खाने में थोड़ा सा ‘नमक’ कम ज़्यादा हो जाये, तो पूरा स्वाद बदल जाता है. इसलिये खाना बनाते समय ‘नमक’ का विशेष ध्यान रखा जाता है. ‘नमक’ इंसान की वो ज़रूरत है, जिसके बिना उसके जीवन का स्वाद अधूरा है. एक वक़्त ऐसा भी था जब भारतीयों को ‘नमक’ के लिये भारी-भरकम टैक्स (Tax) देना पड़ता था. आम जनता को इसी परेशानी से निजात दिलाने के लिये गांधीजी (Gandhi Ji) ने अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने का निर्णय लिया था.

william

ये भी पढ़ें: इन 20 तस्वीरों में देखिए ‘दांडी मार्च’ के दौरान गांधी जी और उनके साथियों को क्या कुछ सहना पड़ा था 

दांडी मार्च का मक़सद 
ब्रिटिश सरकार ने भारतीयों को प्रताड़ित करने के लिये ‘नमक’ पर टैक्स लगा रखा था. गांधीजी ब्रिटिशों के इसी अत्याचारी क़ानूनों में बदलाव लाना चाहते थे. इसी उद्देश्य को मद्देनज़र रखते हुए महात्मा गांधी ने ‘दांडी मार्च’ निकालने का प्लान बनाया.

pinimg

ये एक ब्रिटिश राजनीतियों के ख़िलाफ़ एक अहिंसात्मक विद्रोह था. अहिंसात्मक मार्च में गांधी जी और उनके सहयोगियों को साबरमती आश्रम से पैदल चल कर दांडी तक पहुंचना था. दांडी पहुंचने के बाद गांधीजी और उनके समर्थकों ने ख़ुद का ‘नमक’ तैयार करने की योजना बनाई थी.

blogspot

जब महात्मा गांधी ने हिलाई ब्रिटिश साम्राज्य की नींव

रिपोर्ट के अनुसार, गांधी और उनके सर्मथकों ने 24 दिनों के अंदर साबरमती से दांडी तक की दूरी पूरी की. 5 अप्रैल 1930 में ‘दांडी घाट’ पहुंचे. अगली सुबह उन्होंने अपने अनुयायियों के साथ मिलकर ‘नमक’ का निर्माण किया. इसके साथ ही उन्होंने नमक हाथ में लेते हुए कहा कि ‘इसके साथ, मैं ब्रिटिश साम्राज्य की नींव हिला रहा हूं.’

abc

देखते ही देखते ‘नमक’ क़ानून तोड़ते हुए गांधी जी की ये तस्वीर पूरे हिंदुस्तान में फ़ैल गई. ब्रिटिश साम्राज्य के अत्याचारी क़ानून के खिलाफ़ चारो तरफ़ विद्रोह की आग थी. गांधीजी को समर्थन देने के लिये जगह-जगह ‘नमक सत्याग्रह’ हो रहे थे.  

महाराष्ट्र का मशहूर सत्याग्रह 

गांधीजी के सपोर्ट में महाराष्ट्र में भी ‘नमक सत्याग्रह’ किया गया था. दिलचस्प बात ये है कि ये सत्याग्रह राज्य की एक गृहणी कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने शुरू किया था. कमलादेवी चट्टोपाध्याय ने चौपाटी पहुंच कर ‘नमक क़ानून’ का उल्लघंन किया था. पुलिस ने उन पर लाठियां बरसाई और वहां से भगाने की तमाम कोशिशें की, लेकिन वो नहीं रुकी.  

twimg

कमलादेवी की हिम्मत देखने के बाद हज़ारों की तादाद में महिलाएं उनके साथ ‘नमक क़ानून’ तोड़ने में जुट गई. आखिरकार वो पल आया जब कमलादेवी और उनके साथ आई अन्य महिलाओं ने ‘नमक’ बना कर इतिहास रचा. अच्छी बात ये थी कि उनके द्वारा बनाया गया पहला ‘नमक’ का पैकेट 501 रुपये में बिका था.  

britannica

ये भी पढ़ें: नमक क़ानून तोड़ने के लिए 1930 में केवल दांडी मार्च ही नहीं, बल्कि तमिलनाडु में भी हुआ था एक आंदोलन 

इस दौरान ब्रिटिश पुलिस ने गांधीजी समेत कई सर्मथकों को गिरफ़्तार भी किया, लेकिन आंदोलन जारी रहा. अंत में ‘नमक कानून’ पर एक समझौत किया गया, जिसे ‘गांधी-इरविन पैक्ट’ के नाम से जाना जाता है. और इस तरह भारतीयों को एक बड़ी मुसीबत से मुक्ति मिल गई.