कभी ख़ुद थी घरेलू हिंसा का शिकार, आज हज़ारों को सशक्त कर रही हैं लक्ष्मी वाघमारे

Sanchita Pathak

कई सदियां बीत गईं, कई बार इतिहास लिखा-मिटाया गया, इस पृथ्वी पर बहुत कुछ घट चुका है, बहुत कुछ विकसित हुआ है… अगर कुछ है जो आज भी जस का तस बना हुआ है तो वो है महिलाओं की अवस्था. ऊपर-ऊपर से देखने पर तो किसी को भी यक़ीन हो जाएगा कि महिलाओं की हालत में सुधार हुआ है लेकिन ध्यान से भीतर झांककर देखो तो आज भी महिलाएं कुरीतियों और पितृसत्ता की बेड़ियों में जकड़ी दिखेंगी. 

कहने को तो नारीवाद, नारी सशक्तिकरण क़ानून ने महिलाओं का उत्थान किया तो है लेकिन अख़बार की ख़बरें हक़ीक़त बताती हैं.

लक्ष्मी वाघमारे की कहानी भी काफ़ी अलग नहीं थी लेकिन उन्होंने दूसरों द्वारा लिए गए अपनी ज़िन्दगी के निर्णय को नहीं माना और अपनी क़िस्मत ख़ुद लिखी. आज लक्ष्मी 17,000 महिलाओं की ज़िन्दगी बदल रही हैं.

The Better India

लक्ष्मी का जन्म महाराष्ट्र के एक दलित परिवार में हुआ था. सिर्फ़ 8 साल की उम्र में उसकी शादी उससे 13 साल बड़े एक मर्द से कर दी गई. The Better India से बात-चीत में लक्ष्मी ने अपनी ज़िन्दगी की कहानी साझा की.

जब मैं नौवीं कक्षा में भी तब मुझे पीरियड्स हुई, मेरी पढ़ाई रोक दी गई और मुझे मेरे पति के परिवार के साथ रहने पर मजबूर किया गया. मैं अपने लिए कुछ करना चाहती थी इसलिए मैंने स्ट्राइक किया. मैंने खाना-पीना छोड़ दिया और सास-ससूर को स्कूल न भेजे जाने पर आत्महत्या करने की धमकी दी. 1 साल के गैप के बाद मैं 10वीं पूरी कर पाई और अपनी HSC भी पूरी की.

-लक्ष्मी

मां बनने के बाद फिर से लक्ष्मी की पढ़ाई पर विराम लग गया लेकिन सालों बाद लक्ष्मी के पास दोबारा एक ऐसा मौक़ा आया जब वो अपने लिए कुछ कर सकती थी और लक्ष्मी ने उस मौक़े को दोनों हाथों से गले लगाया.

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2000 में हमारे गांव में भारत वैद्य (Halo Medical Foundation) की शुरुआत हुई और ग्राम पंचायत ने बीमार मरीज़ों का सर्वे करने और तुरंत रिपोर्ट देने के लिए एक वॉलंटीयर की तलाश शुरू की. पंचायत को पता था कि मैंने 12वीं तक पढ़ाई की है और मुझे बतौर गांव के हेल्थ वर्कर काम करने का मौक़ा मिला. मेरा काम मामूली नर्सिंग, बच्चों की देखभाल और मां बनने वाली महिलाओं का ख़याल रखना था.

-लक्ष्मी

300 रुपये की पगार, प्रेगनेंसी किट, HIV टेस्ट किट से लैस लक्ष्मी ‘मिनी डॉक्टर’ की तरह काम करने लगी. लक्ष्मी का काम अपने गांव तक ही सीमित नहीं रहा और आस-पास के गांव में भी फैला.

शुरू-शुरू में लोग उतने कोपरेटिव नहीं थे, वो मेरा मज़ाक भी उड़ाते थे- तुम शिक्षित नहीं हो, तुम क्या डॉक्टरों की मदद करोगी. मेरा काम देखकर उनकी शंकाएं दूर हो गईं.

-लक्ष्मी

सर्वे करते-करते लक्ष्मी को महिलाओं के स्वास्थ्य, न्यूट्रीशन, आर्थिक स्थिति जैसी कई महत्वपूर्ण जानकारियां मिलीं. लक्ष्मी ने 10-12 महिलाओं का सेल्फ़ हेल्प ग्रुप भी बनाया. 

