Radhamani The Walking Librarian : फ़ेमस नॉवेलिस्ट एर्नेस्ट हेमिंगवे (Ernest Hemingway) ने कहा है कि ‘क़िताबों से वफ़ादार दोस्त कोई नहीं है‘. वास्तव में क़िताबें हमारी बेस्ट फ्रेंड्स होती हैं. अगर आपके पास क़िताबों का साथ हो, तो आप कभी बोर नहीं हो सकते. आपको ये जानकर ख़ुशी होगी कि अगर क़िताबें बोल पातीं, तो वो भी केरल में रहने वाले 63 वर्षीय राधामणि के बारे में यही बात कहतीं. क्योंकि राधामणि के जितना क़िताबों का वफ़ादार दोस्त शायद ही आपको कहीं मिलेगा.
ये बात आज भी समझ से परे है कि 21वीं सदी में होने के बाद भी, महिलाओं को इतना सीरियसली नहीं लिया जाता है. जब वो कुछ हासिल करती हैं, तभी लोगों के लिए ये आंख खोलने वाला काम क्यों होता है. हमें महिलाओं के अचीवमेंट्स की सराहना सिर्फ़ इसलिए नहीं करनी चाहिए, क्योंकि वो महिला हैं, बल्कि इसलिए करनी चाहिए क्योंकि उनके पास इसको अचीव करने का टैलेंट और काबिलियत है. फ़िलहाल, सीनियर लेडी राधामणि इन सभी बेबुनियाद वर्गीकणों से काफ़ी ऊपर हैं. वो एक मज़बूत महिला हैं, जिनका नाम क़िताबों के लिए एक प्रज्वलित जूनून का पर्यायवाची हो सकता है.
तो आइए ScoopWhoop Hindi के International Women’s Day पर चलाए गए कैम्पेन #DearMentor के ज़रिए राधामणि की इंस्पिरेशनल स्टोरी के बारे में आपको बताते हैं.
चलती-फिरती लाइब्रेरी हैं राधामणि
राधामणि केपी को वायनाड के हिल्स में चलती-फिरती लाइब्रेरी कहा जाता है. वो वायनाड के वेल्लामुंडा के मोथाकर्रा में रहती हैं. अपने गाँव में स्थित प्रतिभा पब्लिक लाइब्रेरी में वॉकिंग लाइब्रेरी के रूप में सेवा करने के लिए उन्हें अपने सीनियर से ये पदभार ग्रहण किए हुए आठ साल हो गए हैं. बतौर चलती-फिरती लाइब्रेरी, उनकी जॉब बुक लवर्स को क़िताब घर पर डिलीवर करवाना है. राधामणि अपनी जॉब से बहुत प्यार करती हैं. वो हर दिन 6 किलोमीटर चलती हैं और लोगों को मात्र 5 रुपए में पढ़ने के लिए क़िताबें डिलीवर करती हैं. इस तरीक़े से वो सभी में पढ़ने की आदत को बढ़ावा देती हैं. एक दिन भी ऐसा नहीं गुज़रता, जब आप राधामणि को मुस्कुराते हुए गलियों में अपने झोले में 30 से 40 क़िताबें लेकर ना चलती हों. उनका बुक्स के प्रति जुनून काफ़ी ज़्यादा है.
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उन्होंने अपने जूनून को ही बना लिया अपना करियर
वो मूल रूप से कोट्टयम के वज़हूर गांव की निवासी हैं. उन्होंने सिर्फ़ 10वीं कक्षा तक ही पढ़ाई की है, लेकिन जो क़िताबें उन्होंने अपने स्कूल में पढ़ीं. उन्हीं क़िताबों के ज़रिए उनकी रीडिंग की आदत डेवलप हुई. उनके पड़ोसी एक बार उन्हें 1961 में प्रतिभा पब्लिक लाइब्रेरी के नए भवन के उद्घाटन पर ले गए. उन्हें क्या पता था कि उनको एक दिन वहीं नौकरी मिल जाएगी. इसके बाद 1971 में उनकी शादी हुई. उनके पति पद्मनाभन नाम्बियार एक छोटी दुकान चलाते हैं. उनके बेटे का नाम KP रजिलेश है, जो एक ऑटो-रिक्शा ड्राइवर हैं. शादी के बाद प्रतिभा ने अपने जुनून को अपना करियर बनाने की सोची.
