आज भी जब हम शहीद भगत सिंह का नाम सुनते हैं तो आंखों के सामने एक ऐसे योद्धा तस्वीर नज़र आती है जो देश की ख़ातिर कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहता था. शहीद भगत सिंह का नाम देश के उन मतवाले क्रांतिकारियों में शामिल है जिन्होंने अपनी जान की परवाह किये बग़ैर अंग्रेज़ी हुकूमत के ख़िलाफ़ जंग छेड़ दी थी. भगत सिंह ने मात्र 23 साल की उम्र में वतन के लिए अपनी जान क़ुर्बान कर दी थी.

ये भी पढ़ें- शहीद भगत सिंह का ‘डेथ वॉरंट’ आया सामने, देखिए उन्हें किन धाराओं में दी गई थी सज़ा 

wikipedia

‘संसद में बम फोड़ने’ से लेकर ‘लाहौर कांड’ को अंजाम देने वाले भगत सिंह आज़ादी के एक ऐसे क्रांतिकारी थे जो आज भी देश के युवाओं के दिलों में बसते हैं. देश की आज़ादी को अपनी दुल्हन मानने वाले भगत सिंह हमेशा नौजवानों के ‘यूथ आइकन’ बने रहेंगे.

wikipedia

शहीद भगत सिंह के बारे में बचपन से ही हम कई क़िस्से और कहानियां सुनते आ रहे हैं. आज भी भगत सिंह से जुड़े कई ऐसे क़िस्से हैं जो अधिकतर लोगों को मालूम ही नहीं हैं. आज हम आपको एक ऐसा ही क़िस्सा सुनाने जा रहे हैं जो आपके अंदर देशभक्ति की ललक पैदा कर देगी.

dnaindia

ये भी पढ़ें- प्रेम को लेकर भी बहुत क्रांतिकारी थे भगत सिंह, सुखदेव को लिखी ये चिट्ठी इस बात का सबूत है

बात 23 मार्च, 1931 की है. 23 मार्च को ‘लाहौर सेंट्रल जेल’ की सुबह हिन्दुस्तान के इतिहास की सबसे ख़राब सुबह होने वाली जा रही थी. क्योंकि सभी देशवासियों समेत जेल में क़ैद क्रांतिकारियों को मालूम था कि भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को फांसी होने वाली है, लेकिन किसी को ये नहीं मालूम था कि इन तीनों को मौत की सजा कब दी जाएगी.

wikipedia

23 मार्च की सुबह 4 बजे जेल के क़ैदियों को उस वक़्त थोड़ा अजीब सा लगा जब जेल के वॉर्डन चरत सिंह ने उनसे आकर कहा कि वो अपनी-अपनी कोठरियों में चले जाएं, लेकिन उन्होंने कारण नहीं बताया. वॉर्डन की इस बात से जेल में क़ैद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु के साथी क्रांतिकारी बेहद हैरान परेशान थे. 

indiatoday

इधर भगत सिंह अपनी कोठरी में सुकून से बैठे किताबें पढ़ रहे थे. मानो मौत को गले लगाने के लिए बिल्कुल तैयार हों. जेल का नाई बरकत हर कोठरी के सामने से फुसफुसाते हुए गुज़रा कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को आज रात ही फांसी दी जाने वाली है. ये सुनने के बाद सभी बेहद हैरान परेशान होने लगे वो किसी भी कीमत पर भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को खोना नहीं चाहते थे. 

dnaindia

इसके कुछ समय बाद जब सभी ये पता चला कि भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को वक़्त के पहले ही फांसी होने जा रही है तो साथी क़ैदियों ने बरकत से गुहार लगाई कि वो फांसी के बाद भगत सिंह की कोई भी निशानी जैसे पेन, कंघा या घड़ी उन्हें लाकर दें ताकि वो अपने पोते-पोतियों को बता सकें कि कभी वो भी भगत सिंह के साथ जेल में बंद थे. 

humhindi

ये भी पढ़ें- बचपन में सब आते थे सपनों में, पर भगत सिंह कभी नहीं आया

बरकत जब भगत सिंह की कोठरी से उनका पेन, कंघा, घड़ी और किताबें लेकर आया तो सारे क़ैदियों में इन्हें हासिल करने की होड़ लग गई. जेल में अफ़रा तफ़री का माहौल बन गया. जब बात जेलर तक पहुंची तो उन्होंने इसके लिए ड्रॉ निकालने का फ़ैसला लिया. इस दौरान हर कोई भगत सिंह पर अपना हक़ जताना चाहते थे.  

भगत सिंह तब भी सबके दिलों में बसते थे और भगत सिंह आज भी सबके दिलों में उतने ही जोश के साथ बसते हैं, जितना ‘इंकलाब ज़िंदाबाद’ का वो नारा.