भगदत्त- महाभारत का वीर योद्धा: हम बचपन से ही महाभारत युद्ध की अनगिनत कहानियां सुनते आ रहे हैं. इस युद्ध के योद्धाओं के पराक्रम की कहानियों का उल्लेख इतिहास की किताबों में भी मिलता है. इनमें से ‘भीष्म’, ‘द्रोणाचार्य’, ‘अर्जुन’, ‘कर्ण’, ‘भीम’, ‘दुर्योधन’ और ‘अभिमन्यु’ ऐसे योद्धा थे जिनका जिक्र इतिहास की किताबों में हैं, लेकिन इस युद्ध के कुछ ऐसे पात्र भी थे जिन्हें भुला दिया गया. महाभारत की कहानियों में इनका कहीं कोई ज़िक्र नहीं मिलता क्यूंकि अधिकांश कहानियों में केवल महान और प्रसिद्ध चरित्रों का ही वर्णन है. महाभारत का एक ऐसा ही योद्धा भगदत्त (Bhagadatta) भी था.

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चलिए जानते हैं आख़िर कौन था वीर योद्धा भगदत्त जो अर्जुन को मारना चाहता था-

कौन था वीर योद्धा भगदत्त?

भगदत्त (Bhagadatta) प्राग्ज्योतिषपुर के राजा नरकासुर का पुत्र था. भगदत्त का उल्लेख ‘महाभारत’ में तो मिलता है, लेकिन उनकी चर्चा कोई नहीं करता है. भगदत्त के पिता नरकासुर और अर्जुन के पिता इंद्र घनिष्ट मित्र थे. इसलिए भी वो अर्जुन का बहुत बड़ा प्रशंसक था, लेकिन भगदत्त भगवान श्री कृष्ण को अपना कट्टर प्रतिद्वंदी मानता था. भगदत्त ‘हस्ति युद्ध’ में अत्यंत कुशल माना जाता था. उसके पास ‘शक्ति अस्त्र’ और ‘वैष्णव अस्त्र‘ जैसे दिव्यास्त्र थे. ‘कृतज्ञ’ और ‘वज्र दत्त’ नाम के इनके दो पुत्र थे. इनमें से कृतज्ञ की मृत्यु नकुल के हाथों हुई, जबकि ‘वज्र दत्त’ को अर्जुन से पराजित हुआ था. इसलिए भगदत्त और अर्जुन एक दूसरे के दुश्मन बन गए.

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महाभारत युद्ध के समय ‘भगदत्त’ की उम्र कर्ण और अर्जुन समेत अन्य सभी योद्धाओं से काफ़ी अधिक थी. बावजूद इसके उसने भीम, अभिमन्यु और सात्यिकी जैसे योद्धाओं को पराजित किया था. द्रोण पर्व के 24वें अध्याय में वर्णन मिलता है कि अभिमन्यु समेत कई योद्धाओं ने भगदत्त पर एक साथ आक्रमण कर दिया था. बावजूद इसके भगदत्त के पराक्रम के आगे सभी ने घुटने टेक दिए. कुरुक्षेत्र के युद्ध में ‘कौरव सेना’ की ओर से लड़ने वाले भगदत्त के पास ‘सौप्तिक’ नामक एक विशालकाय हाथी था, जिसकी मदद से उसने भीम और दर्शन सहित कई बड़े योद्धओं कप परास्त किया था.

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युधिष्ठिर के ‘राजसूय यज्ञ’ के समय जब अर्जुन एक के बाद एक राज्यों को अपने अधीन कर रहे थे तब अर्जुन को भगदत्त से युद्ध करना पड़ा था. ये युद्ध 8 दिनों तक चला था. इस दौरान अर्जुन ने भगदत्त को हारने के कई प्रयास किये, लेकिन वो विजय प्राप्त नहीं कर सके. भगदत्त ‘महाभारत’ का एकमात्र ऐसा योद्धा था जिसने 8 दिन तक अकेले अर्जुन से युद्ध लड़ा था.

