जन्म से नहीं थे दोनों हाथ, मां-बाप ने भी छोड़ा साथ, इच्छा शक्ति की बदौलत किया पोस्ट ग्रेजुएशन

Abhay Sinha

‘जन्म से ही मेरे दोनों हाथ नही हैं. मेरे माता-पिता को लगा कि वो मुझे नहीं पाल सकेंगे. इसलिए मेरे नाना-नानी मुझे लेते आए.’

ये कहानी है तमिलनाडु की विद्याश्री की, जिनकी ज़िंदगी में संघर्ष पैदा होते ही शुरू हो गया था. विद्याश्री बिना हाथों के ही पैदा हुई थीं. उस पर उनका साथ माता-पिता ने भी छोड़ दिया. मगर फिर भी उन्होंने हार नहीं मानी और आज मेहनत और इच्छा शक्ति की बदौलत वो पोस्ट ग्रेजुएशन तक कर चुकी हैं. (Inspirational story of Vidyashree who born without hands)

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नाना-नानी ने बनाया आत्मनिर्भर

विद्याश्री तमिलनाडु के विल्लुपुरम में पैदा हुई थीं. जन्म लेते ही उनके जीवन का संघर्ष शुरू हो गया. माता-पिता से दूर नाना-नानी के घर पर उन्हें रहने को मजबूर होना पड़ा. क्योंकि, उनके पेरेंट्स को लगा कि वो बिना हाथ वाली बच्ची को पाल नहीं पाएंगे.

हालांकि, उनके नाना-नानी ने ऐसा नहीं सोचा. वो उसे अपने साथ ले गए. विद्याश्री की नानी ही उनके सारे काम करती थीं. जैसे नहलाना, कपड़े बदलवाना, खाना खिलाना वगैरह-वगैरह. मगर उन्हें मालूम था कि ज़िंदगी आगे बहुत मुश्किल होने वाली है. ऐसे में उन्हें अपनी नातिन को भविष्य के लिए तैयार करना था.

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ऐसे में थोड़ा बड़े होते ही विद्याश्री की नानी ने उसे हर काम सिखाना शुरू किया. वो उसे पैर से ही टूथब्रेश करना, कपड़े धोना और दूसरे काम सिखाने लगीं.

Inspirational story of Vidyashree who born without hands

BBC को दिए इंटरव्यू में उनकी नानी कहती हैं, ‘उस दिन सबने उसे छोड़ दिया था. मैंने बहुत मुश्किल से उसे पाला. मैंने इसे पढ़ाया-लिखाया. मैं नहीं जानती थी कि वो पढ़-लिख कर क्या करेगी. पर मैं चाहती थी कि वो पढ़े.’

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टीचर बनना चाहती हैं विद्याश्री

विद्याश्री ने एम.ए. कर लिया है. वो बी.एड. भी पास हैं. अब टीचल क्वालिफ़ाइंग एग्ज़ाम की तैयारी कर रही हैं. हालांकि, उनके नाना-नानी अब बुज़ुर्ग हो चुके हैं. वो बहुत काम नहीं कर पाते. ऐसे में विद्याश्री रूरल डेवलेपमेंट स्कीम के तहत एक नौकरी कर रही हैं, ताकि अपने नाना-नानी की मदद कर सकें.

वो एक अस्थायी कर्मचारी के तौर पर क़रीब सालभर से काम कर रही हैं. वो गांव के युवाओं से मिलकर इस बात का पता लगाती हैं कि उन्हें अपना काम शुरू करने के लिए किन स्किल्स की ज़रूरत है. साथ ही, वो योजनाओं के बारे में भी उन्हें जानकारी देती हैं.

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विद्याश्री टीचर बनना चाहती हैं. वो कहती हैं, ‘मैं पढ़ाई कर के टीचर बनूंगी. मेरी तरक्की कभी नहीं रुकेगी.’

वो फ़िलहाल इस बात से ख़ुश हैं कि अपने परिवार को सपोर्ट कर पा रही हैं. साथ ही, वो बताती हैं कि उन्होंने कभी भी अपने दोनों हाथ न होने को अक्षमता के रूप में नहीं लिया. शायद यही वजह है कि यहां तक पहुंच सकी.

यक़ीनन विद्याश्री एक बेहद हिम्मती और प्रतिभाशाली लड़की हैं. और वो भविष्य में हर उस चीज़ को पा सकेंगी, जिसका उन्होंने सपना देखा है.

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