भारत में जब भी डकैतों का ज़िक्र होता है, जुबां पर सबसे पहले मध्यप्रदेश की ‘चंबल घाटी’ का नाम आता है. आज भी लोगों के बीच चंबल के डकैतों का ख़ौफ़ है. कहा जाता है कि चंबल में डकैतों का आतंक राजा भोज के काल में ही शुरू हो गया था. चंबल घाटी में कई ऐसे डकैत हुए हैं, जिन्होंने कई सालों तक पुलिस के नाम में दम करके रखा. हालांकि, इनमें से कुछ डकैतों को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया तो कुछ आत्मसमर्पण कर राजनीति में आ गए. डैकेत रहते इन लोगों ने पुलिस को चैन की सांस नहीं लेने दी.

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आज हम आपको भारत के कुछ ऐसे ही डकैतों के बारे में बताते जा रहे हैं, जो देश में आतंक का पर्याय बन चुके थे-  

1- मान सिंह राठौर 

गांव के साहूकारों ने उनकी ज़मीन पर कब्ज़ा कर लिया. विरोध किया तो उनके बेटे की हत्या भी कर दी गई. मान सिंह दोषियों के ख़िलाफ़ क़ानूनी लड़ाई लड़ कर उन्हें सज़ा दिलाने की सोची. मगर उनकी सोच धरी की धरी रह गयी जब फिर से उनके परिवार के 11 सदस्यों की हत्या कर दी गई. इसके बाद मान सिंह ने हथियार उठा लिए और एक-एक करके ग़रीबों को सताने वालों की हत्या कर दी. सन 1939 से 1955 तक मान सिंह और उसके गिरोह के नाम 185 हत्याओं, 1112 लूट के मामलों के साथ 32 पुलिस वालों की हत्याओं के मामले दर्ज हो चुके थे. क़रीब 20 सालों तक मान सिंह चंबल के सभी गिरोहों में सबसे खूंखार डकैत था. 1955 में भारतीय सेना के जवानों ने मान सिंह मार गिराया था. आज भी मध्यप्रदेश के खेरा राठौड़ इलाक़े में मान सिंह डकैत का एक मंदिर है, जहां उसकी पूजा की जाती है.

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2- मोहर सिंह गुर्जर

मोहर सिंह गुर्जर सन 1958 में 20 साल से भी कम उम्र में बंदूक लेकर चंबल के दंगल में कूद पड़ा था. तब मान सिंह राठौर, लाखन सिंह लोकमान दीक्षित उर्फ लुक्का पंडित आदि जैसे चोटी के डकैतों का बोल बाला था. पुलिस कई खूंखार डकैतों को ढेर कर चुकी थी, इस बीच मोहर सिंह गुर्जर ने ख़ुद की गैंग बना ली. 1960 में मोहर सिंह पर उस समय का सबसे ज़्यादा 2 लाख रुपये का ईनाम था जबकि पूरे गैंग पर 12 लाख का ईनाम था. पुलिस रिकार्ड में मोहर सिंह और उसके गैंग पर 80 से ज़्यादा हत्याओं तथा 350 से ज़्यादा लूट के मामले दर्ज थे. वो मोहर डाकू ही था जिसने अपने समय में डकैती का एक नया इतिहास लिखा था. सन 1965 में बिहड़ के जंगलों में बैठ कर किसी ने पहली बार दिल्ली के किसी मूर्ति तस्कर का अपहरण कर 26 लाख की फिरौती वसूली थी. देश में जब ‘जे पी आंदोलन’ ने ज़ोर पकड़ा तो 500 बागी डाकुओं के साथ मोहर सिंह ने भी जय प्रकाश नारायण की गोद में अपना हथियार रख आत्म समर्पण कर दिया. 

