सालों से हम जिन 8 मिथक को सच समझ रहे थे, उनकी रियलिटी जानकर हैरान रह जाओगे 

Vidushi

Common Myths Reality : दुनिया अजूबों से भरी पड़ी है. लेकिन हमें ऐसे भी आम मिथक बताए जाते हैं, जो कभी ग़लत भी साबित हुए हैं. अगर उसके पीछे की सच्चाई आपको पता चलेगी, तो आपके भी होश फ़ाख्ता हो जाएंगे. इन मिथकों (Myths) पर हमें सालों से विश्वास दिलाया गया है, लेकिन अगर थोड़ा इसकी डीटेल में जाएंगे, तो सारा दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा.

आइए आपको कुछ ऐसे ही आम मिथकों के बारे में बता देते हैं, जिनके पीछे की सच्चाई जानकर आप हैरान हो जाएंगे. 

1. कच्चे मीट में जो रेड जूस दिखाई देता है, वो ख़ून है.

मांस में जो रेड जूस दिखाई देता है, वो ख़ून नहीं होता है. मांस के कटने के दौरान सारा ख़ून रिमूव कर दिया जाता है. रेड मीट जैसे कि गोमांस में पानी भी मौजूद होता है. इस पानी में मायोग्लोबिन नाम का एक प्रोटीन मिला होता है, जो उसी रेड लिक्विड में मिल जाता है.

nypost

ये भी पढ़ें: दूध पीने वालों और दूध से नफ़रत करने वालों को ज़रूर जानने चाहिए दूध से जुड़े ये 7 मिथक

2. अगर आप एक्सरसाइज़ करना बंद कर देते हैं, तो मांसपेशियां फैट में तब्दील हो जाती हैं.

मांसपेशियां और फैट दोनों ही अलग टाइप की सेल्स से बने होते हैं, जिनके अलग फंक्शंस होते हैं. कंकाल की मांसपेशियां तब बड़ी हो जाती हैं, जब कोई व्यक्ति जिम की एक्सरसाइज़ करता है. जब व्यक्ति एक्सरसाइज करना बंद कर देता है, तब मांसपेशियों की सेल जाती नहीं हैं या फैट में नहीं तब्दील हो जाती हैं, वो बस सिकुड़ जाती हैं. मांसपेशियां मेंटेन करने के लिए ज़्यादा कैलोरीज़ की ज़रूरत होती हैं. इसलिए रोज़ एक्सरसाइज़ करने वाले आम लोगों की तुलना में ज़्यादा खाते हैं. एक बार जब वो वर्कआउट करना बंद कर देते हैं, तो उनकी एक्सरसाइज़ तो रुक जाती है, लेकिन उनका कैलोरी इंटेक वही रहता है. इसलिए उन पर फैट चढ़ने लगता है.

harvard

3. शेविंग बालों की ग्रोथ को प्रभावित करती है.

शेविंग आपके बालों को मज़बूत या तेज़ी से ग्रो नहीं करवाती है. 1920s से लेकर अब तक की रिपोर्ट्स बताती हैं कि शेविंग का आपके बालों की ग्रोथ रेट पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता है. हेयर की ग्रोथ बालों के कूप से कंट्रोल होती है, जो स्किन के ठीक नीचे होते हैं. ये कूप शेविंग से प्रभावित नहीं होते हैं. सिर्फ आपके बालों का बाहरी हिस्सा जो डेड होता है, वही कट होता है.

verywellfamily

4. शुतुरमुर्ग अपना सिर रेत में छिपाते हैं.

जब शुतुरमुर्ग वास्तव में डर फ़ील करता है, तो वो अपना सिर रेत में नहीं छिपाता है बस वो भागने लगता है. ये दो पैरों से सबसे तेज़ भागने वाला जानवर है. उसकी तेज़ आंखें होती हैं और उसे अच्छा सुनाई भी देता है. इसी वजह से जब तक हिंसक जानवर उन्हें देखता है, तब तक वो उसे उससे कई पहले देख लेते हैं. वो पहले हिंसक जानवर को दूर से देखते हैं, ज़मीन पर लेट जाते हैं और अपनी पूरी बॉडी ज़मीन के नज़दीक कर लेते हैं और इंतजार करते हैं. यहीं से इस मिथक की शुरुआत हुई थी.

sciencefocus

5. सूरज पीला होता है.

