Blind Girls के लिए रोशनी हैं 60 वर्ष की मुक्ता दगली, जो अपनी आंखों को खोकर भी हार नहीं मानी

Nikita Panwar

Sightless Muktaben Dagli Who Empowered 200 Blind Girls: “मैंने अपनी बेटियों के लिए काम किया, जैसे हर एक माता-पिता करते हैं. इसके लिए अवॉर्ड क्यों?” ये कहानी एक ऐसी सोशल एक्टिविस्ट की है, जिन्होंने समाज की उन बेटियों के भविष्य को बदलने का जिम्मा उठाया, जिन्हें ध्यान और सुविधाओं की सबसे ज़्यादा ज़रूरत थी. जी हां, 60 वर्षीय नेत्रहीन मुक्ताबेन दगली 200 दृष्टिहीन लड़कियों को बेहतर भविष्य दे चुकी हैं. हम इस आर्टिकल के माध्यम से मुक्ता दगली की इंस्पायरिंग स्टोरी बताने जा रहे हैं.

महिला दिवस यानि Women’s Day के मौक़े पर शुरू हमारे #DearMentor  कैंपेन के ज़रिए चलिए जानते हैं मुक्ताबेन दगली की कहानी-

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चलिए जानते हैं दृष्टिहीन मुक्ताबेन दगली की इंस्पायरिंग कहानी-

1995 में शुरू किया ‘Pragnachakshu Mahila Seva Kunj (PMSK)’

Pragnachakshu Mahila Seva Kunj

मुक्ता ने 1995 में अपनी पति के साथ मिलकर सुरेंद्रनगर (गुजरात) में ‘ श्री प्रगना चक्षु महिला सेवा कुंज’ की शुरुआत की. वहां मुक्ता और उनकी पति मिलकर दृष्टिहीन लडकियों को शिक्षा, रहने के लिए स्थान और फ़ूड की सुविधाएं देते हैं. अब तक अपने इस खूबसूरत पहल से ये कपल 200 दृष्टिहीन लड़कियों की मदद कर चुका है. साथ ही मुक्ता और उनकी पति ने 30 अपंग और 25 वृद्ध बेसहारों को रहने की पनाह भी दी है.

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एक हादसे ने मुक्ता को ‘दृष्टिहीन लड़कियों’ की मदद करने की वजह दी

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किसी भी काम को करने की पीछे एक वजह होती है. मुक्ता के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ. 7 वर्ष की आयु में (Meningitis) के कारण मुक्ता की आंखों की रोशनी चली गई. जिसकी वजह से उन्हें स्कूल छोड़ना पड़ा. लेकिन उनके अंदर पढ़ने की ललक बचपन से ही थी. क्योंकि 7 साल की छोटी उम्र में ही उन्हें पता था कि एक बेहतर भविष्य के लिए पढ़ना बहुत ज़रूरी है.

लेकिन जब मुक्ता 14 वर्ष की हुई, तो उनकी ज़िन्दगी में एक बहुत ही अहम मोड़ आया. जिसने उनकी ज़िन्दगी ही बदल दी. गर्मी की छुट्टियों के बाद मुक्ता की दोस्त स्कूल नहीं आई और जब स्कूल वालों ने उसके न आने का कारण पता किया, तो पता चला कि उसके माता-पिता ने उसे ज़हर खिला कर जला के मार दिया. इस बात से मुक्ता बेहद घबरा गई थीं.

उन्होंने बताया- “मेरी सहेली ने अक्सर मुझे घर पर होने वाली क्रूरता के बारे में बताया था. उसे बचा हुआ खाना दिया जाता था, परिवार के अन्य सदस्यों या पड़ोसियों से बातचीत करने की इजाज़त नहीं थी. उसके माता-पिता उसे कभी-कभी अन्य जानवरों के साथ शेड में रहने के लिए मजबूर करते थे.”

(2001 में मुक्ता को नारी शक्ति पुरस्कार से सम्मानित किया था)

“उस घटना ने मुझे बहुत प्रभावित किया. हालांकि मुझे अपनी एक दोस्त को खोने का दुख था, लेकिन मैं गुस्से में थी. मेरे जीवन का उद्देश्य स्पष्ट हो गया. मुझे पता था कि मैं नेत्रहीन लड़कियों की मदद करना चाहती हूं, जो अपने माता-पिता के लिए बोझ थीं”. मुक्ता ने कहा.

“मेरे परिवार, दोस्त और पति के कारण ये मुमकिन हो पाया”

मुक्ता ने मिशन के बारे में बताया और कहा, “मैं भाग्यशाली हूं कि मेरे दोस्तों और परिवार ने मुझे अलग नहीं समझा, उनका समर्थन और प्रोत्साहन कारण था कि मैं नेत्रहीन लड़कियों के लिए एक छात्रावास खोलने के अपने सपने को पूरा करने में सक्षम रही”

“मुझे अपना बच्चा नहीं चाहिए था, क्योंकि मैं अपना जीवन लड़कियों को समर्पित करना चाहती थी. दूसरी बात, मैं अपनी आज़ादी से समझौता करने को तैयार नहीं थी. बात 80s के दशक की है, जब एक भारतीय लड़की के लिए शादी सबसे अहम चीज़ हुआ करती थी. मुझे अभी भी विश्वास नहीं हो रहा है कि मुझे पंकज जैसे पति मिले, जो मेरे सबसे मजबूत स्तंभ रहे हैं.”

13 साल की कड़ी मेहनत के बाद मिला इन कपल को डोनेशन

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किसी भी मंज़िल तक पहुंचना आसान नहीं होता है. मुक्ता और पंकज को भी 13 साल की कड़ी मेहनत करनी पड़ी. उन्हें अलग-अलग स्कूल और सरकारी ऑफ़िस में चक्कर लगाने के बाद डोनेशन मिला. जिससे उन्होंने ये हॉस्टल और स्कूल तैयार किया. यहां 1-12 साल की लड़कियों के लिए स्कूल, गेस्ट हाउस, म्यूज़िक स्कूल, हॉस्टल और अन्य सुविधाएं हैं.

यहां तक की इस कैंपस में नेत्रहीन कॉलेज जाने वाली लड़कियों के रहने की जगह भी है. जहां उन्हें कंप्यूटर, होम साइंस, सिलाई की ट्रेनिंग भी दी जाती है. ताकि वो किसी पर भी निर्भर न रहें.

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साथ ही कॉलेज जाने वाली किसी भी लड़की को शादी करनी हो तो मुक्ता उनकी शादी भी करवाती हैं. शादी करवाने से पहले लड़के की अच्छी तरह से जांच पड़ताल भी की जाती है.

यहां बच्चों की एक्स्ट्रा करीकुलर एक्टिविटी भी करवाई जाती है-

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मुक्ता कहती हैं, “मैं हंसी, रोयी, सशक्त और कमज़ोर महसूस किया. मैंने खुद को हर सबक और अनुभव के साथ एक व्यक्ति के रूप में विकसित होते देखा है. मुझे जितने भी सम्मान और पुरस्कार मिले हैं, वे मेरी बेटियों और उनके परिवारों के आभार और आशीर्वाद की बराबरी नहीं कर सकते हैं.”

साल 2019 में मुक्ता दगली को पद्मश्री अवॉर्ड से सम्मानित किया गया था.

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मुक्ता की कहानी तो वाकई बहुत इंस्पायरिंग है.

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