2012 में शुरू किया अपना करियर
उन्होंने अपना वर्क 2012 में शुरू किया, क्योंकि आदिवासियों को लाइब्रेरी आने के लिए काफ़ी लंबी दूरी तय करनी पड़ती थी. साथ ही क़िताबें भी काफ़ी महंगी थीं. इसलिए राधामणि ने उन तक पहुंचने और लोगों के क़िताबें पढ़ने के लिए रास्ते में आने वाली रुकावटों को दूर करने का फ़ैसला किया. वो हर महीने क़रीब 500 क़िताबें डिलीवर करती हैं. उनका मानना है कि महिलाओं को ज़िन्दगी में आगे बढ़ने के लिए कोई भी मौका नहीं छोड़ना चाहिए.
महिलाओं पर करती हैं फ़ोकस
इस लाइब्रेरी का गठन 1961 में हुआ था, लेकिन रोज़ाना महिलाओं के लिए इसे जॉइन कर पाना सिर्फ़ कुछ सालों पहले ही मुमकिन हो पाया. केरल राज्य परिषद पुस्तकालय ने महिलाओं को क़िताबों और पुस्तकालय से जोड़ने के लिए एक विशेष पहल की. राधामणि कहती हैं कि पुस्तकालय ने कहा कि “अगर महिलाएं लाइब्रेरी तक नहीं आ सकती हैं, तो हमें उनके पास तक लाइब्रेरी ले जानी चाहिए. इस पहल की शुरुआत महिलाओं के लिए हुई थी, लेकिन अब बच्चे और बूढ़े भी मुझसे क़िताबें लेते हैं.”
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महिलाओं और बूढ़ों के लिए क़िताबें वितरित करने का शुरू किया प्रोजेक्ट
शुरुआत में इसे ‘महिलाओं के लिए रीडिंग प्रोजेक्ट’ कहा जाता था, पर अब इसे ‘महिलाओं और बूढ़ों के लिए किताब वितरण प्रोजेक्ट’ कहा जाता है. पिछले 8 सालों से इस पहल के अंतर्गत राधामणि हर घर में बुक्स डिलीवर कर रही हैं. वो कहती हैं, “मैं सुबह रोज़ 5:30 बजे काम करती हूं और अपना दिन का काम निपटाने के बाद, मैं लाइब्रेरी जाती हूं. इसके बाद मैं कुछ क़िताबें बैग में रखती हूं और क़िताब बांटने के लिए घर-घर जाती हूं. मैं अपने साथ उनके नाम, क़िताबों के नाम और तारीख़ आदि का रिकॉर्ड रखने के लिए हमेशा एक रजिस्टर रखती हूं.”
सभी प्रकार की बुक्स का करती हैं वितरण
राधामणि के बैग में हर टाइप की बुक्स रखी होती हैं. महिलाओं और बच्चों के लिए उनके पास छोटी कहानियां और नॉवेल भी रखी होती हैं. इसके अलावा बच्चों को राधामणि पढ़ने वाला मैटेरियल और ट्युटोरियल की भी क़िताबें देती हैं. ये उनके करियर के लिए काफ़ी मददगार होती हैं. राधामणि बताती हैं कि महिलाएं पहले मनोरमा और मंगलम पढ़ती थीं, लेकिन अब वो नॉवेल पढ़ने में दिलचस्पी दिखाती हैं और उनका रीडिंग के प्रति प्यार बढ़ गया है.
बुक लवर्स के लिए ये सर्विस है समर्पित
राधामणि ये भी बताती हैं कि उनकी लाइब्रेरी से 102 लोग जुड़े हैं, जिसमें 94 महिलाओं की संख्या है. लेकिन इन दिनों महिलाएं ऑफ़िस में भी काम करती हैं. तो वो रविवार को क़िताबें बांटने जाती हैं और अपना साप्ताहिक अवकाश सोमवार को लेती हैं. कोरोना महामारी के दौरान उन्होंने सभी दिशा निर्देशों को फॉलो किया था और सोशल डिस्टेंसिंग और मास्क पहनकर निकलती थीं. साथ ही इस दौरान वो सिर्फ़ 20 घर ही कवर करती थीं. वो आगे बताती हैं कि वो आमतौर पर थकती नहीं हैं, लेकिन कभी-कभी बुक्स कैरी करने के लिए काफ़ी भारी हो जाती हैं. लेकिन जब लोग उन्हें बताते हैं कि वो क्या पढ़ना चाहते हैं, और उन्हें क़िताब में क्या चीज़ अच्छी लगी, तब वो अपनी सारी चिंताएं भूल जाती हैं.