भारत को स्वतंत्रता दिलाने में देश के करोड़ों लोगों ने जी-जान लगा दी थी. उनमें से कुछ स्वतंत्रता सेनानियों को हम जानते हैं, तो कुछ ऐसे भी हैं जिनका योगदान हमें आज शायद याद नहीं होगा. इनमें पूर्वोत्तर के कुछ स्वतंत्रता सेनानी भी शामिल हैं. आज हम आपको कुछ ऐसी ही North-East की हस्तियों के बारे में बताएंगे, जिनके बलिदान की कहानी बहुत कम लोगों तक पहुंची है. 

ये भी पढ़ें: भारत 1947 में आज़ाद हुआ था, लेकिन जानते हो अंतिम ब्रिटिश सैन्य दल ने देश कितने दिन बाद छोड़ा था?

1. कनकलता बरुआ

कनकलता बरुआ असम की वो वीरांगना थीं, जिन्होंने मात्र 18 साल की उम्र में तिरंगे की ख़ातिर सीने पर गोली खाई थी. 17 साल की उम्र में कनकलता ने आज़ाद हिंद फ़ौज में भर्ती होने की कोशिश की थी, लेकिन नाबालिग होने के चलते उन्हें मना कर दिया गया. फिर वो भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रीय हो गईं. 20 सितंबर, 1942 में हुई क्रांतिकारियों की मीटिंग में तेजपुर थाने पर तिरंगा फैलाने का फै़सला किया गया था. इसी दल का नेतृत्व करते हुए इन्होंने अपनी शहादत दी थी. 

wikipedia

2. पा तोगन संगमा

पा-तोगन नेंगमिनजा संगमा मेघालय की गारो जनजाति के प्रसिद्ध नेता थे. उनकी फ़िजिक कमाल की थी और लड़ाई में उन्हें जल्दी कोई हरा नहीं सकता था. 1872 में जब ब्रिटिश सैनिकों ने मेघालय पर कब्ज़ा करने के इरादे से गारो पहाड़ पर कैंप लगाया, तब इन्होंने अपने साथियों के साथ उन पर हमला कर दिया. लेकिन अंग्रज़ों के पास बंदूकें थीं और इनके पास पारंपरिक हथियार. इनके अधिकतर साथी मारे गए और वो भी ब्रिटिश सैनिकों की एक गोली का शिकार हो गए. 

garojournal

3.पौना ब्रजबासी

पौना ब्रजबासी मणिपुर साम्राज्य की सेना के मेजर थे. वो मणिपुरी मार्शल आर्ट और तलवारबाज़ी में माहिर थे. उन्हें 1891 में अंग्रेज़ों के साथ हुए एंगलो-मणिपुर युद्ध के लिए याद किया जाता है. जब अंग्रेज़ों ने मणिपुर को हथियाने के लिए राज्य पर हमला किया था, तो उन्हें ही अंग्रेज़ों से लड़ने के लिए भेजा गया था. कहते हैं बहुत कम हथियारों के साथ वो वीरता से लड़े थे. जब वो निहत्थे हो गए थे तो एक अंग्रेज़ अफ़सर ने उन्हें अपने साथ आने का ऑफ़र दिया था. लेकिन उन्होंने देशद्रोह करने से बेहतर अपना सिर काटने की पेशकश कर दी थी. वो इस युद्ध में शहीद हो गए. 

tripadvisor

4. बीर टिकेंद्रजीत सिंह

बीर टिकेंद्रजीत स्वतंत्र मणिपुर रियासत के राजकुमार थे. उन्हें ‘कोइरेंग’ भी कहते थे. वे मणिपुरी सेना के कमांडर थे. उन्होने ‘महल-क्रान्ति’ की जिसके फ़लस्वरूप 1891 में अंग्रेज़-मणिपुरी युद्ध शुरू हुआ. अंग्रेज-मणिपुरी युद्ध के दौरान अंग्रेज़ों ने उन्हें पकड़कर सार्वजनिक रूप से फ़ांसी दे दी थी.

pinterest

5. रानी गाइदिन्ल्यू

रानी गाइदिन्ल्यू Rongmei Naga(रोंग्मी नागा) जनजाति से ताल्लुक रखने वाली लीडर थीं. इन्होंने 13 साल की उम्र में ही अपनी जनजाति को अंग्रेज़ों के ख़िलाफ विद्रोह करने के लिए प्रेरित करना शुरू कर दिया था. कई बार इनके गुट ने अंग्रेज़ों पर छिपकर हमले भी किए. लेकिन 17 अक्टूबर 1932 को ब्रिटिश सैनिकों ने इन्हें गिरफ़्तार कर जेल में डाल दिया. आज़ादी के बाद इन्हें रिहा कर दिया गया था, तब भी इन्होंने अपनी जनजाति के लिए काम करना जारी रखा. इन्हें भारत सरकार ने पद्म भूषण से सम्मानित किया था.

