महिलाओं को कई शताब्दियों से अपने अधिकारियों के लिये संघर्ष करना पड़ रहा है. महिलायें आज भी संघर्ष कर रही हैं और आगे भी करती रहेंगी. मौजूदा हालातों के देखते हुए तो यही कहा जा सकता है कि इस समाज, इस दुनिया को महिलाओं के लिये सुरक्षित बनाने में कई दशक लगेंगे. बहुत दुख होता है जब लोग फ़ेमिनिस्ट्स के बारे में ग़लत जानकारी जुटाकर, दिमाग़ में बैठा लेते हैं. लोग ये भूल जाते हैं कि महिलाओं को मताधिकार से लेकर घर से बाहर निकलकर शिक्षा प्राप्त करने जैसी बातों के लिये भी कई लड़ाइयां लड़नी पड़ी हैं. कई सशक्त महिलाओं के संघर्षों के फलस्वरूप आज हमारे पास कई अधिकार हैं.
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कौन हैं हंसा जीवराज मेहता?
3 जुलाई, 1897 को गुजरात के सूरत में दर्शनशास्त्र (Philosophy) के प्राध्यापक (Professor) मनुभाई मेहता के घर हंसा का जन्म हुआ. हंसा के नाना, नंदशंकर मेहता ने गुजराती का पहला उपन्यास ‘करन घेलो’ लिखा था.
अपनी इच्छा से किया विवाह
1928 में हंसा ने डॉक्टर, जीवराज मेहता से विवाह किया, कुछ समय के लिये जीवराज बापू के डॉक्टर थे. हंसा ने उस दौर में अपने जाति से बाहर, अपनी इच्छा से विवाह किया. हंसा के परिवार और समुदाय में कोहराम मच गया. एक लेख की मानें तो बड़ौदा के महाराजा, सयाजीराव गायकवाड़ 3 ने हंसा के पिता को इस विवाह को अपनाने के लिये मनाया.
अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ सत्याग्रह में लिया हिस्सा
बापू के कहने पर 1 मई, 1930 को हंसा ने देश सेविका संघ की कमान संभाली. अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ लड़ने के लिये, महिलाओं के इस संघठन ने विदेशी कपड़े, शराब की दुकानें के ख़िलाफ़ विरोध किया. हंसा ने मुंबई में कई विरोध प्रदर्शन किये. उन्हें बॉम्बे कांग्रेस कमिटी (Bombay Congress Committee) का प्रेसिडेंट बनाया गया, कमिटी के सदस्य उन्हें ‘Dictator of Bombay’ कहते थे. बॉम्बे और आज़ादी के आंदोलन का जाना-माना चेहरा बनकर उभरी हंसा की भी गिरफ़्तारी हुई और उन्हें 3 महीने की जेल हुई. गांधी-इरवीन पैक्ट (Gandhi Irwin Pact) की बदौलत हंसा को 5 मार्च, 1931 को रिहा किया गया.
चुनाव जीतकर मुख्यधारा की राजनीति में आईं
बापू के आशीर्वाद से हंसा ने बॉम्बे लेजिस्लेटिव काउंसिल (Bombay Legislative Council) तक पहुंची. हंसा ने रिज़र्व्ड सीट से चुनाव लड़ना स्वीकार नहीं किया, जनरल रास्ता लिया और चुनाव जीता. मुख्यधारा की राजनीति में आने के बाद हंसा ऑल इंडिया वीमेन्स कॉन्फ़्रेस (All India Women’s Conference) से जुड़ी. 1946 में AIWC की प्रेसिडेंट बनीं.
UNHRC में करवाया बड़ा बदलाव
1947 में हंसा को United Nations Commission on Human Rights में बतौर भारतीय प्रतिनिधि भेजा गया. हंसा को United Nations के Commission on Human Rights में Eleanor Roosevelt के ठीक नीचे के पद पर काम करने का मौक़ा मिला.
महिलाओं के अधिकारों के लिये उठाई आवाज़
हंसा ने AIWC के 18वें सेशन में Indian Woman’s Charter of Rights and Duties ड्राफ़्ट करवाया. हंसा ने समानता, महिलाओं के समान अधिकार और शिक्षा के अधिकार की बात की. इस चार्टर में Equal Pay, Equal Distribution of Property और Equal Application of Marriage Laws की भी बात की गई थी.
Constituent Assembly की सदस्य
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भारत की पहली महिला कुलपति
हंसा मेहता को एसएनडीटी यूनिवर्सिटी, बॉम्बे (SNDT University, Bombay) का वायस चांसलर बनाया गया. 1949 में नव निर्मित बड़ौडा यूनिवर्सिटी का वायस चांसलर बनाया गया.