जानिए सिद्दी समाज की महिलाओं और बच्चों को शिक्षित करने वाली हीराबाई लोबी की प्रेरक कहानी

Kratika Nigam

Padma Awardee Hirabai Ibrahim Lobi: 74वें गणंतत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्म पुरस्कारों (Padma Awards 2023) की घोषणा की गई, जिसमें 106 लोगों को पद्म पुरस्कारों से सम्मानित किया गया, जिनमें 6 पद्म विभूषण, 9 पद्म भूषण और 91 पद्मश्री पुरस्कार दिए गए. इसी लिस्ट में गुजरात के सिद्दी समाज की हीराबाई इब्राहीम लोबी (Padma Awardee Hirabai Ibrahim Lobi) का भी नाम शामिल है, जिन्हें पद्म श्री पुरस्कार से नवाज़ा गया है. हीराबाई लोबी अपने समुदाय के महिलाओं के लिए प्रेरणा होने के साथ-साथ उनके नए जीवन की सूत्रधार भी हैं, जिन्होंने महिलाओं को शिक्षित करके उन्हें समाज में सिर उठाकर चलना सिखाया. #DearMentor.

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आइए जानते हैं कि, हीराबाई लोबी कौन हैं और उन्हें क्यों पद्मश्री पुरस्कार से नवाज़ा गया है? क्योंकि इस वुमेन्स डे पर ScoopWhoop Hindi सेलिब्रेट कर रहा है उन महिलाओं को, जो दूसरी महिलाओं को आगे बढ़ा रही हैं एक साथी की तरह और बन रही हैं उनकी #DearMentor.

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कहते हैं, कुछ सीखने के लिए पैसों से ज़्यादा जुनून और जज़्बे की ज़रूरत होती है और इसकी जीती-जागती मिसाल हैं, गुजरात के गिर सोमनाथ ज़िले के तलाला तहसील के जांबुर गांव की रहने वाली हीराबाई लोबी, जो अफ़्रीकी मूल के सिद्दी समाज की सदस्य हैं. इन्होंने अपना सारा जीवन सिद्दी समाज और इस समाज की महिलाओं के लिए लगा दिया. इनके माता-पिता का स्वर्गवास तब ही हो गया था जब हीराबाई बहुत छोटी थीं, फिर इनकी दादी ने इन्हें पाल पोसकर बड़ा किया.

ANI को दिए इंटरव्यू में हीराबाई ने अपने अनुभवों को साझा करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का धन्यवाद किया कि उन्हें इस सम्मान के लायक समझा गया. साथ ही, हीराबाई अपने कठिन परिश्रम और सूझ-बूझ से अभी तक 700 महिलाएं और असंख्य बच्चों की ज़िंदगी संवार चुकी हैं, जबकि उन्हें न कोई अच्छी शिक्षा मिली और न ही उन्होंने कहीं से कुछ सीखा.

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इस पर उन्होंने बताया कि,

गिर, गुजरात Asian Loin के लिए भी जाना जाता है. बब्बर शेरों से घिरे, सिद्दी समुदाय की महिलाओं की आजीविका लकड़ी काटने पर निर्भर थी. इसलिए वो अपने समाज के लिए कुछ करना चाहती थीं और रेडियो के प्रति उनके प्रेम ने ऐसा करने में बहुत मदद की. एक दिन वो रेडियो सुन रही थीं, तभी उसमें जैविक खाद बनाने के बारे में बता रहे थे बस हीराबाई ने उन तरीक़ों को अपनाया और इसी दिशा में अपनी मंज़िल ढूंढने लगीं. इसी के तहत, उन्होंने रेडियो से ही सरकारी योजनाओं और विकास कार्यक्रमों के बारे में भी काफ़ी जानकारी अर्जित की.

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14 साल की उम्र में हीराबाई की शादी हो गयी थी, इन्होंने बच्चों और महिलाओं को जागरूक करने का फ़ैसला लिया. इसके लिए इन्होंने सबसे पहले आगाखान फ़ाउंडेशन जॉइन की और फिर किसान संगठन BIF से जुड़कर महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने का अभियान चलाया.अब तक वो 700 से ज़्यादा महिलाओं को बैंक अकाउंट खुलवाना और पैसे बचाना सिखा चुकी हैं. हालांकि, इनके लिए ये सब करना बहुत मुश्क़िल था, इसके बावजूद बिना हार माने वो अपने कर्तव्य पर डटी रहीं और महिलाओं को जॉब तक दिलाने की भी कोशिश की.

हीराबाई ने ANI से बात करते हुए कहा,

मैंने जंगल में पेड़ नहीं उगाए हैं, लेकिन मैंने जंगल को कटने से बचाया है.

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छोटी सी उम्र में माता-पिता को खोने के चलते इन्होंने सिद्दी समुदाय के बच्चों को बुनियादी शिक्षा प्रदान करने की भावना के साथ कई किंडरगार्टन खुलवाए. इसके अलावा, इन्होंने साल 2004 में महिला विकास फ़ाउंडेशन की स्थापना की और सिद्दी महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए अथक प्रयास किये. इनके प्रयासों से जंबूर की महिलाओं ने किराने की दुकानों और दर्जी का काम करके अपने परिवार की मदद की.

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आपको बता दें, अब तक इन्हें विभिन्न पुरस्कारों से सम्मानित किया जा चुका है, लेकिन जब उन्हें 500 डॉलर का पहला पुरस्कार मिला, तो उन्होंने सारा पैसा गांव के विकास में लगा दिया. हीराबाई को रिलायंस रियल अवॉर्ड, जानकी देवी प्रसाद बजाज अवॉर्ड से भी सम्मानित किया जा चुका है.

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