दुर्गाबाई देशमुख: जो सिर्फ़ महिला नहीं, बल्कि नारी-शक्ति की वो मिसाल है जिसे भूल पाना मुश्किल है

Kratika Nigam

हमारे देश में समय-समय पर ऐसी बहुत-सी महिलाएं हुई हैं, जिनके काम और साहस ने नारी शक्ति की एक अमिट मिसाल को जन्म दिया है. जब हम इन महिलाओं की बात करते हैं कुछ नाम याद आ जाते हैं जैसे, इंदिरा गांधी, पन्ना धाय, रानी लक्ष्मीबाई, जोधा बाई और इनमें से एक दुर्गाबाई देशमुख भी हैं जो एक समाज सेविका थीं. इन्होंने महिलाओं को शिक्षित करने के साथ-साथ उनके अधिकारों और हमारे देश की उन्नति के लिए बहुत ऐसे काम किए हैं, जो वाकई सराहनीय हैं. इन्होंने समाज सेवा करने की प्रेरणा अपने पिता से ली थी, जिसके बाद उन्होंने दूसरों को भी मदद करना शुरू किया.

wikipedia

आइए एक नज़र डालते हैं उनके इसी जीवन पर…

जन्म और विवाह

दुर्गाबाई देशमुख का जन्म 1909 में आंध्रप्रदेश में हुआ था. सिर्फ़ 8 साल की उम्र में उनके पिता ने उनकी शादी कर दी. दुर्गाबाई के अनुसार, उनके पापा की एक यही ग़लती थी, जो उन्होंने उनकी शादी इतनी छोटी उम्र में कर दी. इसके बाद अपने पिता और भाई के साथ से उन्होंने 15 साल की उम्र में इस शादी को ख़त्म कर दिया.

marvelartgallery

सराहनीय काम

उन्होंने 10 साल की उम्र में दुर्गाबाई ने काकीनाद में महिलाओं के लिए हिंदी पाठशाला चलाई, इसमें वो मां सहित 500 से अधिक महिलाओं को हिंदी पढ़ाती थीं ताकि वो अपने पैरों पर खड़ी हो सकीं. एकबार महात्मा गांधी ने कस्तूरबा गांधी और सी.एफ़.एंड्रूज के साथ जब दुर्गाबाई की इस पाठशाला का निरीक्षण किया तब दुर्गाबाई की उम्र केवल 12 साल थी. तभी से दुर्गाबाई महात्मा गांधी के सम्पर्क में आ गयीं. उन्होंने गांधीजी के सामने ही विदेशी कपड़ों की होली जलाई. अपने कीमती आभूषण उनको दान में दे दिए और खुद को एक स्वयं सेविका के रूप में समर्पित कर दिया. महात्मा गांधी भी इस छोटी-सी लड़की के साहस को देखकर दंग रह गये थे.

feminisminindia

नेहरू जी को नहीं जाने दिया था प्रदर्शनी में

कांग्रेस अधिवेशन में इसी छोटी लड़की ने जवाहरलाल नेहरु को बिना टिकट प्रदर्शनी में जाने से रोक दिया. पंडित नेहरु इस लड़की की कर्तव्यनिष्ठा और समर्पण से बहुत प्रभावित हुए और टिकट लेकर ही अंदर गए.

20 साल की उम्र में तो दुर्गाबाई के तूफ़ानी दौरों और धुआंधार भाषणों की धूम मच गई थी. उनकी अद्भुत संगठन क्षमता और भाषण देने की कला को देखकर लोग चकित रह जाते थे. उनके साहसपूर्ण दृढ़ व्यक्तित्व को देखकर लोग उन्हें “जॉन ऑफ़ ओर्क” के नाम से पुकारते थे. इस प्रकार वे दक्षिण के घर-घर से निकलकर पुरे देश में विख्यात हो गई थीं.

thehindu

नमक सत्याग्रह के दौरान का कठिन समय

“नमक सत्याग्रह” के दौरान दुर्गाबाई 1930 से 1933 के बीच तीन बार जेल गईं. उनको असहनीय यातनाएं जैसे तेज धूप में खड़े रहना, भूखा रहना, मिर्च पिसवाना जैसी कठिनाइयों से गुज़रना पड़ा, लेकिन उन्होंने जेल से मुक्ति के लिए क्षमा नही मांगी. जेल से छूटने के बाद उन्होंने आगे की पढ़ाई की. मैट्रिक से एम.ए. की पढ़ाई पुरी की, फिर L.L.B. किया और वकील बनीं. वे कई महिला संगठनों से जुड़ी रहीं, जैसे अखिल भारतीय महिला परिषद, आंध्र महिला सभा, विश्वविद्यालय महिला संघ, नारी रक्षा समिति और नारी निकेतन आदि.

