चाय बेची-ट्रक चलाया, नहीं मानी हार, संघर्षों से बनी UP रोडवेज़ की पहली महिला बस ड्राइवर

Abhay Sinha

Story Of  First Woman Bus Driver Of UP: हर किसी के जीवन में संघर्ष होता है. मगर ये तब ज़्यादा बढ़ जाता है, जब आपका साथ देने वाला कोई न हो. उस पर दूसरों की ज़िम्मेदारी भी आपके कंधों पर आ जाएं. एक महिला के लिए स्थिति और भी ख़राब हो जाती है. क्योंकि, समाज के ठेकेदार उस पर अपनी इज़्ज़त का बोझ भी लाद देते हैं. प्रियंका के साथ भी ऐसा ही हुआ. वो यूपी रोडवेज की पहली महिला बस ड्राइवर हैं. मगर यहां तक पहुंचने का उनका सफ़र बेहद चुनौतियों भरा रहा है.

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पति की मौत और जीवन की चुनौतियां

बिहार के बांका जिले के हरदौड़ी गांव की रहने वाली प्रियंका शर्मा की साल 2002 में राजीव नामक युवक से शादी हुई थी. उनके दो बच्चे भी हैं. मगर पति की शराब की लत ने उनकी ज़िंदगी को संघर्षों से भर दिया. पति का इलाज कराते-कराते उनके गहने और घर तक बिक गए. मगर फिर भी वो उन्हें बचा न सकीं.

पति की मौत के बाद प्रियंका पर परिवार और बच्चों की जिम्मेदारी आ गई. परिवार आर्थिक तंगी के दौर से गुज़रने लगा. ऐसे में प्रियंका दिल्ली आ गईं. यहां उन्होंने एक फ़ैक्ट्री में 15,00 रुपये पर नौकरी करनी शुरू कर दी. कुछ ज़्यादा पैसा कमाने के लिए उन्होंने चाय की दुकान लगा ली. मगर इससे भी उनका गुज़ारा नहीं हुआ.

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प्रियंका बच्चों को पढ़ाना चाहती थीं. ऐसे में उन्होंने ट्रक चलाने का फ़ैसला किया. पहले वो एक हेल्पर के तौर पर काम करने लगीं. फिर एक ट्रक ड्राइवर के तौर पर परिवार के लिए कमाने लगीं.

परिवार ने किया विरोध, मगर प्रिंयका ने नहीं छोड़ा स्टीयरिंग

परेशानी में कोई मदद करने नहीं था. रोज़ी-रोटी का इंतज़ाम भी नहीं करता. मगर सलाह और विरोध करने वाले चौतरफ़ा मिल जाते हैं. प्रिंयका के मामले में ये विरोध उनके घर से ही हुआ. प्रियंका का ट्रक ड्राइवर बनना उनके माता-पिता और भाइयों को पसंद नहीं था. उन्होंने उनसे बात भी करना बंद कर दिया.

Story Of  First Woman Bus Driver Of UP

हालांकि, प्रियंका जानती थीं कि उनकी ज़िंदगी की गाड़ी का जो पहिया खड्डे में फंसा है, उसे उन्हें ही बाहर निकालना पड़ेगा. इसलिए उन्होंने ट्रक का स्टीयरिंग छोड़ने से इन्कार कर दिया. ऐसे में प्रियंका ट्रक लेकर कभी महाराष्ट्र तो कभी बंगाल तक जाने लगीं. वो अपने बच्चों को कम समय दे पाती थीं. ऐसे में उन्होंने अपने बच्चों को हॉस्टल में डाल दिया. ताकि वो अच्छी से अच्छी शिक्षा ग्रहण कर सकें. उनके दोनों बच्चे बिहार के भागलपुर स्थित सेंट कोलंबस स्कूल में पढ़ रहे हैं.

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प्रियंका की सारी मेहनत ज़ाया नहीं गई. UPSRTC की ओर से जब बस ड्राइवरों की भर्तियां की गईं, उसमें 26 महिला ड्राइवर को भी शामिल किया गया. उन्हीं में एक नाम प्रियंका का भी था. यूपीएसआरटीसी में सरकारी नौकरी मिलने से वो बस चलाने वाली पहली महिला सरकारी बस ड्राइवर बन गईं.

प्रियंका के संघर्ष की कहानी दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणास्रोत है.

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