3- भूपत सिंह चौहान

गुजरात के काठियावाड़ का रहने वाले डकैत भूपत सिंह चौहान ने अपने दोस्त राणा भगवान डांगर की बहन के बलात्कारी की गोली मारकर हत्या कर दी थी. ये उसका पहला क़त्ल था. इसके बाद इन दोनों ने ख़ुद का एक गिरोह बना लिया. कुछ ही समय में भूपत और उसकी गैंग के नाम 87 हत्याओं के साथ 8 लाख रुपये से अधिक की लूट दर्ज हो गई. भूपत लूट के माल को ग़रीबों में बांट दिया करता था. इस दौरान उसने कई ग़रीब लड़कियों की शादी करवाई. भूपत डकैत ग़रीबों के लिए मसीहा, जबकि अमीरों के लिए काल था.

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4- जगजीवन परिहार

डकैत जगजीवन परिहार के बारे में कहा जाता है कि गांव के स्कूल के लिए पुरखों की ज़मीन देकर वो उसी स्कूल मे चपरासी बना गया था. इस दौरान जगजीवन ‘गुर्जर डकैत गिरोहों’ के आतंक के खात्मे के लिए पुलिस मुखबिर बन गया था. लेकिन बाद में वो ख़ुद भी डकैत बन गया. कुछ ही समय में पूरी चंबल घाटी में उसके आतंक का डंका बजने लगा. इसके बाद परिहार मध्यप्रदेश और उत्तर प्रदेश पुलिस का इनामी डकैत बना गया. 14 मार्च, 2007 को सरगना जगजीवन परिहार और उसके गिरोह के 5 डाकुओं को मध्यप्रदेश के मुरैना एवं भिंड जिला पुलिस ने संयुक्त ऑपरेशन में मार गिराया था। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक गढ़िया गांव में लगभग 18 घंटे चली मुठभेड़ में जहां एक पुलिस अफसर शहीद हुए थे तो वहीं 5 पुलिसकर्मी घायल हुए थे.

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5- फूलन देवी

फूलन देवी का ख़ौफ उस समय हर किसी के चेहरे पर दिखने लगा जब उसने एक ही गांव के 21 ठाकुरों को लाइन में खड़ा करके गोली मार दी थी. इसी हत्याकांड के बाद फूलन ‘बैंडिट क्वीन’ नाम से मशहूर देवी हो गईं. इसके बाद उनका गिरोह लूट पाट करना, अमीरों के बच्चों को फिरौती के लिए अगवा करना, लौरियों लूटने का काम करने लगा. कुछ सालों तक ये सब चलने के बाद फूलन देवी ने मध्यप्रदेश पुलिस के सामने शर्तिया आत्मसमर्पण की बात कही. 13 फरवरी 1983 को मध्यप्रदेश के भिंड में आत्मसमर्पण किया. फूलन देवी पर 22 कत्ल, 30 लूटपाट और 18 अपहरण के मुकद्दमे चलाए गए. इन सभी मुकद्दमों की कार्यवाही में ही 11 साल बीत गए. 1994 में सभी मुकदमें हटा कर फूलन को बरी कर दिया गया. सन 1996 में फूलन ने राजनीति में कदम रखा और समाजवादी पार्टी के टिकट से मिर्ज़ापुर की सीट जीत कर सांसद बनीं. 25 जुलाई 2001 को दिल्ली में उसके आवास के सामने ही शेर सिंह राणा ने फूलन देवी की हत्या कर दी.

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6- शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ

शिव कुमार पटेल उर्फ ददुआ के बारे में कहा जाता है कि अपने पिता की हत्या का बदला लेने के लिए उसने एक व्यक्ति की हत्या कर दी थी. 32 सालों तक ‘चंबल घाटी’ में ददुआ का आतंक था. लेकिन 22 जुलाई 2007 को ददुआ अपने गिरोह के अन्य सदस्यों के साथ पुलिस मुठभेड़ में मारा गया. ददुआ के ख़िलाफ़ मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के थानों में 400 से ज़्यादा केस दर्ज थे. इनमें लूट, डकैती और हत्या के कई मामले शामिल थे. ददुआ कितना खूंखार था इसका अंदाज़ा आप इसी बात से लगा लीजिए कि उस पर उत्तर प्रदेश सरकार ने 10 लाख का ईनाम रखा था. वहीं उसकी ख़बर देने वाले को मुख्यमंत्री की तरफ़ से 10 लाख अतिरिक्त देने की घोषणा की गयी थी.

