पुणे के पास 500 से अधिक महिला बाउंसर हैं और इस बढ़िया काम की शुरुआत भी एक महिला ने की है

Sanchita Pathak

महिला बाउंसर्स के बारे में आपने सुना होगा. बड़े शहरों में कई Bars और Clubs में महिला बाउंसर होती हैं. चंडीगढ़ की अमनदीप कौर देश की पहली महिला बाउंसर बनीं थी.


अमनदीप के बाद कई महिलाओं ने बाउंसर का काम करना शुरू किया पर इनकी संख्या काफ़ी कम है.  

रानी (बदला हुआ नाम) पर पूरी घर की ज़िम्मेदारी थी. रानी का पति कुछ काम नहीं करता था और रानी की कमाई दारू पर ख़र्च कर देता था. कई बार रानी को उसने बुरी तरह पीटा भी था पर आज रानी की ज़िन्दगी बदल गई है. आज रानी काले सूट में एक क्लब की पूरी भीड़ को मैनेज करती है. रानी ही नहीं, पुणे की 500 से अधिक महिलाएं आज कई Events की सुरक्षा सुनिश्चित करती हैं. और ये सब संभव हुआ है पूर्व अभिनेत्री दीपा परब की बदौलत.


Efforts for Good के मुताबिक दीपा, ‘रणरागिनी’ नामक एकेडमी चलाती हैं जहां वो अबला महिलाओं को बाउंसर बनने की ट्रेनिंग देती हैं और सबल बनाती हैं.  

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दीपा द्वारा ट्रेनिंग प्राप्त कर रही श्वेता के शब्दों में, 

मैं पिछले 7-8 महीनों से बाउंसर बनने की ट्रेनिंग ले रही हूं. मैं सिर्फ़ एक हाउसवाइफ़ थी और अपने करियर के बारे में कभी नहीं सोचा. बदक़िस्मती से मेरे पति का एक्सिडेंट हो गया और उनको काम-काज बंद करना पड़ा. मेरी दोस्त संगीता के ज़रिए मैं मैडम से मिली. अब मैं एक ख़ुशहाल और आत्मविश्वासी महिला हूं.
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श्वेता की तरह ही रणरागिनी एकेडमी की हर महिला की ज़िन्दगी की कहानी भावुक करने वाली है. यहां पति द्वारा प्रताड़ित महिलाएं, विधवाएं, मेड का काम करने वाली महिलाएं ट्रेनिंग के लिए आती हैं. एकेडमी में आने से पहले किसी को भी बाउंसर के काम का अनुभव नहीं था. 

दीपा ने Efforts for Good से बातचीत में कहा, 

मैं महाराष्ट्र पुलिस Join करना चाहती थी और उसी के लिए ट्रेनिंग कर रही थी. कुछ कारणों से वैसा हो नहीं पाया. मैं फ़िल्मों में बतौर मेकअप आर्टिस्ट काम करती थी, कुछ मराठी फ़िल्मों में छोटे-मोटे रोल भी किए. इंडस्ट्री में रहते हुए मैंने देखा कि बड़े स्टार्स के साथ काली यूनिफ़ॉर्म में हट्टे-कट्टे लोग रहते थे. मुझे पता चला कि ये उनके बॉडीगार्ड्स हैं. मुझे भी वो काम करने का मन किया. ट्रेनिंग थी ही. कुछ महिलाओं के साथ मैंने महिला बाउंसर का काम शुरू किया.

-दीपा परब

Efforts For Good

जब दीपा ने बाउंसर का काम शुरू किया तो हर कोई महिला बाउंसर को कमज़ोर और बेकार समझता था. शुरुआती दिनों में दीपा को नशे में धुत्त महिलाओं को संभालने का ही काम मिला. दीपा को ख़ुद पर आत्मविश्वास था और उन्होंने अधिकारियों को कुछ और काम देने की गुज़ारिश की पर दीपा को हमेशा ‘असमर्थ’ कहकर दरकिनार कर दिया जाता. 

Efforts For Good

जब दीपा से और बर्दाशत नहीं हुआ तो उसने मुंबई छोड़ी और अपने शहर पुणे आ गई. जहां उन्होंने रणरागिनी की शुरुआत की. शुरू-शुरू में ज़्यादा महिलाओं ने एकेडमी Join नहीं की. क़िस्मत तब बदली, जब गणेश चतुर्थी के दौरान दीपा द्वारा ट्रेन की गई 12 महिलाओं को उनके काम के लिए सराहना मिली. इन 12 महिलाओं ने उनमत्त भीड़ को न सिर्फ़ कन्ट्रोल किया बल्कि हर उम्रदराज़ व्यक्ति को अच्छे से दर्शन भी करवाए.

दीपा के पति, दीपक रामचंद्र परब एक क्रिकेट कोच हैं और दीपा को एकेडमी चलाने में सहायता करते हैं. दीपा ज़्यादातर 30 के ऊपर की महिलाओं को प्रवेश देती हैं क्योंकि उनका मानना है कि महिलाओं को शिक्षा पर ध्यान देना ज़्यादा ज़रूरी है.  

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दीपा भी एक अलग तरीके से महिलाओं को सशक्त कर रही हैं, इस अनोखे प्रयास के लिए उन्हें सलाम! 

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