Female Police Officers : जिसने भी ये कहा है कि आपको निडर होने के लिए एक जोड़ीदार की आवश्यकता है, उन्होंने ये बिल्कुल ग़लत कहा है. आपको मज़बूत होने के लिए दो लोगों की नहीं, बल्कि दृढ़ इच्छाशक्ति और अचूक दृढ़ संकल्प की ज़रूरत है. हम अक्सर सुनते रहते हैं कि ये ‘पुरुषों की दुनिया’ है, लेकिन ये पूरी तरह पितृसत्तात्मक विचार है. हर साल लाखों लोग भारतीय सिविल सेवा परीक्षाओं को पास करने के लिए बैठते हैं, लेकिन उनमें से ज़्यादातर हमेशा टॉप महिलाएं करती हैं.
इसकी शुरुआत किरण बेदी से हुई, जिन्होंने इस पितृसत्तात्मक समाज में अपने लिए जगह बनाई. वो हर उस महिला के लिए इंस्पिरेशन रही हैं, जो उस यूनिफ़ॉर्म को पहनना चाहती हैं और क़ानून एवं व्यवस्था को मेंटेंन करना चाहती हैं. ऐसी कई महिलाएं, जिन्होंने ये राह पकड़ी है और वो अपनी नौकरी में बढ़िया परफॉर्म कर रही हैं और ये बात साबित कर रही हैं कि ये मर्दों की दुनिया नहीं है.
1- संजुक्ता पराशर
संजुक्ता पराशर ने सिविल सेवा परीक्षा में 85वीं रैंक प्राप्त करके, प्रशासनिक सेवाओं के ऊपर आईपीएस को चुना, जो उनका प्यार था. असम में सोनितपुर जिले के पुलिस अधीक्षक (एसपी) के रूप में अपने कार्यकाल के दौरान, उन्होंने सीआरपीएफ़ जवानों की एक टीम का नेतृत्व किया, प्रभावी रूप से बोडो उग्रवादियों को मार गिराया, 64 गिरफ्तारियां कीं और केवल 15 महीनों में कई टन हथियार और गोला-बारूद बरामद किया.
उन्होंने भोपाल-उज्जैन ट्रेन विस्फ़ोट की भी जांच की थी, जिसके बारे में अफ़वाह है कि ये एक छोटे इस्लामिक स्टेट समूह की करतूत है. उन्हें नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ बोडोलैंड (NDFB) से कई मौत की धमकियाँ मिली हैं. लेकिन वो फिर भी इन सब को इग्नोर करते हुए अपना काम कर रही हैं.
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2- अपराजिता राय (सिक्किम की पहली फ़ीमेल आईपीएस अफ़सर)
अपने पिता को खोने के बाद, जो 8 वर्ष की उम्र में एक प्रभागीय वन अधिकारी थे, उन्हें और उनकी मां को अपना भरण-पोषण करना पड़ा. उस दौरान जब उन्होंने लोगों के प्रति सरकारी अधिकारियों के ठंडे दिल वाले रवैये को देखा, तो उन्होंने फ़ैसला किया कि वो चीज़ों को बदलेंगी.
इसके बाद उन्होंने सिक्किम की पहली गोरखा महिला आईपीएस अधिकारी बनकर अपने परिवार और महिलाओं को गौरवान्वित किया. उन्होंने दो बार यूपीएससी परीक्षा पास की और अपने दूसरे प्रयास में, उन्हें आईपीएस कैडर आवंटित किया गया. अपने पूरे प्रशिक्षण करियर में, उन्होंने लगभग हर तरह के पुरस्कार बटोरे हैं. वे कहती हैं, “मेरे पास आने वाले किसी भी व्यक्ति को उस उत्पीड़न या पीड़ा का सामना नहीं करना चाहिए, जो आम तौर पर लोगों को सरकारी कार्यालयों में करना पड़ता है.”
3. मेरिन जोसेफ़ (केरल कैडर की सबसे यंग आईपीएस अफ़सर)
मेरिन 25 साल की उम्र में यूपीएससी परीक्षा पास करके केरल कैडर की सबसे कम उम्र की आईपीएस अधिकारी बनीं. 2012 में अपने पहले ही प्रयास में यूपीएससी परीक्षा पास करने के बाद मेरिन आईपीएस में शामिल हुईं.
मेरिन ने G20 देशों के लिए Y20 समिट में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व भी किया. ये सख्त अधिकारी तब चर्चा में आई, जब एक मीडिया प्रकाशन ने उन्हें ख़ूबसूरत महिला अधिकारियों की सूची में शामिल करने के लिए चुना. इसके बाद एक तीखे फ़ेसबुक पोस्ट में, उन्होंने सेक्सिस्ट लेख और पितृसत्तात्मक मानसिकता की आलोचना की, जो महिलाओं को इस तरह से ऑब्जेक्टिफ़ाई करती है.