इनमें से ज़्यादातर महिलाएं ऐसी थीं जिनकी या तो शादी टूट गई थी, या उन्हें प्रॉपर्टी में हिस्सा नहीं दिया गया था या फिर वे बैंक लोन के लिए योग्य नहीं थी, कुछ महिलाएं अविवाहित और विधवा भी थीं इसलिए हमने छोटी से छोटी रक़म जमा करने का निश्चय किया. महिलाओं के बीच का ये लोन सिस्टम महिलाओं के ही निजी इस्तेमाल के लिए था.

-लक्ष्मी

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एक दशक बाद Halo Medical Foundation ने लक्ष्मी के हुनर को पहचाना और उसे एक फ़ेलोशिप प्रोग्राम के लिए नोमिनेट किया. Committee of Resource Organisation for Literacy का ये फ़ेलोशिप प्रोग्राम ज़मीनी स्तर पर काम कर रही महिला लीडर्स के लिए था. यहां लक्ष्मी ने ‘एकल महिला संगठन’ की शुरुआत की. 

महिला मंडलों को मैनेज करने के लिए महिला को 5000 की पगार मिलने लगी. आज लगभग 2 दशक बाद लक्ष्मी ख़ुद की तरह 300 गांव से 190 महिला लीडरों को ट्रेन कर चुकी हैं.

अपनी पिछली ज़िन्दगी को याद करते हुए लक्ष्मी कहती हैं कई बार लोग उनके बच्चों को उनके भाई-बहन समझ बैठते हैं. लक्ष्मी ने काफ़ी कम उम्र में अपने बच्चों को जन्म दिया था.
पिछली ज़िन्दगी को याद करते हुए लक्ष्मी कहती हैं, 

क्योंकि मैं काम करने बाहर जाती थी और घर देर से आती थी इस वजह से गांववाले मुझ पर उंगली उठाते थे और मेरे चरित्र पर टिका-टिप्पणी करते थे. एक रात मुझे बारिश में बाहर खड़ा रखा गया क्योंकि मैं घर देर से पहुंची थी. 

-लक्ष्मी

लक्ष्मी का कहना है कि वो अपने पति के अब्यूज़िव बिहेवियर को भी समझती हैं. लक्ष्मी कहती हैं कि उसके पति की विचारधारा काफ़ी अलग है लेकिन अब्यूज़िव बिहेवियर बिल्कुल ग़लत है.

मैं 12वीं पास हूं. मेरा पति अशिक्षित है. हम दोनों की विचारधाराएं अलग हैं. वो पशु चराता था और शराब पीकर घर आता था. कई बार वो मुझे मारता, गालियां देता. एक दिन मुझ से बर्दाशत नहीं हुआ और मैंने उसका विरोध किया. उस दिन के बाद से घर पर चीज़ें सुधरी. मैं अपनी मां की वजह से अभी भी अपने पति के साथ रहती हूं, मां बीती बातें भूल जाने को कहती है.

-लक्ष्मी

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लक्ष्मी ने 2006-07 के बीच 4 बाल विवाह रोके और उनके परिवारवालों से लड़कियों को शिक्षित करने और उनका विवाह सही उम्र में करने के लिए मनाया.

लक्ष्मी हर दिन सुबह उठकर घर के काम निपटाकर काम पर निकलती है.

मेरे बच्चे- पूजा, सबसे बड़ी ने TYBSc पूरी कर ली है. अभिषेक अभी SYBSc और शुभम HSC कर रहा है. मेरे बच्चे घर के कामों में मेरा हाथ बंटाते हैं. मैं रोज़ सुबह 9 बजे गांव के सर्वे के लिए निकलती हूं. 3000 गांववालों को चेक करना होता है. कोरोनावायरस के लक्षण वालों का नाम भी नोट करती हूं. शाम में सहेलियों से मिलती हूं और चाय पर उनका हाल-चाल पूछती हूंं. 

-लक्ष्मी

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3 बच्चों की मां लक्ष्मी के अंदर बचपन से ही अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने की हिम्मत थी. The Better India से बात-चीत में लक्ष्मी ने कहा कि तमाम मुश्किलों के बावजूद लक्ष्मी ने लड़ना नहीं छोड़ा और डटी रहीं.

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