dnaindia

दूसरा विवाह किया

उन्होंने 44 साल की उम्र में 1953 में भूतपूर्व वित्त मंत्री चिंतामणि देशमुख से दोबारा शादी की. शादी के समय दुर्गाबाई “योजना आयोग” की सदस्या थीं. “नारी शिक्षा की राष्ट्रीय कमेटी” की प्रथम अध्यक्षा के नाते नारी शिक्षा के लिए विशेष प्रावधानों, योजनाओं को व्यवस्था करने, पिछड़े वर्गों और महिलाओं-बच्चों के उत्थान काम को प्राथमिकता दिलाने के लिए दुर्गाबाई देशमुख ने अपना पूरा जीवन लगा दिया.

google

शिक्षा का प्रसार और पुरस्कार

आंध्रप्रदेश के गांवों में शिक्षा प्रसार के लिए उन्हें “नेहरु साक्षरता पुरस्कार” से सम्मानित किया गया. साथ ही पॉलजी हाफ़मैन पुरस्कार, यूनेस्को पुरस्कार, भारत सरकार से पद्म विभूषण, जीवन पुरस्कार और जगदीश पुरस्कार से नवाज़ा गया था. इसके साथ उन्होंने 1938 में आंध्र महिला सभा सामाजिक विकास परिषद, 1962 में दुर्गाबाई देशमुख अस्पताल श्री वेंकटेश्वर कालेज, नई दिल्ली और 1948 में आंध्र एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना दिल्ली में रहने वाले तेलुगु बच्चों की शैक्षिक पूर्ति की थी. उन्होंने नेत्रहीनों के लिए भी विद्यालय, छात्रावास तथा तकनीकी प्रशिक्षण केन्द्र भी खोले.

thebetterindia

आपको बता दें कि 71 साल की उम्र में एक लम्बी बीमारी के बाद 9 मई 1981 को हैदराबाद में उनका निधन हो गया. उनका जाना इस देश के लिए बहुत बड़ी हानि थी. उनका सौम्य और दृढ़ व्यक्तित्व भारतीय महिलाओं के लिए हमेशा प्रेरणादायक रहेगा. भारतीय संविधान के निर्माण में उनका महत्वपूर्ण योगदान था. उन्होंने भारतीय महिलाओं को संवैधानिक समानाधिकार दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

theprint

अगर हम आज की बात करें तो कोई भी उनके सरहानीय कामों को भूला नहीं है शायद इसीलिए उनकी याद में दिल्ली में पहली बार ऐसा हुआ है कि किसी मेट्रो स्टेशन का नाम एक महिला के नाम पर रखा गया है. वो है पिंक लाइन का साउथ कैम्पस मेट्रों स्टेशन, जिसका नाम दुर्गाबाई देशमुख रखा गया है. ऐसा इसलिए किया जा रहा है क्योंकि श्री वेंकटेश्वर कॉलेज की स्थापना में दुर्गाबाई का बहुत सहयोग था और येकॉलेज साउथ कैम्पस के पास है. 

आपको ये भी पसंद आएगा
Success Story: बिहार की इस बिटिया ने 5 दिन में 5 सरकारी नौकरी हासिल कर रच दिया है इतिहास
पिता UPSC क्लियर नहीं कर पाए थे, बेटी ने सपना पूरा किया, पहले IPS फिर बनी IAS अधिकारी
मिलिए ओडिशा की मटिल्डा कुल्लू से, जो फ़ोर्ब्स मैग्ज़ीन में जगह पाने वाली एकमात्र भारतीय ‘आशा वर्कर’ हैं
पिता ठेले पर बेचते हैं समोसा-कचौड़ी, बेटी ने जीता ‘ब्यूटी कॉन्टेस्ट’, प्रेरणादायक है प्रज्ञा राज की कहानी
मिलिए नेपाल की प्रगति मल्ला से, जिन्हें मिल चुका है दुनिया की बेस्ट ‘हैंड राइटिंग’ का ख़िताब
बिहार के एक किसान की 7 बेटियों ने पुलिस ऑफ़िसर बनकर पेश की एक अनोखी मिसाल