4- सौम्या सांबशिवन (खनन माफ़िया से लोहा लेने के लिए जानी जाने वाली शिमला की पहली महिला आईपीएस अधिकारी)
शिमला की देखरेख करने वाली पहली महिला पुलिस अधीक्षक, सौम्या अपने काम में समर्पण और अनुशासन के लिए स्पष्ट रूप से निवासियों के बीच पसंदीदा हैं. 2010 के आईपीएस बैच से पास आउट, उन्होंने हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले में अपने कार्यकाल के दौरान छह हत्या के मामलों को सुलझाया है और कुछ ड्रग माफ़ियाओं को सलाखों के पीछे पहुंचाया है, जो राज्य में धड़ल्ले से अपनी धौंस जमा रहे थे.
5- सोनिया नारंग
सोनिया नारंग अपने पिता ए.एन. नारंग से इंस्पायर थीं, जो पुलिस उपाधीक्षक के रूप में रिटायर हुए थे. सोनिया का इसके बाद एक ही सपना था, खाकी पहनना. उन्होंने एक बार द इंडियन एक्सप्रेस के साथ एक इंटरव्यू में कहा था, “मैंने कभी कुछ और नहीं सोचा था. ये हाई स्कूल से केवल सिविल सेवा ही थी.”
मुश्किल पैदा करने वाले लोगों के प्रति उनकी ज़ीरो टोलरेंस है. सोनिया पब्लिक फ़िगर तब बनी थीं, जब उन्होंने साल 2006 में बीजेपी और कांग्रेस के बीच हो रहे उन्मादी विरोध के दौरान एक विधायक को थप्पड़ मार दिया था. चीज़ों को व्यवस्थित करने के लिए उन्हें लाठीचार्ज का सहारा लेना पड़ा लेकिन एक बीजेपी विधायक रेणुकाचार्य जहां खड़े थे, वहां से उन्होंने हटने से इनकार कर दिया. इसके बाद सोनिया ने उनके गाल पर थप्पड़ मार दिया था. साल 2013 में जब सीएम ने नारंग के ख़िलाफ़ ये आरोप लगाए थे कि वो 16,000 करोड़ के माइनिंग घोटाले में शामिल थीं. तब उन्होंने मीडिया में एक बयान जारी किया जिसमें उन्होंने बताया कि उन्हें ऐसी जगहें कभी असाइन नहीं की गई, जहां अवैध माइनिंग हो रही थी. तो इसलिए ये बात काफ़ी मुश्किल है कि सारा पैसा उनकी जेब में गया हो.
इसके अलावा, नारंग ने जबरन वसूली रैकेट का भी पर्दाफ़ाश किया था, जो लोकायुक्त कार्यालय के भीतर काम करता था. इसके साथ ही कर्नाटक के पुराने इतिहास में वो दूसरी महिला अधिकारी हैं, जो बैंगलोर के दक्षिण डिवीज़न को संभालने वाली उपायुक्त है. उन्हें वर्तमान में चार साल की अवधि के लिए पुलिस अधीक्षक, राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) के रूप में नियुक्त किया गया था.
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6- डॉक्टर रुवेदा सलाम (डॉक्टर और कश्मीर की पहली आईपीएस अफ़सर)
रुवेदा सलाम ने इतिहास तब रचा, जब वो कश्मीर की पहली आईपीएस अफ़सर बनीं. उनके बचपन के दौरान, उनके पिता अक्सर कहा करते थे कि वो चाहते थे कि वो एक आईपीएस अधिकारी बनें और इसके बाद यही उनका उद्देश्य बन गया. श्रीनगर से एमबीबीएस करने के बाद, उन्होंने दो बार सिविल सेवा परीक्षा उत्तीर्ण की और अपने दूसरे प्रयास में आईपीएस कैडर प्राप्त किया. उन्होंने हैदराबाद में अपना प्रशिक्षण प्राप्त किया और तमिलनाडु में चेन्नई में सहायक पुलिस आयुक्त के रूप में नियुक्त हुईं.
रूवेदा ने कई प्रेरक भाषण दिए हैं और लड़कियों को जम्मू-कश्मीर में आईपीएस परीक्षा में बैठने के लिए प्रोत्साहित किया है. राजस्व सेवा का विकल्प चुनने के बाद वो वर्तमान में जम्मू में इनकम टैक्स असिस्टेंट कमिश्नर हैं.