हम सभी को लगता है कि सूरज पीला होता है, जबकि ये पीला नहीं सफ़ेद होता है. हमें सूरज पीला इसलिए दिखाई देता है, क्योंकि वायुमंडल सूर्य से प्रकाश बिखेरता है. इसलिए सूर्य का स्पष्ट रंग बदलता है. इसी बिखराव प्रभाव की वजह से ही आसमान दिन में नीला दिखता है. धरती का वायुमंडल नीले और बैंगनी वेवलेंथ की रेंज में प्रकाश बिखेरता है, इसलिए बाकी लाइट की वेवलेंथ येलो दिखाई देती है. इसी वजह से सूरज के डूबते समय आकाश में पीलापन दिखाई देता है.

ndtv

6. सूशी कच्ची मछली है.

सूशी कच्ची मछली नहीं है. सूशी में सिरके वाले चावल होते हैं, जो अलग-अलग टॉपिंग्स के साथ सर्व की जाती है. इसे कई प्रकार के सी फ़ूड के साथ सर्व किया जाता है, वो कच्चा और पका दोनों हो सकता है और दोनों का मिक्स भी हो सकता है.

allrecipes

ये भी पढ़ें: कंडोम से जुड़े मिथक आपने बहुत सुने होंगे, अब ज़रा कंडोम से जुड़ी सच्चाई जानिए

7. आप सिर्फ़ अपना 10 प्रतिशत दिमाग़ ही यूज़ करते हैं.

सालों से हम इस मिथक में जी रहे हैं कि आप सिर्फ़ अपना 10 प्रतिशत ही दिमाग़ यूज़ करते हैं. अभी तक इतनी सारी इस पर रिसर्च हो चुकी हैं, लेकिन अभी तक ऐसा दिमाग का कोई एरिया भी नहीं पाया गया है, जो सेम फ़ंक्शन करता हो. कई रिपोर्ट्स बताती हैं कि जब हम सो भी रहे होते हैं, तब भी ब्रेन का हर हिस्सा कोई ना कोई एक्टिविटी कर रहा होता है. इसलिए ये बताया गया है कि हम 10 प्रतिशत ही नहीं बल्कि पूरा दिमाग़ अपना यूज़ करते हैं.

nationalgeographic

8. जीभ में स्वाद के ज़ोन होते हैं.

जीभ के वास्तव में कोई ज़ोन नहीं होते, जो अलग-अलग एरिया में होते हैं. ये मिथक तब शुरू हुआ, जब हार्वर्ड के साइकोलॉजिस्ट एडविन जी बोरिंग ने 1901 में लिखे गए एक जर्मन पेपर को ग़लत ट्रांसलेट कर दिया. उस पेपर में लिखा था कि डीपी हैनिग ने जीभ के अलग-अलग हिस्पसेर अलग-अलग फ्लेवर को टेस्ट किया. जिसमें कुछ जगह पर कुछ फ्लेवर का स्वाद उन्हें ज़्यादा महसूस हुआ. जबकि रियलिटी में हर कोई हर स्वाद को जीभ की ऊपरी सतह पर हर जगह समान तौर पर महसूस कर सकता है. इसमें हर व्यक्ति में हल्की सी विविधता हो सकती है. वैज्ञानिकों ने बाद में बताया कि जी बोरिंग कि थ्योरी में कोई सच्चाई नहीं थी.

misconceptions

इन मिथकों को आज ही दिमाग़ से दूर कर लो.

आपको ये भी पसंद आएगा
पूर्णा सांथरी: आंखों की रोशनी खोने के बावजूद नहीं मानी हार, IAS बनकर किया मां-बाप का नाम रौशन
बचपन में जिन पेन्सिल की ब्रांड नटराज और अप्सरा को यूज़ करते थे, क्या जानते हो वो सेम कंपनी है?
बस ड्राइवर की बेटी उड़ाएगी एयरफ़ोर्स का जहाज, पाई ऑल इंडिया में दूसरी रैंक, पढ़िए सक्सेस स्टोरी
पहचान कौन? बॉलीवुड का डायरेक्टर जिसके नाम नहीं है एक भी फ्लॉप फ़िल्म, संजय दत्त को बनाया सुपरस्टार
दिल्ली मेट्रो में महिलाओं ने किया कीर्तन, Viral वीडियो देख लोग बोले- ‘लड़ाई-झगड़े से बेहतर है’
कोलकाता में मौजूद British Era के Pice Hotels, जहां आज भी मिलता है 3 रुपये में भरपेट भोजन