भारत प्राचीन काल में विश्व गुरु था. इस बात में कोई दो राय नहीं है. विश्व में जो सभ्यताएं सबसे समृद्ध थी उनमें भारतभूमि अग्रणी थी. इस उपलब्धि के पीछे थे वो महान लोग जिन्होंने जीवन के अलग-अलग क्षेत्रों में महत्वपूर्ण योगदान दिया था. सबके मिले-जुले प्रयासों ने भारत को बुलंदियों तक पहुंचाया था.

आज हम ऐसे ही लोगों को याद कर रहें हैं जिन्होंने प्राचीन काल में हमारी सभ्यता और संस्कृति को एक नई दिशा दी:

1. चाणक्य 

चाणक्य एक शिक्षक, दार्शनिक और शाही सलाहकार थे जिन्होंने मौर्य साम्राज्य की स्थापना और वो प्रथम मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त की सत्ता के मुख्य वास्तुकार थे. कौटिल्य या विष्णु गुप्त के नाम से जाने जाने वाले चाणक्य ‘अर्थशास्त्र’ नामक ग्रंथ के लेखक भी थे. चाणक्य को भारत में अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के क्षेत्र में अग्रणी माना जाता है. उनके कई विचार और सिद्धांत आज के समय में भी उपयोगी हैं.

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2. सम्राट अशोक 

अशोक (304-232 B.C.) मौर्य वंश के सबसे शक्तिशाली राजाओं में से एक थे, जिन्होंने अफगानिस्तान तक अपने साम्राज्य का विस्तार किया. मगध में अपनी राजधानी से उन्होंने प्राचीन भारत के सबसे बड़े साम्राज्य पर शासन किया. एक क्रूर योद्धा के रूप में पहचाने जाने वाले अशोक का हृदय परिवर्तन हुआ और उन्होंने हिंसा का त्याग कर दिया; बौद्ध धर्म को स्वीकार किया और सहिष्णुता, नैतिक कल्याण को बढ़ावा दिया. अशोक स्तम्भ बनवाने के साथ-साथ उन्होंने विश्वविद्यालयों, सड़कों, अस्पतालों और सिंचाई प्रणालियों का भी निर्माण करवाया. 

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3. वाल्मीकि

आदिकवि के रूप में प्रसिद्ध वाल्मीकि ‘संस्कृत रामायण’ के रचयिता हैं. वाल्मीकि ने संस्कृत के प्रथम महाकाव्य की रचना की थी. उनके द्वारा रची रामायण ‘वाल्मीकि रामायण’ कहलाई. अपने महाकाव्य ‘रामायण’ में उन्होंने अनेक घटनाओं के समय को  सूर्य, चंद्र तथा अन्य नक्षत्र की स्थितियों के द्वारा वर्णन किया है. इससे पता चलता है कि वो ज्योतिष विद्या एवं खगोल विद्या के भी विद्वान थे.

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4. वेदव्यास

महर्षि कृष्णद्वैपायन वेदव्यास महाभारत ग्रंथ के रचयिता हैं. वेदव्यास महाभारत के रचयिता ही नहीं, बल्कि उस समय की अन्य घटनाओं के साक्षी भी रहे हैं. ऐसा माना जाता है कि उन्होने ही 18 पुराणों की भी रचना की है. 

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5. महावीर

महावीर जैन धर्म के 24वें तीर्थकर हैं. इनका जन्म क़रीब ढाई हजार साल पहले (599 BC से पहले) वैशाली में हुआ था. 30 साल की आयु में महावीर ने संसार से विरक्त होकर राज वैभव त्याग दिया और संन्यास धारण कर आत्मकल्याण के पथ पर निकल गये. ज्ञान प्राप्त करने के बाद उन्होंने इसका प्रसार किया. इस दौरान महावीर स्वामी के कई अनुयायी बने जिसमें उस समय के प्रमुख राजा बिम्बिसार, कुनिक और चेटक भी शामिल थे. जैन समाज द्वारा महावीर स्वामी के जन्मदिवस को महावीर-जयंती के रूप में मनाया जाता है.

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6. गौतम बुद्ध

गौतम बुद्ध बौद्ध धर्म की स्थापना गौतम बुद्ध के शिक्षाओं पर हुआ है. इनका जन्म लुंबिनी में 563 ईसा पूर्व शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था. सिद्धार्थ विवाहोपरांत प्रथम नवजात शिशु राहुल और धर्मपत्नी यशोधरा को त्यागकर संसार को मरण, दुखों से मुक्ति दिलाने के मार्ग एवं सत्य दिव्य ज्ञान की ख़ोज में राजपाठ का मोह त्यागकर चले गए. वर्षों की कठोर साधना के बाद बोध गया (बिहार) में बोधि वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई और वे उपदेश देने लगे. 

