Nigeria Shocking Tradition: मां बनने से ख़ूबसूरत एहसास इस दुनिया में दूसरा कोई नहीं है. इस एहसास की ख़ुशी को जीने के लिए एक मां को असहनीय दर्द से गुज़रना पड़ता है, वो दर्द जो पूरी तरह से जान निकाल देता है. किसी भी मां के लिए ये पल दूसरे जन्म जैसा होता है, इस दौरान वो रोती है बिलखती है और चिल्लाती है, लेकिन अपने दर्द से ख़ुद ही लड़ती है. इस पल में वो जितना रोती है उससे कहीं सौ गुना ज़्यादा दर्द महसूस कर रही होती है. वो चीख रही होती है चिल्ला रही होती है, लेकिन उसे कोी टोकता नहीं है क्योंकि वो पल ही ऐसा होता है, लेकिन अगर हम कहें कि एक जगह ऐसी भी है जहां डिलीवरी के दौरान प्रेग्नेंट महिला को रोने का अधिकार नहीं है.
चौंकाने वाला सच है, लेकिन महिलाएं इस कड़वे सच को रीति-रिवाज़ों के बोझ के नीचे ढो रही हैं, आइए जानते हैं वो जगह कहां है?
Nigeria Shocking Tradition
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वो जगह नाईजीरिया है, जहां हर समुदाय की गर्भवती महिलाओं के लिए अलग-अलग रीति-रिवाज़ हैं. जैसे, बोनी समुदाय की लड़कियों को बचपन से ही सिखाया जाता है कि प्रसव के दौरान दर्द सहना महिलाओं की मज़बूती की निशानी होता है तो फुलानी समुदाय की लड़कियों को सिखाया जाता है कि प्रसव के दौरान डरना और रोना शर्म की बात है. जबकि, नाइजीरिया के हौसा समुदाय में प्रसव पीड़ा का सहना मजबूरी है.
News 18 की रिपोर्ट के अनुसार, दो बच्चों की मां मोफ़ोलुवाके जोन्स ने अपना अनुभव शेयर करते हुए बताया कि,
मेरा पहला बच्चा नाइजीरिया में पैदा हुआ, जहां प्रसव के दौरान होने वाले दर्द को चुपचाप सहने की परंपरा है. तो वहीं 5 साल बाद दूसरे बच्चे का जन्म कनाडा में हुआ, जहां हॉस्पिटल के सभी कर्मचारियों ने मेरा बहुत ख़्याल रखा साथ ही मुझे ये भी बताया कि, डिलीवरी के बाद क्या करना है और क्या नहीं? मेरी कोई भी जांच करने से पहले मेरी परमीशन ली जाती थी. इसके अलावा, मेरे हॉस्पिटल जाते ही मुझे दर्द से लड़ने के अलग-अलग विकल्प बताने के साथ-साथ उसके फ़ायदे और नुकसान भी बताए.
जोन्स आगे कहती हैं,
प्रसव पीड़ा को सहना किसी भी महिला के लिए ज़रूरी नहीं है. ऐसी कोई परंपरा नहीं हो चाहिए क्योंकि इस पीड़ा को कम किया जा सकता है. जिसे कुछ देशों ने परंपरा के बंधन में बांधकर महिलाओं को जकड़ा हुआ है. हर देश ने अपनी अलग परंपरा बना रकी है कहीं रोना सही मानते हैं कहीं रोने पर पर्तिबंद लगा रखा है. जैसे- ईसाई धर्म में माना जाता है कि, प्रसव पीड़ा महिलाओं को इसलिए होती है क्योंकि उन्होंने भगवान की किसी बात की अवहेलना की होगी तो उन्हें सज़ा के तौर पर इस दर्द को सहना है. और नाइजीरिया में इसे महिलाओं की कमज़ोरी से जोड़ा जाता है इसलिए वो चुपचाप इस दर्द को सहती हैं.
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British Gynecologist Marie Macool और उनके सहकर्मियों ने एक स्टडी में पाया कि, इथियोपिया में मेजिकल प्रोफ़ेशनल्स मां के प्रसव के दौरान पेन किलर्स के प्रभाव को लेकर चिंतित दिखे. इसके ही चलते, डॉक्टर्स न तो पेन किलर्स का इस्तेमाल करते हैं और न ही महिलाओं को जागरुक, जिसका पता दक्षिण-पूर्वी नाइजीरिया में एक रिसर्च के दौरान चला, वहां की ज़्यादातर महिलाओं को दर्द कम करने वाली दवाइयों के बारे में पता ही नहीं था.
इन महिलाओं को देखकर तो यही लगता है कि, जिसे परंपरा को वो मजबूरी में निभा रही हैं, दरअसल उस परंपरा का विरोद करने की ताक़त और समझ इनमें है ही नहीं. इसलिए पहले उस विरोधाभास विचार को मन में जागरुक करने की ज़रूरत है.