मिलिए उस महिला सरपंच से जो समाज की कुरीतियों को तोड़ आदिवासी लड़कियों की पढ़ाई पर ज़ोर दे रही हैं

Nripendra

Sarpanch Kamalabai Inspired Villagers for Girl Education: शिक्षा पर डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर का कहना था कि “किसी भी समाज का उत्थान उस समाज में शिक्षा की प्रगति पर निर्भर करता है.” ये बात बिल्कुल सही है कि समाज जितना शिक्षित होगा उतना ही प्रगति की राह पर आगे बढ़ सकेगा. यही वजह है कि देश में मूलभूत शिक्षा को देने और शिक्षा के प्रति जागरूकता जैसे अभियान चलाए जाते हैं. हालांकि, देश में अभी भी शिक्षा का स्तर दयनीय अवस्था में है. ग़रीबी और असाक्षरता के कारण देश के कई क्षेत्र में लोग शिक्षा को उतना गंभीरता से नहीं ले पाते है. वहीं, बात अगर बालिका शिक्षा की करें, तो उसकी दयनीय है. 

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Times of India की एक रिपोर्ट के मानें, तो भारत में साक्षारत दर 77.7 प्रतिशत (2022) है. वहीं, 2018 तक जहां पुरुषों की साक्षरता दर 82.4 प्रतिशत थी, तो वहीं महिलाओं की 65.8 प्रतिशत.    

ऐसे में, देश की सरकार से अलग कई ऐसे समाजसेवी हैं, जो ख़ासकर बेटियों की शिक्षा पर ज़ोर दे रहे हैं. ग़रीब परिवार वालों को प्रेरित कर रहे हैं कि छोटी उम्र में बेटियों की शादी न करके उनकी शिक्षा पर ध्यान दें. कुछ ऐसा ही काम कर रही हैं मध्य प्रदेश के आदीवासी क्षेत्र में रहने वाली पूर्व महिला सरपंच कमलाबाई (Kamalabai Lit the Flame of Education), जो ख़ुद 5वीं पढ़ी हैं, लेकिन वो अपने क्षेत्र में बालिक शिक्षा पर ज़ोर दे रही हैं.

आइये, इस ख़ास लेख में विस्तार से जानते हैं (Sarpanch Kamalabai Inspired Villagers for Girl Education) उनकी पूरी कहानी.  

सिर्फ़ पांचवी तक ही पढ़ पाई थीं कमलाबाई 

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Sarpanch Kamalabai Inspired Villagers for Girl Education: कमलाबाई मध्यप्रदेश के बुरहानपुर ज़िले के एक आदिवासी गांव की पूर्व सरपंच हैं. वो केवल पांचवी पास हैं, आगे तक नहीं पढ़ पाईं, लेकिन वो अपने क्षेत्र की बेटियों और उनके परिवार वालों को शिक्षा के लिए प्रेरित करने का काम कर रही हैं. ये उनके द्वारा उठाए गए कदम हैं कि आज उनके क्षेत्र में बालिका शिक्षा दर बढ़ने पर. जहां बेटियां घर की चार दीवारी तक क़ैद रह जाती थीं, वहां आज स्कूल जा रही हैं. उन्होंने गांव के लोगों को इस कदर प्रेरित किया कि गांव से आज 50 से ज़्यादा लड़कियां स्कूल जाने लगी हैं और ये स्तर बढ़ने पर है. 

समाज की कुरीरितों का शिकार

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कमलाबाई जिस गांव की पूर्व सरपंच हैं वहां बालिकाओं की शिक्षा की स्थिति दयनीय थी. बेटियों को स्कूल जाने की बजाय घर के काम में ही लगा दिया जाता था और कम उम्र में ही उनकी शादी करवा दी जाती थी. वहीं, अगर कोई बच्ची पढ़ती थी, तो केवल पांचवी तक.

कमलाबाई नहीं चाहती थी कि जो समाज की कुरीतियां उन्होंने और उनके साथ वाली लड़कियों ने झेली हैं वो आज की बेटियां न झेलें. कमलाबाई पांचवी तक पढ़ पाई थीं और इसके बाद उनकी शादी कर दी गई थी. इसलिये, वो इस मुहिम पर निकल पड़ी हैं कि गांव की सभी बच्चियां स्कूल जाएं और उच्च शिक्षा हासिल करें.

इतना आसान नहीं था सफ़र 

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Sarpanch Kamalabai Inspired Villagers for Girl Education: गांव में शिक्षा का अलख जगाने का काम इतना आसान नहीं था. उन्होंने अपने इस काम की शुरुआत साल 2015 से की. उन्होंने गांव के हर घर का दरवाज़ा खटखटाया और लोगों को शिक्षा के महत्व से रू-ब-रू कराया. 

उन्होंने ये शुरुआत अपने घर से की और अपनी दोनों बेटियों को शहर के स्कूल में पढ़ने के लिए भेजा. ये करके वो लोगों को सामने ये उदाहरण पेश किया कि बेटियों के लिए शिक्षा कितनी कितनी ज़रूरी है और उन्हें शिक्षा उनका भी अधिकार है. 

धीरे-धीरे लोग पूर्व सरपंच कमलाबाई की बातों पर भरोसा करने लग गए और अपनी बेटियों को पढ़ने भेजने लग गए.    

गांव के बाहर बेटियों को भेज रहे हैं पढ़ने

Kamalabai Lit the Flame of Education: बेटियों की शिक्षा को लेकर गांव वालों की सोच को महिला पू्र्व सरपंच कमलाबाई ने बिल्कुल बदल डाला. आज गांव की बेटियां बाहर पढ़ने जा रही हैं. गांव वाले ख़ुशी के साथ बेटियों को पढ़ने के लिए भेजते हैं.  

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