बुद्ध के धर्म प्रचार से भिक्षुओं की संख्या बढ़ने लगी. बड़े-बड़े राजा-महाराजा भी उनके शिष्य बनने लगे. 
भिक्षुओं की संख्या बहुत बढ़ने पर बौद्ध संघ की स्थापना की गई. भगवान बुद्ध ने ‘बहुजन हिताय’ लोक कल्याण के लिए अपने धर्म का देश-विदेश में प्रचार करने के लिए भिक्षुओं को इधर-उधर भेजा. अशोक आदि सम्राटों ने भी विदेशों में बौद्ध धर्म के प्रचार में अपनी अहम्‌ भूमिका निभाई. मौर्यकाल के दौरान बौद्ध धर्म भारत से निकलकर चीन, जापान, कोरिया, मंगोलिया, बर्मा, थाईलैंड, हिंद चीन, श्रीलंका आदि में फैल चुका था. इन देशों में बौद्ध धर्म बहुसंख्यक धर्म है.

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7. पाणिनि 

पाणिनि (700 B.C.) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण माने जाते हैं. इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार हज़ार सूत्र हैं.संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान बहुत महत्पूर्ण माना जाता है. अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है बल्कि इसमें तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्रण मिलता है. उस समय के भूगोल, सामाजिक, आर्थिक, शिक्षा और राजनीतिक जीवन, दार्शनिक चिंतन, ख़ान-पान, रहन-सहन आदि के प्रसंग स्थान-स्थान पर अंकित हैं.

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8. कालिदास 

कालिदास संस्कृत भाषा के महान कवि और नाटककार थे. उन्होंने भारत की पौराणिक कथाओं और दर्शन को आधार बनाकर रचनाएं की. उनकी रचनाओं में भारतीय जीवन और दर्शन के विविध रूप और मूल तत्त्व निहित हैं. अभिज्ञानशाकुंतलम् उनकी सबसे प्रसिद्ध रचना है. यह नाटक उन भारतीय साहित्यिक कृतियों में से एक है जिनका सबसे पहले यूरोपीय भाषाओं में अनुवाद हुआ था. मेघदूतम् कालिदास की एक और सर्वश्रेष्ठ रचना है. 

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9. चरक

चरक एक महर्षि एवं आयुर्वेद विज्ञानी थे जो कुषाण राज्य के राजवैद्य थे. इनके द्वारा रचित चरक संहिता एक प्रसिद्ध आयुर्वेद ग्रन्थ है. इसमें रोगनाशक एवं रोगनिरोधक दवाओं का उल्लेख है तथा सोना, चाँदी, लोहा, पारा आदि धातुओं के भस्म एवं उनके उपयोग का वर्णन मिलता है. महर्षि चरक को भारतीय औषधि विज्ञान के मूल प्रवर्तकों में से एक माना जाता है. 

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10. सुश्रुत

सुश्रुत प्राचीन भारत के महान चिकित्साशास्त्री एवं शल्यचिकित्सक (सर्जन) थे. उनको शल्य चिकित्सा(सर्जरी) का जनक कहा जाता है. ‘सुश्रुत संहिता’ के रचियता आचार्य सुश्रुत का जन्म काशी में हुआ था. इन्होंने धन्वन्तरि से शिक्षा प्राप्त की थी. सुश्रुत संहिता को भारतीय चिकित्सा पद्धति में विशेष स्थान प्राप्त है. सुश्रुत ने 300 प्रकार की ऑपरेशन प्रक्रियाओं की ख़ोज  की थी. उन्होंने कॉस्मेटिक सर्जरी में विशेष निपुणता हासिल कर ली थी. सुश्रुत आंखों का ऑपरेशन  भी करते थे. सुश्रुत संहिता में मोतियाबिंद के ओपरेशन करने की विधि को विस्तार से बताया गया है. उन्हें शल्य क्रिया द्वारा प्रसव कराने का भी ज्ञान था. सुश्रुत को टूटी हुई हड्डियों का पता लगाने और उनको जोड़ने में विशेषज्ञता प्राप्त थी.

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11. पतंजलि

पतंजलि प्राचीन भारत में एक मुनि थे जिन्हें संस्कृत के कई महत्वपूर्ण ग्रन्थों का रचयिता माना जाता है. इनमें से योगसूत्र उनकी महानतम रचना है जो योगदर्शन का मूलग्रन्थ है. भारतीय साहित्य में पतंजलि द्वारा रचित ३ मुख्य ग्रन्थ मिलते हैं- योगसूत्र, अष्टाध्यायी पर भाष्य और आयुर्वेद पर ग्रन्थ. कुछ विद्वानों का मत है कि ये तीनों ग्रन्थ एक ही व्यक्ति ने लिखे, जबकि अन्य की धारणा है कि ये विभिन्न व्यक्तियों की कृतियां हैं.

पतंजलि शुंग वंश के शासनकाल में थे. उन्होंने पुष्यमित्र शुंग का अश्वमेघ यज्ञ भी सम्पन्न कराया था. वे व्याकरणाचार्य पाणिनी के शिष्य थे.

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मेरे देश की धरती, सोना उगले उगले हीरे मोती….ओ मेरे देश की धरती!