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7- वीरप्पन

वीरप्पन ने 17 साल की उम्र में पहली बार एक हाथी का शिकार किया था. हाथी को मारने की उसकी फ़ेवरेट तकनीक उसके माथे के बींचोंबीच गोली मारना हुआ करती थी. 30 साल की उम्र तक वीरप्पन सैकड़ों जानवरों की हत्या करके वन विभाग की नज़रों में आ चुका था. इसके बाद वीरप्पन चंदन तस्कर भी बन गया. इसी दौरान वीरप्पन ने कन्नड़ अभिनेता राजकुमार का अपहरण कर लिया था. राजकुमार 100 से अधिक दिनों तक वीरप्पन के चंगुल में रहे. इस दौरान उसने कर्नाटक और तमिलनाडु दोनों राज्य सरकारों को घुटनों पर ला दिया. वीरप्पन पर 2000 से अधिक हाथियों और 184 लोगों को मारने का आरोप था. इसके बाद वीरप्पन के खात्मे के लिए तमिलनाडु की तत्कालीन मुख्यमंत्री जयललिता ने विजय कुमार को ‘तमिलनाडु स्पेशल टास्क फ़ोर्स’ का प्रमुख बनाया. एसटीएफ़ प्रमुख बनते ही विजय कुमार ने वीरप्पन के बारे में ख़ुफ़िया जानकारी जमा करनी शुरू कर दी. आख़िरकार 18 अक्टूबर 2004 को एक एनकाउंटर में वीरप्पन को मार गिराया.

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8- निर्भय सिंह गुर्जर

90 के दशक में चम्बल में आतंक का पर्याय रह चुके दस्यु सम्राट निर्भय सिंह गुर्जर का आतंक चरम पर था. हत्या, अपहरण, लूट, डकैती मशहूर निर्भय सिंह गुर्जर ने अपने जीवन का अधिकांश समय जालौन में ही बिताया है. निर्भय गुर्जर के ख़िलाफ़ हत्‍या और अपहरण के 200 से अधिक मामले पुलिस थानों में दर्ज थे. लालाराम गिरोह के सम्पर्क में आने के बाद निर्भय ने हत्या, लूट, अपहरण, डकैती जैसे संगीन वारदातों को अंजाम देना शुरू कर दिया. निर्भय सिंह पर सन 1989 में पहला मुकदमा दर्ज़ हुआ था. निर्भय गुर्जर को शराब और लड़कियों का शौक़ीन था, उसके साथ उसकी दो प्रेमिकाएं सरला और नीलम हमेशा रहती थीं. उसे खुश करने के लिए प्रेमिकाएं हमेशा जींस और टी-शर्ट पहनती थीं. सन 2005 में औरया के अजीतमल के पास चंबल में पुलिस ने मुठभेड़ में निर्भय को मार गिराया था.

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इनके अलावा भी देश में निर्भय गुज्जर, माधौ सिंह, मोहर सिंह और सीमा परिहार जैसे कई कुख़्यात डकैत हुए हैं, जो आतंक का दूसरा नाम हुआ करते थे. इन सभी डकैतों में सबसे भयानक और कठोर दिल माधौ सिंह और मोहर सिंह थे. बताया जाता है कि ये अपने शिकार के नाक-कान काट देते थे. इन पर 2.5 लाख के इनाम के साथ इनके बड़े गिरोह पर कुल 5 लाख का इनाम था.

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