अर्जुन (Arjun) से टकराने से पहले भगदत्त (Bhagadatta) का युद्ध कर्ण (Karna) के साथ भी हुआ था, जिसमे कर्ण की विजय हुई थी. कर्ण से परास्त होने के बाद भगदत्त ने महाभारत का युद्ध कौरवों की ओर से लड़ा था. इस दौरान कर्ण ने सभी दिशाओं में राजाओं को अपने अधीन कर लिया था. इसका उल्लेख महाभारत के उद्योग पर्व के 164वें अध्याय में मिलता है.

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अर्जुन और भगदत्त का भयंकर युद्ध

द्रोण पर्व के 27वें अध्याय में बताया गया है कि ‘कुरुक्षेत्र युद्ध’ के 12वें दिन भगदत्त का सामना अर्जुन से हुआ था. इस दौरान इन दोनों योद्धाओं के मध्य भयंकर युद्ध हुआ. एक वक़्त तो ऐसा आया जब भगदत्त ने अपने हाथी से अर्जुन को लगभग कुचल ही दिया था, लेकिन भगवान श्री कृष्ण ने बीच में आकर अर्जुन को बचा लिया. अर्जुन ने पलटवार करते हुए भगदत्त के सभी अस्त्रों को विफल कर दिया और भगदत्त घायल हो गया.

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भगदत्त (Bhagadatta) ने इसके बाद अपनी जान बचाने के लिए अपने सबसे अचूक हथियार ‘वैष्णव अस्त्र’ का प्रयोग किया, जिसका तोड़ अर्जुन के पास नहीं था. भगदत्त जब भी वैष्णवास्त्र से अर्जुन पर प्रहार करते भगवान श्री कृष्ण बीच में आ जाते थे और अर्जुन बच जाते. भगवान श्री कृष्ण के सामने आने से भगदत्त का ‘वैष्णव अस्त्र’ ‘वैजयन्ती माला’ में परिवर्तित हो गया और इस प्रकार भगवान कृष्ण द्वारा पुनः भगदत्त से अर्जुन के प्राणों की रक्षा हुई. इस दौरान अर्जुन और भगदत्त के बीच युद्ध 8वें दिन तक पहुंच चुका था.

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चतुराई से किया भगदत्त का वध

भगदत्त (Bhagadatta) का प्रिय अस्त्र नष्ट होने के बाद भगवान कृष्ण ने अर्जुन से कहा कि अब वो भगदत्त पर प्रहार कर उसका अंत कर सकते हैं. इसके बाद अर्जुन ने सबसे पहले भगदत्त के ‘सुप्रतीक’ नाम के पराक्रमी हाथी पर ‘नाराच अस्त्र’ से प्रहार किया. अर्जुन का ये प्रहार इतना तीव्र था कि बाण हाथी के ‘कुम्भ स्थल’ में पंख समेत प्रवेश कर गया और गजराज वहीं पर अपने प्राण त्याग दिए.

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भगवान कृष्ण ने अर्जुन को सलाह देते हुए कहा कि, ‘भगदत्त’ की आयु बहुत अधिक है. झुर्रियों के कारण उसकी पलकें झुकी रहती हैं और उसके नेत्र बंद रहते हैं. इसलिए उसने अपने नेत्रों को खुला रखने के लिए अपने मस्तक पर पट्टी बांध रखी है. श्री कृष्ण की सलाह मानते हुए अर्जुन ने सबसे पहले ‘भगदत्त’ के मस्तक पर बंधी पट्टी पर ही तीर मारा. परिणामस्वरूप भगदत्त के मस्तक की पट्टी नष्ट होने से उसके नेत्र बंद हो गए और उसकी आंखों के सामने अंधेरा छा गया. इस दौरान ‘अर्जुन’ ने मौक़ा पाकर ‘भगदत्त’ का वध कर दिया.