इतिहास गवाह है कि घोड़ों के बल पर कई ऐतिहासिक युद्ध लड़े गए. उस दौरान सेना में घोड़ों का चयन ध्यान से किया जाता था. तेज़ रफ़्तार और बहादुर घोड़ों की नस्ल वाले घोड़ों को सही प्रशिक्षण के साथ लड़ाई में शामिल किया जाता था. फ़ौज में शामिल होने वाले ये जांबाज़ घोड़े बिना थके कई मीलों तक का सफ़र करने में सक्षम माने जाते थे और दुश्मनों से लड़ने में पूरी हिम्मत लगा देते थे. आइये, आपको मिलवाते हैं इतिहास में दर्ज उन पांच जांबाज़ घोड़ों से, जिनकी रफ़्तार और बहादुरी के क़िस्से सदा-सदा के लिए अमर हो गए.    

1. छत्रपति शिवाजी का घोड़ा 

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भारत के गौरव वीर छत्रपति शिवाजी ने कई लड़ाइयां लड़ीं. उनकी सेना में बहादुर घोड़ों को शामिल किया जाता था, जो दुश्मनों को धूल चटाने में उनकी मदद कर सकें. जानकारी के अनुसार उनकी सेना में भीमथड़ी और अरबी नस्ल के घोड़े ज़्यादा इस्तेमाल किए जाते थे. वहीं, कहते हैं कि वीर शिवाजी का मानना था कि एक योद्धा को घोड़े बदलते रहने चाहिए. 

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यही वजह थी उनके पास एक नहीं बल्कि सात घोड़े थे. उनके नाम थे मोती, विश्वास, रणवीर, गजरा, कुष्णा, तुरंगी और इंद्रायणी. कहते हैं कि वीर शिवाजी के अंतिम दिनों में कृष्णा उनके साथ था. यह सफ़ेद रंग का स्टेलियन नस्ल का घोड़ा था. यह घोड़ा तेज़ रफ़्तार के साथ ऊंची भूमी पर चढ़ने में भी सक्षम माना जाता था.  

2. महाराणा प्रताप का घोड़ा  

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महाराणा प्रताप के साथ-साथ उनके स्वामी भक्त घोड़े के नाम भी बड़े सम्मान और गर्व से लिया जाता है. उनके घोड़े का नाम था चेतक. कहते हैं कि चेतक की रफ्तार देख दुश्मन सेना की आंख फटी की फटी रह जाती थी. बता दें कि चेतक, ईरानी मूल का था और महाराणा प्रताप का सबसे प्रिय घोड़ा. कहते हैं कि एक बार मारवाड़ के दरबार में एक गुजराती व्यापारी आया. जिसके पास तीन घोड़े थे, जिनका नाम चेतक, त्राटक और अटक था.   

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उनमें चेतक ने सभी को बहुत ही ज़्यादा प्रभावित किया. कहते हैं कि महाराणा ने उस व्यापारी से तीनों घोडे़ ख़रीद लिए थे. उन्होंने चेतक को अपने पास रखा, त्राटक को अपने भाई शक्ति सिंह को दे दिया और अटक को प्रशिक्षण के लिए भेज दिया. कहते हैं कि हल्दी घाटी की लड़ाई में चेतक ने दुश्मनों की छाती पर चढ़कर वार किया. लेकिन, वो बाद में वीरगति को प्राप्त हो गया.    

3. महाराजा रणजीत सिंह की घोड़ी  

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महाराजा रणजीत सिंह को भी घोड़ों का बहुत शौक़ था. उनकी सेना में बेहतरीन घोड़े ही भर्ती किए जाते थे. कहते हैं कि एक बार महाराजा के दरबार में एक यूरोपीय अफ़सर आया. उसने बताया कि पेशावर के सरदार यार मोहम्मद ख़ान के पास ‘सिरी’ नाम की एक घोड़ी है, जिसकी रफ़्तार तूफ़ान जैसी है. यह बात सुनकर महाराजा ने घोड़ी लाने के लिए पेशावर के सरदार के पास अपने कई दूत भेजे, लेकिन उसने घोड़ी नहीं दी.   

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बाद में एक यूरोपीय जनरल Ventura को भेजा गया, जो ‘सिरी’ को लेकर आया. कहा जाता है कि उस घोड़ी को लाने में उस समय के 60 लाख रुपए ख़र्च किए गए थे. महाराजा रणजीत सिंह ने इस घोड़ी का नाम ‘लैला’ रखा था.   

4. सिकंदर का घोड़ा   

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कहते हैं कि सिकंदर मेसिडोनिया से ईरान के रौंदता हुआ भारत की सीमा में दाख़िल हुआ था. उसने यह लंबा सफ़र अपने प्रिय घोड़े ‘Bucephalus’ के साथ किया. माना जाता है कि जब सिकंदर 13 वर्ष का था, तब उसने यह घोड़ा मेसिडोनिया के एक व्यापारी से ख़रीदा था.   

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वहीं, यह घोड़ा भयानक युद्धों और विजयी यात्रा में सिकंदर के साथ ही रहा. यह घोड़ा उस वक़्त भी सिकंदर के साथ था जब सिकंदर की पोरस के संग लड़ाई हुई थी. 

5. रानी लक्ष्मीबाई का घोड़ा  

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रानी लक्ष्मीबाई के पास तीन घोड़े थे. एक का नाम था सारंगी, दूसरे का नाम पवन और तीसरे का नाम था बादल. कहते हैं कि रानी लक्ष्मीबाई अपने घोड़े पर बैठकर क़िले की 100 फीट ऊंची दीवार को पार कर गईं थी. कहा जाता है कि वो घोड़ा बादल था. इस तथ्य से पता लगाया जा सकता है उनका घोड़ा कितना बहादुर था.