Superwomen हैं Sukla Debnath, जो महिलाओं को मानव तस्करी से बचाकर उन्हें दे रही हैं नई ज़िंदगी

Nikita Panwar

Sukla Debnath Who Saved Many Women From Human Trafficking: शुक्ला देबनाथ किसी सुपरवुमन से कम नहीं हैं. शुक्ला ब्यूटीशियन होने के साथ-साथ सोशल वर्कर भी हैं. इनकी हिम्मत वाकई हमारे लिए मिसाल है. जिन्होंने ह्यूमन ट्रैफिकिंग में फंसी महिलाओं को बचाकर नया जीवन दिया. साथ ही उनके जीवन यापन का जरिया बनी हैं. हम अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस पर अपने #DearMentor कैंपेन के माध्यम से आपको शुक्ला की प्रेरणादायक कहानी बताते हैं.

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शुक्ला देबनाथ की प्रेरणादायक कहानी-

ख़ूबसूरती रंग या रूप से नहीं भांपी जाती है और ये बात 35 वर्षीय शुक्ला ने साबित कर दिया है. अब शुक्ला को प्यार से लोग ‘दीदी’ भी कहते हैं.

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शुक्ला वेस्ट बंगाल की रहने वाली हैं

जब शुक्ला छोटी थीं, तब भी उन्हें अपनी 4 छोटी बहनों की बहुत फ़िक्र हुआ करता था कि आगे चलकर उनका भविष्य कैसा होगा. उनके पिता की नई हसीमारा में एक छोटी सी मिठाई की दुकान है. लेकिन इस छोटी सी दुकान के आसरे उनका घर नहीं चल पा रहा है.

शुक्ला ने बताया- “किसी भी पिता की तरह, मेरे बाबा भी हमारी शादियों की चिंता करते थे. यह देखकर मैंने फैसला किया कि मैं अपने परिवार पर बोझ नहीं बनूंगी. मेरे जैसे छोटे से गांव में महिलाओं के पास दो ही विकल्प हैं- चाय बागानों में काम करें या शादी का इंतजार करें. लेकिन मैं इस चक्रव्यूह को तोड़ना चाहती थी.

मैंने प्राइमरी स्कूल के बच्चों को ट्यूशन देकर अपनी पढ़ाई का खर्चा उठाया. अपनी स्कूली शिक्षा पूरी करने के बाद, मैंने अपनी साइकिल 1,200 रुपये में बेच दी और 2003 में ब्यूटीशियन के कोर्स की फीस भरी.“

महिलाओं की मदद का उठाया जिम्मा

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ब्यूटीशियन का कोर्स करने के बाद शुक्ला के पास 2 विकल्प थे. एक पैसे कमाना और दूसरा सोसाइटी में आदिवासी महिलाओं की मदद करना और शुक्ला ने महिलाओं की मदद करना सही समझा. शुक्ला चौंक गई जब उन्हें वहां के मानव तस्करी के बारे में पता चला.

बेरोज़गारी और आर्थिक दिक़्क़तें थी इसका कारण

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शुक्ला ने बताया-” इसके पीछे बेरोजगारी और आर्थिक परेशानी मुख्य कारण है. कुछ लोग परिवारों को भरोसा दिलाते हैं कि अगर वे अपनी बेटियों को उनके साथ काम करने के लिए भेजते हैं तो उन्हें 50,000 रुपये प्रति महीने मिलेंगे. ग़रीबो को पैसों का लालच देते थे ताकि वो चली जाएं. लेकिन वो लड़कियां कभी वापस नहीं लौटतीं थी और ज़्यादातर अजीबो गरीब जगहों पर पहुंच जातीं.”

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तब शुक्ला ने निर्णय लिया कि मानव तस्करी में फंसे महिलाओं की मदद करनी है तो उन्होंने एक प्लान तैयार किया.

उन्होंने बताया कि- “चाय के बागान में दिन के 200 रुपये मिलते हैं. जो महीने के हिसाब से 6 हज़ार रुपये बनते हैं. जो परिवार का तो क्या ख़ुद का भी खर्चा नहीं चलता है. इसीलिए मैंने सोचा अगर महिलाओं को ब्यूटीशियन की ट्रेनिंग दी गई, तो वो एक ब्राइडल मेकअप करके कम से कम 7 हज़ार रुपये कमा सकती हैं. ये एक काफ़ी अच्छा ऑप्शन है.”

तो वो समय-समय पर चाय के गार्डन में जाने लगीं और महिलाओं को ट्रेनिंग के लिए समझाने लगीं.

उनके बाबा उनके सबसे बड़े Cheerleader हैं

हर एक इंसान की पीछे कोई न कोई साथ देने वाला ज़रूर होता है और शुक्ला के ज़िंदगी में उनके सबसे बड़े सहायक उनके पिता हैं. उन्होंने बताया- जब मैं कॉलेज गई, तो मेरे परिवार को उम्मीद थी कि मैं एक शिक्षक बनूंगी. लेकिन मैंने जो रास्ता चुना उन्हें उसकी उम्मीद नहीं थी. मेरी मां मेरे इस निर्णय बहुत खुश नहीं थीं. बस मेरे पिता थे, जो मुझे अपने दिल की सुनने के लिए प्रेरित करते थे.

मेरे पिता मुझसे कहा करते थे, ‘चाहो तुम मोची बन जाओ. कोई भी काम छोटा या बड़ा नहीं होता, लेकिन हमेशा अपने लोगों की मदद करना. यही मेरी सबसे बड़ी प्रेरणा बनी. मेरे पिता ने मुझे किसी के चेहरे पर मुस्कान लाना और दूसरों के लिए जीना सिखाया है.”

शुक्ला की पहल ने कई महिलाओं को काम करने के लिए प्रेरित किया है.

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