मिलिए ओडिशा की मटिल्डा कुल्लू से, जो फ़ोर्ब्स मैग्ज़ीन में जगह पाने वाली एकमात्र भारतीय ‘आशा वर्कर’ हैं

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मटिल्डा कुल्लू! ये नाम शायद ही पहले कभी किसी ने सुना हो, लेकिन आज पूरी दुनिया में मशहूर है. हम ओडिशा की रहने वाली जिस मटिल्डा कुल्लू की बात कर रहे हैं वो आज दुनिया की सबसे मशहूर फ़ोर्ब्स मैग्ज़ीन में जगह पाने वाली एकमात्र भारतीय आशा कार्यकर्ता हैं. वो Forbes India Women-Power 2021 की सूची में शामिल होने वाली पहली भारतीय आशा कार्यकर्ता हैं. फ़ोर्ब्स पत्रिका ने उन्हें अरुंधति भट्टाचार्य, अपर्णा पुरोहित और आईपीएस अधिकारी रेमा राजश्वरी जैसी देश की प्रसिद्ध और सम्मानित मह‍िलाओंं के साथ जगह दी थी.

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ओडिशा की रहने वाली मटिल्‍डा कुल्‍लू (Matilda Kullu) न तो कोई बिज़नेस लीडर हैं और न ही बहुत पढ़ी-लिखी. आशा वर्कर के रूप में उन्‍हें 5,000 रुपये वेतन मिलता है. बावजूद इसके उन्होंने ‘फ़ोर्ब्स इंडिया वुमेन-पावर 2021’ की सूची में जगह बनाई. इस दौरान उनका नाम Amazon Prime Video India की हेड अपर्णा पुरोहित और मशहूर बैंकर अरुंधति भट्टाचार्य के साथ लिस्‍ट में था. ये पहला मौका था जब कोई आशा वर्कर इस सूची में शामिल हुई थी.

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मटिल्डा कुल्‍लू का ये सफ़र 2006 में शुरू हुआ था, जब उन्हें ओडिशा के सुंदरगढ़ ज़िले के गर्गदबहाल गांव में आशा कार्यकर्ता के रूप में नियुक्त किया गया था. इससे पहले वो अपने पति के साथ घर चलाने के लिए छोटी-मोटी नौकरियां और सिलाई का काम करती थीं, जो 4 लोगों के परिवार के लिए काफ़ी नहीं था. आशा कार्यकर्ता के रूप में काम करने का उनका मुख्य उद्देश्‍य परिवार के लिए पैसे कमाना था. मटिल्डा हर रोज सुबह 5 बजे उठ जाती हैं. अपने परिवार के लिए सुबह और दोपहर का भोजन बनाने और मवेशियों की देखभाल करने के बाद 7.30 बजे के क़रीब साइकिल चलाकर घर से निकल पड़ती हैं.

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अंधविश्‍वास को दूर करना था बड़ी चुनौती

मटिल्डा कुल्लू जिस गांव से ताल्लुक रखती हैं, वहां स्वास्थ्य योजनाएं न के बराबर थी. बीमार पड़ने पर डॉक्टर या अस्पताल जाने के बजाय स्थानीय लोगों को जड़ी-बूटियों या फिर अंधविश्‍वास (झाड़-फूंक, जादू-टोना) के सहारे रहना पड़ता था. गांव की गर्भवती महिलाओं को प्रसव के लिए अस्पताल भी नहीं जाने दिया जाता था. इसलिए प्रसव के दौरान जटिलताओं के कई मामले सामने आते थे. ऐसे में मटिल्डा का पहला काम इस मानसिकता को बदलना और गांववालों को स्वास्थ्य योजनाओं के बारे में समझाना था.

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200 से अधिक महिलाओं की डिलीवरी में सहायता

मटिल्डा ने इसके बाद गांव के कुछ पढ़े-लिखे लोगों के सहयोग से बदलाव के लिए कदम उठाया. इस दौरान वो घर-घर जाकर ग्रामीणों को स्वास्थ्य योजनाओं और हेल्‍थ चेक-अप कराने के बारे में बताती थीं. शुरुआत में उनका मुख्य कार्य गांव की गर्भवती महिलाओं की जांच करना और उन्हें हर संभव मेडिकल सहायता प्रदान करना था. इस दौरान सरकार द्वारा एक गर्भवती महिला को अस्पताल ले जाने के लिए 600 रुपये दिए जाते थे. वो अब तक 200 से अधिक महिलाओं की डिलीवरी में सहायता कर चुकी हैं.

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मिलती है सिर्फ़ 5,000 रुपये की सैलरी

मटिल्डा कुल्लू आज क़रीब 1000 लोगों की देखभाल कर रही हैं. इनमें से ज़्यादातर खारिया जनजाति से हैं. गांव के लोगों की स्वास्थ्य परेशानियों में मटिल्डा हर समय उनके साथ खड़ी रहती हैं. लेकिन वर्षों की सेवा के बाद भी उनके लिए अगर कोई चीज़ नहीं बदली है तो वो है उनका वेतन. 17 साल की नौकरी के बाद भी मटिल्डा कुल्लू आज हर महीने केवल 5,000 रुपये की सैलरी मिलती हैं.

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