wordpress

6. भोगेश्वरी फुकनानी

असम के नौगांव ज़िले से ताल्लुक रखती थीं क्रांतिकारी भोगेश्वरी फुकनानी. इन्होंने बज़ुर्ग होने के बावजूद ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ में लोगों को बढ़-चढ़कर हिस्सा लेने के लिए प्रेरित किया था. 1942 में वो बरमपुर इलाके में एक सभा को संबोधित कर रही थीं, तभी अंग्रेज़ों ने उन पर हमला कर दिया. उनकी गोली का शिकार होकर वो शहीद हो गई थीं. 

inuth

7. मोजे रिबा

स्वतंत्रता सेनानी मोजे रिबा अरुणाचल प्रदेश के सियांग ज़िले के रहने वाले थे. स्वतंत्रता संग्राम में कूदने से पहले वो एक व्यापारी थे. लेकिन डिब्रूगढ़ की एक बिज़नेस ट्रिप पर उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के बारे में सुना, तब उनका मन बदल गया और वो इस संग्राम में कूद गए. वो इंडियन नेशनल कॉंग्रेस में शामिल होने वाले अरुणाचल प्रदेश के पहले व्यक्ति थे. उन्होंने आज़ादी के लिए किए गए कई मार्च और रैलियों का नेतृत्व किया था. इन्हें आज़ादी के बाद ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया था.

sentinelassam

8. यू कियांग नंगबाह

ये मेघालय के एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 1860 में अंग्रेज़ों के ख़िलाफ विद्रोह का नेतृत्व किया था. ये वो दौर था जब पश्चिमी जयंतिया पहाड़ के इलाके के लोगों पर अंग्रेज़ों ने ज़ुल्म करना शुरू कर दिया था. तब इन्होंने अपना एक संगठन बनाया और ब्रिटिश सैनिकों से लड़ने के लिए उन्हें तैयार किया. ये गुरिल्ला अटैक करने में माहिर थे और इसके ज़रिये अंग्रेज़ों को परेशान करने लगे. दिसंबर 1862 में किसी ने इनकी मुखबिरी कर दी और अंग्रेज़ों ने इन्हें गिरफ़्तार कर लिया. बाद में ब्रिटिश सरकार ने नंगबाह को  सार्वजनिक रूप से फ़ांसी दे दी थी. 

wikipedia

9. गोपीनाथ बोरदोलोई

असम से ताल्लुक रखने वाले गोपीनाथ बोरदोलोई ने अंग्रज़ों से लोहा लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी. यही नहीं, उन्होंने असम को भारत का हिस्सा बने रहने के लिए पूरा जोर लगा दिया था. उन्होंने 1922 में इंडियन नेशनल कॉंग्रेस जॉइन की थी. पूर्वोत्तर में इन्होंने असहयोग आंदोलन और भारत छोड़ो आंदोलन को जन-जन तक पहुंचाया था. इन्हें आज़ादी के बाद अविभाजित असम का मुख्यमंत्री चुना गया था. 

thefamouspeople

10. यू तिरोत सिंग श्याम

यू तिरोत सिंग श्याम(U Tirot Sing Syiemlieh) मेघालय की खासी हिल्स के Nongkhlaw क्षेत्र के प्रमुख थे. उन्होंने 1829-1833 में एंग्लो-खासी युद्ध में खासी समुदाय का नेतृत्व किया था. अंग्रेज़ों ने ब्रह्मपुत्र घाटी और सुरमा घाटी को जोड़ने के लिए खासी हिल्स से होती हुई एक सड़क बनाने का प्रस्ताव Syiemlieh के पास भेजा. वो मान गए लेकिन अंग्रेज़ों ने उनसे धोखा किया. उन्होंने खासी समुदाय के खिलाफ़ युद्ध छेड़ दिया. 1829-1833 तक वो अंग्रेज़ों से गुरिल्ला युद्ध लड़ते रहे, मगर एक बार अंग्रेज़ों की गोली उन्हें लग गई. वो घायल अवस्था में पहाड़ियों में छुपे थे. उनके एक साथी ने धोखा देकर उन्हें पकड़वा दिया. इसके बाद ब्रिटिश सैनिक उन्हें ढाका ले गए, जहां 17 जुलाई 1835 को उनकी मृत्यु हो गई.

theshillongtimes

पूर्वोत्तर से ताल्लुक रखने वाले इन सभी स्वतंत्रता सेनानियों को हमारा कोटी-कोटी प्रणाम.