7- मीरा बोंवान्कर (अफ़सर जिन्होंने मूवी मर्दानी को इंस्पायर किया)
2001 में अपने 150 साल के लंबे इतिहास में मुंबई के अपराध शाखा विभाग की प्रमुख बनने वाली पहली महिला, मीरा एक ताकतवर व्यक्ति हैं. उन्होंने अबू सलेम के प्रत्यर्पण, जलगाँव सेक्स स्कैंडल, इकबाल मिर्ची प्रत्यर्पण मामले सहित कई सीरियस मामलों को सुलझाया है. अपने बेबाक़ रवैये के लिए जानी जाने वाली, वो मर्दानी फ़िल्म के पीछे की प्रेरणा हैं. उन्होंने साल 2015 में याकूब मेमन की फांसी भी देखी थी, जिसे 1993 के मुंबई सीरियल धमाकों के लिए दोषी ठहराया गया था. उनके असाधारण कार्य के लिए, उन्हें साल 1997 में पुलिस पदक और महानिदेशक के प्रतीक चिन्ह के साथ राष्ट्रपति पदक मिला. उनका दृढ़ विश्वास है कि महिलाएं पुरुषों की तुलना में बहुत अधिक धैर्यवान, सक्षम और साधन संपन्न हैं और उन्हें सलाह देती हैं कि वे अपने सपनों का पालन करने के लिए आत्म-संदेह और असुरक्षा से छुटकारा पाएं.
8. संगीता कालिया (वो अधिकारी जो मंत्रियों द्वारा सत्ता के दुरुपयोग के खिलाफ़ खड़ी हुई)
फतेहाबाद में पुलिस होने के साथ एक पेंटर की बेटी, संगीता को आईपीएस अधिकारी बनने की प्रेरणा एक्ट्रेस कविता चौधरी से मिली, जिन्होंने 90 के दशक की टीवी सीरीज़ ‘उड़ान’ में एक आईपीएस अधिकारी की भूमिका निभाई थी। अर्थशास्त्र में ग्रेजुएशन डिग्री के बाद, संगीता ने एक सहायक प्रोफ़ेसर के रूप में काम किया और खाकी के लिए अपने प्यार के लिए तीन बार यूपीएससी में बैठीं. तीसरे प्रयास में, उन्होंने आईपीएस कैडर पास किया और एक आईपीएस अधिकारी के रूप में अपना करियर शुरू किया. जिस साल (2010) वो आईपीएस कार्यालय के रूप में हरियाणा पुलिस में शामिल हुईं, उसी साल उनके पिता धर्म पाल फ़तेहाबाद पुलिस से रिटायर हुए थे. श्री पाल के लिए वो गर्व का क्षण था, जिन्होंने हर कदम पर संगीता का साथ दिया.
साल 2015 में, जब संगीता फ़तेहाबाद में पुलिस अधीक्षक के रूप में कार्यरत थीं, तब हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री अनिल विज़ के साथ उनकी तीखी नोकझोंक हुई थी. उन्हें मंत्री द्वारा बैठक कक्ष छोड़ने के लिए कहा गया. उन्होंने कुछ ऐसी चीज़ें करने से इनकार कर दीं, जिसके कारण उन्हें एक अलग क्षेत्र में स्थानांतरित कर दिया गया. एक मंत्री द्वारा प्रदर्शित की गई क्रूरता और शक्ति के दुरुपयोग के खिलाफ़ खड़े होने के लिए उन्हें भारी समर्थन मिला.
9. सुभाषिनी शंकरन (पहली महिला आईपीएस अधिकारी को सीएम की सुरक्षा का प्रभार दिया जाएगा)
साल 2016 की जुलाई में, सुभाषिनी शंकरन भारत की आज़ादी के बाद मुख्यमंत्री की सुरक्षा का प्रभार लेने वाली पहली महिला आईपीएस अधिकारी बनीं, जो किसी भी उपाय से आसान उपलब्धि नहीं थी.
23 दिसंबर 2014 को नेशनल डेमोक्रेटिक फ्रंट ऑफ़ बोडोलैंड से अलग हुए समूह के उग्रवादियों ने सोनितपुर जिले में 30 आदिवासियों की हत्या कर दी थी. स्थिति की संवेदनशीलता को देखते हुए सुभाषिनी और उनकी टीम 20 मिनट के अंदर मौके पर पहुंच गई. कानून और व्यवस्था की स्थिति को भांपते हुए, पुलिस ने ये सुनिश्चित किया कि इससे पहले कि ये मामला और भड़के, शवों को उठा लिया जाए. असम में तैनात रहते हुए सुबाशिनी पास के काजीरंगा से संचालित एक अवैध गिरोह का भंडाफोड़ करने के लिए भी जिम्मेदार थीं.
ये धैर्य और दृढ़ विश्वास वाली महिलाएं हैं, जो अपनी जमीन पर खड़ी रहीं, अपने सपनों को पूरा करने के लिए संघर्ष किया. ये ऐसी महिलाएं हैं जिनकी बहादुरी और गैर-अनुपालन ये साबित करता है कि महिलाएं हर मामले में पुरुषों के बराबर हैं. ये निडर अधिकारी हर उस लड़की के लिए आदर्श रोल मॉडल हैं, जो लैंगिक रूढ़िवादिता को तोड़ना चाहती हैं और अपने सपने को जीना चाहती हैं.