सावित्रीबाई: न उसने बड़ी बिंदी लगाई, न चरक की हुई कॉटन की साड़ी पहनी, फिर भी थी देश की पहली Feminist

Akanksha Thapliyal

आज सावित्री बाई फुले की 186वीं जन्मतिथि पर Google ने अपने ही अंदाज़ में उन्हें श्रद्धांजलि दी. सुबह जब Google के होम पेज पर ये Doodle देखा, तब याद आया, भारत में जन्मी थी एक ऐसी समाज सुधारक महिला, जिसे असल मायनों में फेमिनिज़्म का मतलब पता था.

Google

सावित्री बाई फुले , देश की पहली फेमिनिस्ट

1831 को महाराष्ट्र में जन्मी सावित्री बाई उस समय में बाल विवाह के लिए लड़ी थीं, जब इसे समाज की एक सुप्रथा का दर्जा प्राप्त था. हम आज सिर्फ़ किताबों पर महिलाओं के अधिकारों की बात करते हैं, जबकि सावित्री बाई ने सतीप्रथा के खिलाफ़ ख़ूब कैंपेन चलाये थे.

एक समाज सुधारक, जिसने जाति और धर्म की जगह शिक्षा को आगे रखा

Dr. Ambedkar

सावित्रीबाई ने भिड़ेवाड़ा, पुणे में लड़कियों के लिए पहला स्कूल खोला. ये उस समय की बात है, जब महिलाओं के लिए शिक्षा किसी Luxury से कम न थी और इसे पाने वाली ज़्यादातर महिलाएं राजसी परिवार से ही ताल्लुक रखती थी. सावित्रीबाई ने ऐसे 18 स्कूल और खोले और इन सभी स्कूलों में किसी भी जाति और धर्म के लोग पढ़ सकते थे.

जिसने समाज के दकियानूसी नियमों की परवाह नहीं की 

Dr. Ambedkar

सावित्रीबाई की शादी 9 साल की उम्र में ज्योतिबा फूले से हो गयी थी. इनकी अपनी कोई संतान नहीं थी, इसलिए दोनों ने अडॉप्ट करने का फ़ैसला किया. अपनी सोच के साथ, सावित्री ने अपनी निजी ज़िन्दगी में भी Radical फैसले लिए. उस समय दूसरे का बच्चा अडॉप्ट करना अपने आप में एक अपराध माना जाता था और उनके परिवार के विरोध के बावजूद उन्होंने यशवंत राव को गोद लिया.

1863 के दौरान सावित्री बाई ने रेप विक्टिम्स के संरक्षण के लिए भी काम किया. उस दौरान ज़्यादातर लड़कियां गर्भवती होने और रेप की आत्मग्लानि से बचने के लिए या तो अपने बच्चे को, या फिर ख़ुद को मार देती थी. इसको रोकने के लिए सावित्री बाई ने उनके लिए संरक्षण गृह का निर्माण करवाया.

Dr. Ambedkar

चाहे वो महिलाओं के हक़ के लिए लड़ना हो, देश में फैली जातिप्रथा के दीमक को हटाना हो, सावित्रीबाई को अपने इन प्रयासों में उनके पति ज्योतिबा फुले  का साथ हमेशा मिला.

Life Stalker

आज जिस फेमिनिस्म की शुरुआत करने की कोशिशें हो रही हैं, उनकी नींव तो सालों पहले ये फेमिनिस्ट रख गयी थी. न उसने मोटी बिंदी लगाई थी,न ही कॉटन की साड़ी पहनी थी. फिर भी वो अपना काम कर गयी, क्योंकि उसे काम करना था, समाज को कुप्रथाओं की गंदगी से साफ़ करना था. 

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