वीमेन्स डे आने की ख़ुशी में एक दिन के लिए हर व्यक्ति अपने आस-पास की स्त्रियों के लिए संवेदनशील हो जाते हैं. स्टीरियोटाइप, पितृसत्ता को लेकर सोशल मीडिया पर बड़ी-बड़ी बातें कहेंगे. ये ज़ालिम सोशल मीडिया के ज़माने की वजह से बस ट्रेंड के लिए कुछ लोग अपनी बीवी का और कुछ बच्चे अपनी मां का किचन में हाथ बंटा लेंगे. ज़्यादा बुद्धिजीवी लोग ‘औरतों की महानता’ को लेकर दो-चार डिबेट का हिस्सा हो जाएंगे. कंपनियां अपने यहां काम कर रही फ़ीमेल कर्मचारियों को फ़ूल का गुलदस्ता देकर बताएंगे की वो उनकी बढ़ोतरी के लिए कितनी अहम हैं. हर जगह आप महिलाओं के त्याग, महानता और समाज के ख़िलाफ़ चल रही लड़ाई के बारे में पढ़ेंगे और देखेंगे.
वीमेन्स डे आने की ख़ुशी में एक दिन के लिए हर व्यक्ति अपने आस-पास की स्त्रियों के लिए संवेदनशील हो जाते हैं. स्टीरियोटाइप, पितृसत्ता को लेकर सोशल मीडिया पर बड़ी-बड़ी बातें कहेंगे. ये ज़ालिम सोशल मीडिया के ज़माने की वजह से बस ट्रेंड के लिए कुछ लोग अपनी बीवी का और कुछ बच्चे अपनी मां का किचन में हाथ बंटा लेंगे. ज़्यादा बुद्धिजीवी लोग ‘औरतों की महानता’ को लेकर दो-चार डिबेट का हिस्सा हो जाएंगे. कंपनियां अपने यहां काम कर रही फ़ीमेल कर्मचारियों को फ़ूल का गुलदस्ता देकर बताएंगे की वो उनकी बढ़ोतरी के लिए कितनी अहम हैं. हर जगह आप महिलाओं के त्याग, महानता और समाज के ख़िलाफ़ चल रही लड़ाई के बारे में पढ़ेंगे और देखेंगे.
मगर एक मिनट, ये आप भी जानते हैं और हम भी की ये तो एक दिन का ढोंग है.(इसमें तो हम एक्सपर्ट हैं!) क्योंकि अगले दिन से तो आपको वही करना है जो हम सदियों से करते आ रहे हैं. सच बोलूं तो एक स्त्री की ज़िन्दगी में ये एक दिन कुछ मायने नहीं रखता है. दरअसल, हमें Women’s Day की बधाई नहीं सुननी है बल्कि ये बातें लोगों के मुंह से सुननी है. और सच कहूं तो जिस दिन लोग महिलाओं से ये बोलने लगेंगे उस दिन अपने आप में ही हर दिन Women’s Day हो जाएगा और हैप्पी लगाने की तो ज़रूरत ही नहीं पड़ेगी.
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