संजय गांधी (Sanjay Gandhi) भारतीय राजनीति वो दबंग चेहरा, जो अपनी बेबाक़ी के लिए जाना जाता था. संजय गांधी अपने बड़े भाई राजीव गांधी से एक दम अलग थे. राजीव जहां शांत स्वभाव के थे वहीं संजय बेहद ज़िद्दी और ग़ुस्सैल थे. 1970 के दशक में संजय गांधी को इंदिरा गांधी के राजनीतिक उत्तराधिकारी के तौर पर देखा जाता था, लेकिन 23 जून, 1980 को उनके आकस्मिक निधन से देश की सियासी हवा पूरी तरह से बदल गई थी.

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संजय गांधी का जन्म 14 दिसंबर 1946 को दिल्ली में हुआ था. वो भारत की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के बेटे और राजीव गांधी के छोटे भाई थे. संजय की स्कूली शिक्षा दिल्ली के ‘सेंट कोलंबिया स्कूल’ और देहरादून के ‘वेल्हम बॉयज़’ से हुई. इसके बाद उन्होंने स्विट्ज़लैंड के बोर्डिंग स्कूल ‘Ecole D’Humanite’ से भी पढ़ाई की. संजय ने देहरादून के प्रतिष्ठित ‘दून कॉलेज’ में भी दाख़िला लिया, लेकिन पढ़ाई-लिखाई में मन नहीं लगने के कारण पढ़ाई बीच में ही छोड़ दी.

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संजय गांधी को बचपन से ही रफ़्तार से बड़ा लगाव था. उन्हें लग्ज़री कारों के साथ-साथ उड़ान भरने का भी शौक़ था. इसलिए उन्होंने पायलट बनने की ट्रेनिंग ली और कमर्शियल पायलट का लाइसेंस भी हासिल किया. हालांकि, कार और हवाई जहाज के शौक़ीन होने बावजूद देश के प्रतिष्ठित राजनीतिक परिवार से होने चलते को भी राजनीति में ही अपनी उड़ान भरनी पड़ी. पर्सनल लाइफ़ हो या फिर प्रोफ़ेशनल लाइफ़ संजय गांधी ने इसी रफ़्तार के साथ भारतीय राजनीति में अपनी पकड़ भी बनाई थी और यही रफ़्तार उनकी मौत की वजह भी बनी.

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संजय गांधी की ज़िंदगी हमेशा ही विवादों से घिरी रही. चाहे वो आपातकाल का वक़्त हो या फिर मारुति कंपनी का विवाद. संजय अपनी ज़िंदगी के आख़िरी समय तक विवादों में ही रहे. यहां तक कि उनकी मौत को लेकर भी विवाद रहा. चलिए आज संजय गांधी की ज़िंदगी से जुड़े इन विवादों पर भी नज़र डाल लेते हैं.

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1- बिना डिग्री बनना चाहते थे ‘इंजीनियर’

संजय गांधी बचपन से ही काफ़ी ज़िद्दी स्वभाव के थे. देहरादून के ‘दून कॉलेज’ की पढ़ाई बीच में ही छोड़ने के बाद वो लंदन चले गए. संजय ने लंदन में किसी यूनिवर्सिटी में दाख़िला लेने के बजाय ‘ऑटोमोटिव इंजीनियरिंग’ की पढ़ाई की और इंग्लैंड स्थित ‘रॉल्स रॉयस कंपनी’ में 3 साल इंटर्नशिप भी की. लेकिन वो बिना डिग्री हासिल किये ‘इंजीनियर’ बनना चाहते थे. 

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2- ‘मारुती मोटर्स लिमिटेड’ के निदेशक बने  

सन 1971 में संजय गांधी के दबाव में इंदिरा कैबिनेट ने एक ऐसी गाड़ी बनाने का प्रस्ताव दिया, जिसे मध्यम वर्गीय परिवार आसानी से ख़रीद सके. प्रस्ताव पारित करने के बाद सरकार ने ‘मारुती मोटर्स लिमिटेड’ को इसकी ज़िम्मेदारी दी. इस दौरान संजय गांधी को ‘मारुती’ का निदेशक और प्रबंधक बनाया गया. जबकि, संजय को बिना किसी तज़ुर्बे के बावजूद ये ज़िम्मेदारी सौंपी गई थी. इसे लेकर काफ़ी विरोध भी हुआ. संजय के नेतृत्व में मारुति कंपनी कोई भी कार मॉडल पेश न कर सकी. जबकि, उनकी मौत के लगभग 1 साल बाद मारुती-सुज़ुकी ने जनता के लिए पहली कार ‘मारुति 800’ को पेश किया.

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3- आपातकाल के दौरान रहे विवादों में 

संजय गांधी ने 1974 से पहले तक भारतीय राजनीति में पूरी तरह से पैर नहीं जमाए थे. इस दौरान विपक्ष कांग्रेस के ख़िलाफ़ एकजुट होकर लगातार विरोध-प्रदर्शन करने लगा. ऐसे में बगावत का अंदेशा देख इंदिरा गांधी ने 1975 में देशभर में ‘आपातकाल’ की घोषणा कर दी. इसी दौरान संजय भारतीय राजनीति में पूरी तरह से सक्रिय हो गए. संजय की कुछ अलग करने की चाहत ने पूरी भारतीय राजनीति में उथल-पुथल मचा दी. आपातकाल के दौरान इंदिरा के सलाहकार की भूमिका निभाते-निभाते उन्होंने पूरी सत्ता अपने कब्ज़े में कर ली. यहां तक कि वो न किसी मंत्री की सुनते और न ही किसी बड़े नेता की.

