीं, जो मेडल ला पाएं? सबसे पहली बात ऐसा नहीं है, क्योंकि ऐसा होता, तो उन खिलाड़ियों की राष्ट्रीय रिकॉर्ड की कहानी कुछ और ही होती. तो गलती कहां हो रही है, क्यों हम मेडल्स के लिए तरसते हैं. इसका कारण हमें साफ़ देखने को मिला था, जब देश में कॉमनवेल्थ गेम्स का आयोजन हुआ था. सुरेश कलमाड़ी की पोल खोल दी थी CAG रिपोर्ट्स ने. इन सब के बावजूद IOA पर किसी भी तरह का बड़ा उलटफेर नहीं हुआ. आज भी ये खेल संस्था राजनेताओं के हाथों में ही है.

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Athletics Federation of India

इस एसोसिएशन के बारे में जो भी कहा जाए, कम होगा. खिलाड़ियों के फ़ायदे के बारे में सोचने के बजाए, ये संस्था अपने बारे में पहले सोचती है. 117 खिलाड़ियों वाली ओलम्पिक टीम में से 37 एथलिट थे और इनमें से एक भी मेडल लाने में नाकाम रहे. इसके अलावा भारत दुनिया का तीसरा ऐसा देश हैं, जहां खिलाड़ियों को डोपिंग के कारण बाहर होना पड़ता है. साल 2014 में डोपिंग की वजह से बाहर हुए खिलाड़ियों की संख्या 96 थी. कुछ खिलाड़ी जानबूझ कर डोप करते हैं, लेकिन ज़्यादातर खिलाड़ियों को पता भी नहीं होता कि कौन सी दवाई खाने से वो डोपिंग के शिकार हो जाएंगे. कारण है, खिलाड़ियों का ऐसी जगह से आना जहां मूलभूत सुविधाएं भी नहीं है. ऐसे में Federation का रोल सामने आता है. लेकिन उन्हें कहां फ़र्क पड़ता है, उन्हें तो इन गेम्स में घूमने का मौका मिलता रहे, फिर चाहे खिलाड़ियों का करियर ही चौपट क्यों न हो जाए.

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National Rifle Association of India

साल 2016 के ओलम्पिक में 9 शूटर्स ने भारत की तरफ से शिरकत की थी. जिनमें से 2 पूर्व मेडलिस्ट थे. इस टीम से देश को बहुत उम्मीदें थीं. लेकिन 9 में से 2 ही फ़ाइनल्स तक पहुंच पाए, लेकिन मेडल एक भी नहीं ला पाए. ओलम्पिक टीम का प्रतिनिधित्व कर रहे अभिनव बिंद्रा ने अपनी रिपोर्ट, National Rifle Association of India के अध्यक्ष को सौंपी. बिंद्रा की इस रिपोर्ट की कुछ लाईन्स आपको भी पढ़ाते हैं.

The committee was unanimous in its view that Indian shooting needs to change, change its attitude, its policies and practices, so that the booming talent gets a fair chance to flourish in a healthy atmosphere, and win all the medals that it can in the World Championships and the Olympics. The ‘chalta hai’ attitude that shadows Indian sport has to be stopped. The NRAI has to shed excess flab and needs to become a lean and mean fighting machine to ensure the implementation of a system that will churn out Champions. At present the system is adhoc. There is no systemic framework in place.”

इन शब्दों के अनुसार, शूटिंग में एक बड़े बदलाव की ज़रूरत है. जिसमें खिलाड़ियों के साथ-साथ प्रबंधन के लोग भी शामिल हैं. खेल की भावना और जीत की भूख ज़रूरी है. खिलाड़ियों को बेहतर खेल सुविधाएं मिलनी चाहिए, साथ ही खेल से राजनीति को भी दूर रखने की बात कही गई है. वरना हम ऐसे ही लगातार खेल में हारते रहेंगे.

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एक खिलाड़ी द्वारा लिखी गई ये रिपोर्ट काफ़ी हद तक शूटिंग के हालात बताने में कामयाब रही है.

Boxing Federation

क्या आप जानते हैं कि बॉक्सिंग का अभी तक कोई Recognised Federation नहीं था. इसका कारण हैं IOA के अध्यक्ष अभय चौटाला. हालात ये हैं कि जिस खेल ने हमें विजेंद्र सिंह जैसा खिलाड़ी दिया, उसी खेल के मात्र 3 खिलाड़ी ही 2012 लंदन ओलम्पिक में अपनी जगह बना पाए. ऐसे में कोई इन खिलाड़ियों से कैसे मेडल की उम्मीद कर सकता है.

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All India Tennis Authority

ये एसोसिएशन किसी टीवी शो में होने वाली सास-बहू की लड़ाई से कम नहीं है. विश्वास न हो, तो ज़रा इन बातों पर गौर करिए.

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Para-Athletes

साल 2015 में National Para-Athletes खेलों का आयोजन किया गया था. हालात ये थे कि वहां के टॉयलेट बह रहे थे. कमरे गंदे थे और इन खिलाड़ियों के लिए कोई भी सुविधा उपलब्ध नहीं थी. इसके फ़ौरन बाद 2016 में Rio पैरालम्पिक खेल थे, जहां टीम जाएगी भी या नहीं ये किसी को नहीं पता था. ऐसा रैवाया कैसे किसी भी खिलाड़ी को खेल के प्रति उत्साह दिलाएगा. इन विषम परिस्तिथियों में भी अगर हमारे ये खिलाड़ी मेडल्स ला रहे हैं, तो ये खिलाड़ियों की काबलियत है, न कि एसोसिएशन की.

indianexpress

All India Football Federation

पूरी दुनिया जिस खेल के पीछे पागल है, वो खेल उसी की Federation के लिए अहमियत नहीं रखता. भारत में फ़ुटबॉल फ़ैन्स की कमी नहीं है. लेकिन फ़ुटबॉल लीग के फेल होने के बाद और ISL में कई स्पॉनसर के जाने के बाद आज भी Football Federation लोगों के अंदर इस खेल के फ़ैन्स को मैदान में मैच देखने के लिए खींचने में नाकाम रही है. इसके लिए कुछ करना तो दूर, वो इसका कारण भी नहीं खोज पाए हैं. खेल का स्तर खिलाड़ियों की वजह से बढ़ा ज़रूर है, लेकिन बेहतर मैदान और स्पॉनसर्स की कमी इस खेल को लोगों के मन से कहीं न कहीं दूर कर रहे हैं.

saddahaq

आप हॉकी की बात करें, या फिर किसी भी खेल की. हर खेल की एसोसिएशन की जड़ें खोखली हो चली हैं. जिन लोगों के हाथों में खिलाड़ियों का भविष्य दिया गया है, उन्हें पैसों के अलावा और किसी चीज़ से मतलब नहीं है. क्रिकेट बोर्ड को साफ़ करना ज़रूरी था. लेकिन इन खेलों के बारे में भी सुप्रीम कोर्ट को सोचने की ज़रूरत है. लोढ़ा कमिटी की तरह इन पर भी जांच के लिए एक कमिटी बनानी चाहिए, जो इन बोर्ड्स में फैलती गंदगी को साफ़ करने का काम करे. 

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