भारत में अगर तापमान 45 डिग्री पर पहुंंच जाता है, तो लोगों के हलक का पानी तक सूखने लगता है. मगर सोचिए, एक वीरान सूखे रेगिस्तान में क्या हालत होगी, जब तापमान 45 नहीं, बल्क़ि 55 डिग्री के पार पहुंच जाए. जी हां, सोचकर भी हालत ख़राब हो जाती है, मगर धरती पर ऐसी जगह वाक़ई मौजूद है, जहां लोग इस ख़तरनाक गर्मी में रहते हैं. इसे दुनिया ‘मौत की घाटी’ (Death Valley) बुलाती है.
Death Valley
ऐसे में आइये जानते हैं कि दुनिया की सबसे गर्म जगह पर रहना कैसा होता है और इसका नाम आख़िर मौत की घाटी क्यों पड़ा. साथ ही, यहां के पत्थरों के रहस्य के बारे में आज आपको बताएंगे.
पसीना तक भाप बन जाता है
डेथ वैली (Death Valley) में शरीर को झुलसा देने वाली गर्मी पड़ती है. यहां 55 डिग्री तापमान पहुंचना आम बात है. यही वजह है कि यहां जगह-जगह तापमान बताने वाले बोर्ड लगे हैं. कई जगहों पर चेतावनी के साइन भी लगे हैं. जिसमें लिखा हुआ है कि सुबह 10 बजे के बाद मैदानी इलाके में निकलने से बचें.
कैलिफ़ोर्निया में डेथ वैली नेशनल पार्क में काम करने वाले Brandi Stewart कहती हैं, ‘लगता है जैसे अपना सब्र खो दूंगी. जब आप बाहर निकलते हैं तो गर्मी से बाल सूख जाते हैं. यहां आप पसीना महसूस तक नहीं कर पाते, क्योंकि, वो निकलते ही भाप बन कर उड़ जाता है.’
Brandi कहती हैं कि आप इसे अपने कपड़ों पर महसूस कर सकते हैं, लेकिन वास्तव में आपको अपनी त्वचा पर पसीना फ़ील नहीं होता, क्योंकि तुरंत सूख जाता है.
क्यों कहते हैं इसे मौत की घाटी?
हालांकि, उनमें सिर्फ़ एक ही मौत हुई थी, मगर हर किसी को लगा था कि वो यहां से ज़िंदा नहीं निकलेंगे. नेशनल पार्क सर्विस के अनुसार, उनके दो युवकों विलियम लुईस मैनली और जॉन रोजर्स ने सबकी जान बचाई थी. जब सभी यहां बच निकले तो एक शख़्स ने जाते-जाते कहा, ‘गुडबॉय, डेथ वैली.’ बस उसकी वक़्त से इस जगह का ये नाम पड़ गया.
पत्थरों के खिसकने का रहस्य
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हालांकि, वैज्ञानिकों ने रिसर्च में सामने आया कि यहां 90 मील प्रति घंटे की रफ्तार से हवाएं चलती हैं. रात को जमने वाली बर्फ और सतह के ऊपर गीली मिट्टी की पतली परत, ये सब मिलकर पत्थरों को गतिमान करते होंगे. 2014 में, वैज्ञानिक पहली बार टाइम-लैप्स फोटोग्राफी का इस्तेमाल कर इस घटना को कैप्चर भी कर सके.