950 से ज़्यादा बच्चों की जान बचाने वाली पुलिस ऑफ़िसर रेखा मिश्रा की कहानी सबके लिए प्रेरणा है

Abhay Sinha

महिलाएं क्या कर सकती हैं? ये सवाल अब पूछना बंद कर देना चाहिए. सवाल तो अब ये है कि ऐसा कौन सा काम है, जिसे महिलाएं कर नहीं सकतीं? महिलाओं की ऐसी ही शक्ति की गवाह रेखा मिश्रा भी हैं. रेखा मुंबई में रेलवे सुरक्षा बल (RPF) के साथ तैनात हैं. रेखा मिश्रा के साहसी कारनामों और दृढ़ संकल्प ने अब तक 950 से अधिक बच्चों की जान बचाने में मदद की है. तस्करी कर ले जा रहे बच्चों को बचाने में रेखा का बहुत बड़ा योगदान है.

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रेखा बताती हैं कि उन्हें पुलिस बल में शामिल होने के लिए उनके पिता ने प्रोत्साहित किया था, जो ख़ुद भी सेना में कार्यरत थे. रेखा मिश्रा मुंबई के प्रसिद्ध छत्रपति शिवाजी महाराज टर्मिनस में तैनात थीं. यहां उन्होंने कई महिलाओं और बच्चों की तस्करी को रोकने में भूमिका निभाई थी.

रेखा बताती हैं कि जिस दिन वो पुलिस वाली बनीं, उनके पिता ने उन्हें सैल्यूट करते हुए कहा, ‘हमेशा कॉज़ के लिए काम करों, तालियों के लिए नहीं.’

नारी शक्ति पुरस्कार 2017 से किया जा चुका है सम्मानित

रेखा को विभिन्न रेलवे स्टेशनों से सैकड़ों बेसहारा, लापता, अपहृत या भागे हुए बच्चों को बचाने का श्रेय दिया जाता है. इस काम के लिए उन्हें नारी शक्ति पुरस्कार 2017 से भी नवाज़ा जा चुका है. इसके अलावा, उनके काम को महाराष्ट्र में एसएससी पाठ्यपुस्तकों में एक अध्याय के रूप में शामिल किया जा चुका है. एक घटना को याद करते हुए रेखा कहती हैं कि बार उन्होंने एक 15 वर्षीय लड़की की मदद की थी, जिसका 45 वर्षीय व्यक्ति ने अपहरण कर लिया था.

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उन्होंने Humans of Bombay को बताया, ‘जैसे ही मैंने लड़की को ट्रेन में चढ़ते हुए देखा, मैंने उसका हाथ पकड़ कर अपनी ओर खींच लिया. उसी वक़्त मेरी टीम ने अपहरणकर्ता को घेरकर गिरफ़्तार कर लिया. लड़की ज़ोर-ज़ोर से रोते-चिल्लाते हुए उसे बचाने के लिए धन्यवाद बोलने लगी.’ उन्होंने बताया कि अपहरणकर्ता ने लड़की से छेड़छाड़ की थी और उससे शादी करना चाहता था.

ऐसे ही रेखा मिश्रा ने एक और घटना का ज़िक्र किया, जब उन्होंने एक 16 साल की लड़की की मदद की थी जो घर से भाग कर मुंबई आ गई थी. उन्होंने बताया, ‘मैंने एक लड़की को देखा जो खो गई थी. उसके पेरेंट्स को भी नहीं पता था कि वो घर से चली गई है. जब वो हमारे पास आए, तब पता चला कि लड़की प्रेग्नेंट थी.’

फ़र्ज़ निभाया फिर भी हुईं आलोचनाओं का शिकार

रेखा मिश्रा ने भले ही 950 से ज़्यादा बच्चों की जान बचाई हो. उनकी इस शानदार काम को सरकार ने भी सराहा, लेकिन इन सबके बाद भी वो पितृसत्तातमक समाज की आलोचनाओं से नहीं बच सकीं. वो बताती हैं कि एक बार किसी ने उनसे पूछा कि जब वो काम पर होती हैं तो खाना कौन बनाता है? उन्हें अक्सर ये सुनने को मिलता है कि महिला पुलिसकर्मी ग्राउंड पर काम करने के लिए नहीं होती हैं.

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उन्होंने कहा कि वो 35 साल की एक शादीशुदा महिला हैं. उनसे अक्सर ये पूछा जाता है कि ‘वो कब खुद के बच्चे पैदा करने वाली है?’ रेखा कहती हैं, ‘मैं हर दिन स्टेशन पर 12-14 घंटे बिताती हूं और मुझे अपने काम पर गर्व है! केवल बच्चें ही औरत को औरत नहीं बनाते हैं, कभी-कभी औरत की महत्वाकांक्षा, उसकी निरंतरता भी उसे औरत बनाती है.’

रेखा कहती हैं, ‘मैं चाहती हूं कि मैं जो भी करूं, उससे हर जगह लड़कियों को ये एहसास होता रहे कि वे अपनी लाइफ़ की हीरोइन हो सकती हैं और उनके पास अपनी कहानियां लिखने की शक्ति है.’

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