IAS ऑफ़िसर, पूर्णा सुदंरी जिसने आंखों की रौशनी खोने के बाद भी अपना सपना पूरा करने की ठानी और सफल हुई

Kratika Nigam

IAS Success Story: लोगों के पास सबकुछ होता है फिर भी वो अपने सपनों को पूरा करने की बजाय हार मान लेते हैं. वहीं कुछ ऐसे लोग होते हैं, जिनमें कुछ कमियां होने के बाद भी वो अपने सपने को नहीं छोड़ते. उन कमियों के साथ उसे पूरा करने के लिए जी जान से लगे रहते हैं. ऐसी ही कुछ कहानी है तमिलनाडु की रहने वाली पूर्णा सुंदरी (Poorna Sunthari) की जो आंखों से देख नहीं सकतीं फिर भी पूरी दुनिया को जीतना चाहती हैं और जीत भी रही हैं, जिन्हें अपने साहस के लिए ख़ूब सराहना मिल रही है.

पूर्णा, तमिलनाडु के मदुरै की रहने वाली हैं. 5 साल की छोटी सी उम्र में पूर्णा की आंखों की रोशनी कम होने लगी थी तब उनके माता-पिता ने उनका नेत्र अस्पताल में इलाज कराया. हालांकि, पूर्णा जन्म से नेत्रहीन नहीं थीं. डॉक्टरों ने उन्हें बताया कि,

पूर्णा को एक दुर्लभ आंखों से संबंधित बीमारी है, जिसके चलते कुछ समय बाद उनकी दोनों आंख की रोशनी पूरी तरह से चली जाएगी.

पूर्णा के माता-पिता ने उनकी दोनों आंखों की सर्जरी कराई उसके बावजूद धीरे-धीरे उनकी दोनों आंखों की रोशनी चली गई. इससे पूर्णा को पढ़ाई में काफ़ी दिक़्क़तें आने लगी, जिसमें उनके माता-पिता और उनके दोस्तों ने उनका भरपूर साथ दिया. पूर्णा ने बताया कि,

तैयारी में मैंने ऑडियो फ़ॉर्मेट में उपलब्ध पढ़ाई की चीज़ों के मदद ली. इसके अलावा, लैपटॉप में स्पीकिंग सॉफ़्टवेयर की भी मदद ली. मेरे माता-पिता मुझे किताबें पढ़कर सुनाते थे साथ ही मेरे दोस्तों और सीनियर्स ने मेरा बहुत सपोर्ट किया.

पूर्णा ने अपनी दोनों आंखों की रोशनी खोने के बाद भी UPSC की तैयारी करते हुए अपने चौथे प्रयास में सफल होकर दिखाया है. इन्होंने ऑल इंडिया 286वीं रैंक हासिल की है. न्यूज़ एजेंसी ANI को बताया,

मेरे माता-पिता ने मेरा बहुत साथ दिया. मैं इस सफलता का श्रेय उन्हें देना चाहूंगी. ये मेरा चौथा प्रयास था. इस परीक्षा की तैयारी में मुझे 5 साल लग गए.

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पूर्णा ने मदुरै पिलिमार संगम उच्चतर माध्यमिक विद्यालय से पढ़ाई की है. उन्होंने बताया कि,

मैंने 11वीं कक्षा में IAS ऑफ़िसर बनने का सपना देखा था. मुझे सिविल सर्विस परीक्षा (UPSC) देने की प्रेरणा टी उधायचंद्रं और यू सगायम जैसे IAS ऑफ़िसर से मिली. मगर मेरे लिए ये सफ़र इतना आसान था, इसमें मेरे माता-पिता ने और जोस्तों ने मेरा बहुत साथ दिया तभी मैं इस मक़ाम को हासिल कर पाई हूं. मैं शिक्षा,स्वास्थ्य और महिला अधिकारिता जैसे क्षेत्रों में अपनी सेवाएं देना चाहती हूं.

Image Source: indianmasterminds

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आपको बता दें, पूर्णा पहले तीन प्रयास में सफलता न मिलने से काफ़ी निराश हो गई थीं. मगर उन्होंने दोबारा हिम्मत जुटाई और अपनी मेहनत, परिवार वालों और दोस्तों के साथ से अपने सपने को पूरा करके दिखाया है.

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