भारत ने 1990 के बाद से अपने बाज़ार को दूसरे देशों के लिए खोल दिया. दुनियाभर की कंपनियों ने इस सुनहरे अवसर का फ़ायदा उठाने में कोई कसर नहीं छोड़ी. इसमें देसी-विदेशी दोनों ही कंपनियां शामिल थीं. इसके पीछे सबसे बड़ी वजह देश में बढ़ता मिडिल क्लास था, जो तेज़ी से आधुनिक चीज़ों का ग्राहक बन रहा था. कार बनाने वाली कंपनियों ने भी इस मौके का फ़ायदा उठाया और कई ब्रांड्स एक के बाद एक भारत में लॉन्च हो गए. ये सिलसिला आज भी जारी है.

हालांकि, इस दौरान ऐसे कई ब्रांड्स रहे, जिन्होंने भारतीय बाज़ार में धमाकेदार एंट्री ली, मग़र वो ज़्यादा समय तक टिक नहीं पाए. आज हम ऐसे ही कुछ कार ब्रांड्स पर नज़र डालेंगे, जिन्हें कम बिक्री और बाज़ार के निराशाजनक रिस्पॉन्स के चलते देश में अपना परिचालन बंद करना पड़ा. 

1. Opel (1996-2006)

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Astra, Corsa और Vectra जैसे कई शानदार कारों के साथ Opel ने 1996 में भारत में प्रवेश किया. 10 साल तक ये ब्रांड देश में काम करता रहा, लेकिन इस दौरान इसकी बिक्री में गिरावट आती रही. इसके पीछे मुख्य वजह खराब कस्टममर सर्विस थी. साथ ही, इसकी क़ीमत भी अन्य कारों की तुलना में ज़्यादा थी. उस वक़्त लोगों को कम क़ीमत में दूसरी कंपनियों के विकल्प मिल गए थे. आख़िरकार, कंपनी ने 2006 में भारत से अपना बोरिया-बिस्तर समेट लिया.

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2. Chevrolet (2003-2017)

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इस ब्रांड में वह सब कुछ था जो एक भारतीय ग्राहक मांग सकता था. उनके पास हैचबैक थीं, उनके पास सेडान थीं, उनके पास एसयूवी भी थीं. शुरुआती दिन कंपनी के लिए काफ़ी अच्छे भी साबित हुए थे. लेकिन धीरे-धीरे कारों की बिक्री में गिरावट नज़र आने लगी. Beat जैसी सफ़ल कार की बिक्री भी कम होती गई. कंपनी ने स्थिति का विश्लेषण किया, लेकिन वो अपनी सेल में सुधार नहीं कर पाई. बाद में 2017 में कंपनी ने परिचालन बंद कर दिया. 

3. Fiat (1996-2018)

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Palio हो, Punto हो या Linea ये तमाम कारें Fiat की हैं. हालांकि, ये कंपनी भी अपने ग्राहकों को संतुष्ट नहीं कर पाई. हालांकि,  फिएट ने भारत में मारुति सुजुकी को अपने डीजल इंजन बेचना जारी रखा, जिससे जाहिर तौर पर उन्हें एक बड़ी बिक्री राशि मिली. लेकिन उनकी अपनी कारें विफल होने लगीं. आख़िरकार, 2018 में इसे भी भारत छोड़ने का फैसला करना पड़ा.

4. Daewoo Motors India (1995-2003)

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भारत में निष्क्रिय ऑटोमोबाइल निर्माताओं में से एक देवू मोटर्स है. सिएलो, मैटिज़ और नेक्सिया जैसी कारों के बावजूद कंपनी भारत में विफ़ल रही. इसकी सबसे बड़ी वजह इन कारों के ऊंची क़ीमतें थीं. दूसरी ओर, देवू भी भारतीय बाजार का ठीक से आकलन नहीं कर पाया और जरूरतों को समझने में भी विफल रहा. लगातार ग़लतियों का नतीजा ये रहा कि कंपनी को 2003 में बाहर होना पड़ा. 

5. Standard (1948–2006)

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स्टैंडर्ड एक और ऑटोमोबाइल निर्माता था जो भारत में मौजूद था और 1951-1988 तक मद्रास में उत्पादन करता था. इंडियन स्टैंडर्ड यूके में निर्मित स्टैंडर्ड-ट्रायम्फ वाहनों के वैरिएशन थे. यूनियन कंपनी (मोटर्स) लिमिटेड और ब्रिटिश स्टैंडर्ड मोटर कंपनी ने स्टैंडर्ड मोटर प्रोडक्ट्स ऑफ इंडिया लिमिटेड बनाने के लिए हाथ मिलाया. उनका पहला वाहन स्टैंडर्ड वैनगार्ड था. हालांकि, इतने सालों तक भारत में रहने के बाद आख़िरकार, 2006 में ये कंपनी भंग हो गई. 

6. Sipani (1978–1997)

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बैंगलोर स्थित एक भारतीय कार निर्माता ‘सिपानी’ की स्थापना 1973 में हुई थी. सिपानी ने सबकॉम्पैक्ट कारें बनाईं जिनकी फाइबरग्लास बॉडी थी. सिपानी की पूर्ववर्ती सनराइज ऑटोमोटिव इंडस्ट्रीज लिमिटेड (सेल) उन तीन ऑटोमोबाइल कंपनियों में से एक थी, जिसे विदेशी ब्रांड्स से सहयोग करने को लेकर प्रतिबंधित किया गया. सिपानी ने भारत में डॉल्फिन, बादल और मोंटाना जैसी कारें बनाईं, लेकिन 1997 में कंपनी भारतीय बाज़ार से ग़ायब हो गई.