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4- ज़बरदस्ती नसबंदी कराना मंहगा पड़ा 

आपातकाल के दौरान संजय ने अपना ‘पंच सूत्रीय’ कार्यक्रम चलाया था. इसमें शिक्षा, परिवार नियोजन, वृक्षारोपण, जातिवाद से निपटारा और दहेज़ प्रथा को ख़त्म करना शामिल था. हालांकि, देश हित में उनका कार्यक्रम ठीक भी था, लेकिन इसी कार्यक्रम में शामिल ‘परिवार नियोजन’ के लिए लोगों की ज़बरदस्ती नसबंदी कराना संजय को ही नहीं, बल्कि पूरी कांग्रेस पार्टी को भी काफ़ी महंगा पड़ा. इस दौरान प्रेस पर सेंसरशिप, लोगों पर अत्याचार, विरोधियों का जेल भेजना आदि कारणों से 1977 के ‘लोकसभा चुनाव’ में कांग्रेस को बुरी तरह पराजय का मुंह देखना पड़ा. इस दौरान संजय का पहली बार सांसद बनने का सपना भी टूटा.

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5- किशोर किशोर के गानों पर लगाया बैन

संजय गांधी के विवादों की सूची यहीं ख़त्म नहीं होती. आपातकाल के दौरान उन्होंने बॉलीवुड के मशहूर गायक किशोर कुमार के गाने बैन कर दिए थे. इसके पीछे असल कारण ये था कि किशोर दा ने ‘यूथ कांग्रेस’ के लिए गाना गाने से इंकार कर दिया था. इससे नाराज़ संजय ने ‘ऑल इंडिया रेडियो’ पर उनके गानों को बैन कर दिया.

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6- ‘क़िस्सा कुर्सी का’ फ़िल्म को किया बैन  

आपातकाल के दौरान संजय गांधी ने बॉलीवुड फ़िल्म ‘क़िस्सा कुर्सी का’ को भी बैन कर दिया था. निर्देशक अमृत नहाटा द्वारा निर्देशित इस फ़िल्म में इंदिरा और संजय का ज़िक्र था, लेकिन सेंसरबोर्ड की 7 मेम्बरों वाली कमेटी ने ये फ़िल्म पास करने के बजाय इसे समीक्षा के लिए सरकार के पास भेज दी. वहां से आगे बढ़ती हुई ये फ़िल्म ‘सूचना प्रसारण मंत्रालय’ के पास पहुंची. इस दौरान निर्देशक अमृत नाहटा को 51 आपत्तियों सहित कारण बताओं नोटिस जारी कर दिया गया. नोटिस भेजने के बाद अमृत ने कहा कि फिल्म में सारे पात्र काल्पनिक हैं. उनका किसी भी पार्टी या व्यक्ति से कोई संबंध नहीं है. इसके बावजूद इस फ़िल्म को सेंसरबोर्ड ने लटका दिया.

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7- 10 साल छोटी मॉडल से हुआ प्यार

संजय गांधी का पॉलिटिकल करियर ही नहीं पर्सनल लाइफ़ भी काफ़ी विवादों में रही. संजय ने मशहूर ब्रांड ‘बॉम्बे डाईंग’ के एक विज्ञापन में मेनका को पहली बार देखा और उनकी ख़ूबसूरती पर फ़िदा हो गए. संजय ने अपने से 10 साल छोटी मेनका से प्रेम विवाह किया था. मेनका के परिवार के न चाहते हुए भी संजय ने 23 सितंबर 1974 को उनसे विवाह किया था. गांधी परिवार की बहु बनने के बाद मेनका के विज्ञापनों से उनकी फ़ोटो हटा दी गई. शादी के लगभग 6 साल बाद वरुण गांधी का जन्म हुआ.

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8- शौक़ बना मौत का कारण 

संजय गांधी को हवाई जहाज में स्टंट करने का बड़ा शौक़ था और यही शौक़ उनकी मौत का कारण भी बना. 23 जून 1980 को संजय ने दिल्ली के सफ़दरजंग एयरपोर्ट से एक निजी विमान से उड़ान भरी. विमान में संजय के साथ कैप्टन सुभाष सक्सेना भी थे. इस दौरान संजय हवाई स्टंट करते हुए अपना नियंत्रण खो बैठे और विमान ज़मीन पर आ गिरा. इस हादसे में उनकी मौत हो गयी थी.

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संजय गांधी की मौत के बाद उनकी पत्नी मेनका गांधी ने भारतीय राजनीति में क़दम रखा, लेकिन इंदिरा गांधी को ये पसंद नहीं था. इसी के चलते मेनका और इंदिरा के बीच हमेशा ही नोंक-झोंक होती रही थी. इसी नोंक-झोंक के चलते मेनका गांधी को प्रधानमंत्री आवास छोड़ना पड़ा था. पिता की मौत के वक़्त वरुण गांधी केवल 3 महीने के थे. मेनका ने अकेले ही वरुण का पालन पोषण किया. आज मेनका और वरुण भाजपा के बड़े लीडरों में से एक हैं.

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