IITian सुरभि यादव ने ठुकराई लाखों की नौकरी, ताकि गांव की लड़कियों को दिला सकें शिक्षा और ज़ॉब

Nikita Panwar

IITian Surbhi Yadav Who Helps Village Girls With Education And Jobs: “दीदी फ़ोन कॉल पर कुछ भी पढ़ा दो, मैं पढ़ लूंगी”. ये बात सुरभि को एक लड़की ने फोन पर कहा. इससे आपको काफ़ी कुछ समझ आ गया होगा. एक लड़की की पढ़ने की चाह, उसकी ललक. वाकई अगर पढ़ने और आगे बढ़ने की चाह हो, तो दुनिया में कुछ भी हासिल किया जा सकता है. गांव की कई लड़कियों की आवाज़ बनी सुरभि यादव. जिन्होंने IIT दिल्ली से डबल मास्टर्स की डिग्री के साथ लाखों की नौकरी छोड़कर उन्होंने NGO की शुरुआत की. आज उनके NGO से निकलकर लड़कियां पढ़ाई और नौकरी कर रही हैं. हम इस आर्टिकल के माध्यम से सुरभि की इंस्पायरिंग स्टोरी बताने जा रहे हैं.

महिला दिवस यानि Women’s Day के मौक़े पर शुरू हमारे #DearMentor  कैंपेन के ज़रिए चलिए जानते हैं IITian सुरभि यादव की कहानी-

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लाखों की नौकरी छोड़कर गांवों की लड़कियों की मदद कर रही हैं-

किसी भी काम को शुरू करने के लिए एक मोटिवेशन चाहिए. सुरभि के साथ भी ऐसा ही हुआ था. इतने प्रतिष्ठित कॉलेज से तालीम हासिल करने के बाद भी सुरभि हमेशा से कुछ अलग करना चाहती थीं. वो हमेशा से महिलाओं के उन ग्रुप्स की मदद करना चाहती थीं, जिन्हें कभी कोई सपोर्ट नहीं मिला.

मेरे माता-पिता हमेशा एक बात कहते थे- “तुम्हारी शिक्षा किस काम की अगर वो गांव के काम नहीं आ रही है?”

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सुरभि ने डबल मास्टर्स पूरी की

सुरभि की माता ने सिर्फ़ 8वीं कक्षा तक पढ़ाई की थी. लेकिन सुरभि ने बायोकेमिकल इंजीनियरिंग (Biochemical Engineering) में MTech और IIT दिल्ली से बायोटेक्नोलॉजी (Biotechnology) की पढ़ाई की थी. बाद में उन्होंने University Of California से डेवलपमेंट प्रैक्टिस में मास्टर्स पूरी की. सुरभि बताती हैं कि उनकी पूरी फ़ैमिली बुंदेलखंड के माधवपुरा में रहती है. जहां उनकी चाची, भाभी, बहनें और अन्य सभी औरतें बस खेती करती हैं.

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2020 में हुई बिहार की ‘फूला’ से पहचान

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2020 में कोविड रिलीफ़ काम के दौरान उनकी पहचान बिहार की फूला नामक लड़की से हुई, जिसे पढ़ाई का बहुत शौक़ था. जो गांव की किसी भी अन्य लड़की के अंदर नहीं था. सुरभि रोज़ दोपहर के 12 बजे फ़ोन कॉल पर उसे और 4 और लड़कियों को पढ़ाती थीं. इस घटते शिक्षा स्तर को सुरभि देख नहीं पाई और एक नज़रिया तैयार किया.

‘साझे सपने’ की शुरूआत हिमाचल में की

इसी बात का ध्यान रखते हुए, सुरभि ने ‘साझे सपने’ नाम से हिमाचल प्रदेश में एक रेज़िडेंशियल कैंप शुरू किया. जहां लड़कियों को शिक्षा के साथ-साथ ऑल राउंडर बनाया जाता था. क़रीबन 25 लड़कियों के ग्रुप को 15 हज़ार रुपयों की सैलरी मिलनी शुरू हुई. जबकि कुछ लोगों ने अपनी नौकरी बनाए रखने के लिए संघर्ष किया, साझे सपनों ने उनमें आत्मविश्वास और की भावना पैदा की. सुरभि कहती हैं, ”किसी ने कोशिश करना बंद नहीं किया है, मैं इसकी गारंटी दे सकती हूं.”

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सुरभि ने ‘साझे सपने’ में महिलाओं के लिए एक जगह बनाई, जहां वो खेल सकती हैं, पढ़ सकती हैं, सीख सकती हैं. साथ ही उन लड़कियों के आत्मा, शरीर और दिमाग पर ध्यान दिया जाता था, उसका नाम ‘सपना सेंटर्स’ रखा गया.

साथ ही इन गांव की लड़कियों का नाम ‘सपनेवाली’ रखा गया. जिनके अंदर कुछ कर गुज़रने की चाह थी. सुरभि ने इस काम के लिए क्राउडफंडिंग कैंपेन शुरू किया. इस कैंपेन से उन्होंने 3 दिनों में 26 लाख रुपये जमा कर लिए.

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फ़िलहाल के लिए ‘साझे’ 3 कोर्स देता है-

1- ‘उमंग’– जहां छात्रों को सोशल सेक्टर में काम करना सिखाया जाता है. उनके Development Management पर ध्यान दिया जाता है.

2- ‘आरोहण”– इस कोर्स में छात्रों को गणित सिखाया जाता है, उन्हें अध्यापक बनाने के लिए तैयार किया जाता है.

3- ‘तरंग’- इस कोर्स में छात्रों को वेब डेवलपमेंट सिखाया जाता है.

क्या थी इस आइडिया के पीछे विचारधारा

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सुरभि बताती हैं- “आज एक बड़ी समस्या यह है कि समाज को भरोसा नहीं है कि ग्रामीण महिलाएं सीखेंगी. सिलाई और सिलाई केंद्र खोलना आसान है क्योंकि वो एक आसान काम है, इसलिए वो इसे कर सकती है. आप उनके लिए एक रणनीति मैनेजमेंट कोर्स क्यों नहीं खोल रहे हैं?”

‘साझे’ अपने कोर्स से आज उन तमाम चुनौतियों को मुंह तोड़ जवाब दे रहा है और बता रहा है कि महिलाऐं बहुत कुछ कर सकती हैं. लेकिन ये तब होता है जब आप वास्तव में उनकी क्षमता में विश्वास करते हैं.

सुरभि कहती हैं- “हम इसे एक नियम बनाना चाहते हैं कि सलवार सूट पहनने वाली लड़की एक बड़े कार्यालय में रणनीति बना रही है. हम यह सुनिश्चित करना चाहते हैं कि उनके पास यह विकल्प हो कि वे कहां विकास करना चाहती हैं.

सुरभि के इस पहल को सलाम है!.

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