भारत में देवी-देवाताओं के मंदिर हैं. ये बात भला कौन नहीं जानता है. यहां हर तरह की देव शक्ति की पूजा होती है. मगर आज हम जिस मंदिर की बात करने जा रहे हैं वहां किसी देवी-देवता की पूजा नहीं होती है. ये वाकई सुनने में थोड़ा अजीब लग रहा है. हां लेकिन ये सच है कि हमारे देश में अनोखे मंदिर (Unique Temple Of India) भी हैं. मसलन, छत्तीसगढ़ (Chhattisgarh) के इस प्राचीन मंदिर को ही ले लीजिए, जहां किसी देवी-देवता की नहीं, बल्क़ि एक ‘डायन की पूजा’ (Dayan Mata Ki Pooja) की जाती है.

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बिना सिर झुकाए मंदिर के आगे से नहीं निकलते लोग

छत्तीसगढ़ के बालोद जिले में एक झींका नामक गांव है. यहां की सड़क से ही लगा डायन देवी का मंदिर है. मान्यता है कि ये मंदिर 200 साल पुराना है. ग्रामीण बताते हैं कि पहले ये मंदिर नीम वृक्ष के नीचे बने एक चबूतरे पर था. समय के साथ लोग इस मंदिर से वाकिफ़ होते गए और फिर लोगों ने ईंटों को दान करना शुरू किया, जिससे मंदिर का निर्माण हुआ.

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मंदिर में एक मूर्ति स्थापित है, जिसे छत्तीसगढ़ बोली में लो ‘परेतिन दाई’ (डायन माता) नाम से जानते हैं. मान्यता है कि कोई भी इस मंदिर के आगे से सिर झुकाए बिना आगे नहीं बढ़ सकता है. अगर किसी ने ऐसा किया तो उसे आगे रास्ते में परेशानी होगी. हालांकि, अगर कोई इस मंदिर से अनजान है तो उसे कोई परेशानी नहीं होती. हालांकि, ऐसा स्थानीय लोगों का मानना है.

आने-जाने वाले दान करते हैं अपना सामान

कहते हैं बगैर दान किए कोई भी मालवाहक वाहन इस मंदिर से आगे नहीं बढ़ता है. क्योंकि, उन्हें आगे दुर्घटना का डर लगता है. इस मंदिर में लोग बड़ी संख्या में ईंट चढ़ाते हैं. दरअसल, यहां से ईंट लेकर गाड़ियां निकलती हैं, जिन्हें पहले मंदिर में चढ़ाना होता है. मंदिर में ईंट इतनी ज़्यादा संख्या में चढ़ता है कि चढ़ावे के ईंट से ही गांव में दूसरे विकास निर्माण कार्य जैसे चबूतरा, नाली निर्माण जैसे काम कर लिए जाते हैं. साथ ही, आने-जाने वाला हर शख़्स कुछ न कुछ चढ़ाता ही है.

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ऐसे में वाहन में जो भी सामान भरा है, उसमें से कुछ-न-कुछ चढ़ाया जाता है. फिर वो ईंट हो या पत्थर, घास, मिट्टी, सब्जी या कुछ और. ये भी कहते हैं कि बहुत से दूधवाले आसपास के इलाक़ों में दूध बेचने जाते हैं. वो पहले यहां दूध ज़रूर चढ़ाते. ऐसा न करने पर दूध फ़ट जाता है. ऐसी ही मान्यताओं के साथ लोग वर्षों से डायन माता की पूजा करते आ रहे हैं.

नवरात्र पर लगता है मेला

बता दें, गांव वालों के लिए डायन माता नकारात्क शक्ति नही है. वो तो उन्हें परेतिन देवी की तरह पूजते हैं. उनका कहना है कि मां कभी किसी का बुरा नहीं करतीं. जो भी सच्चे मन से उनकी प्रार्थना करता है, उसकी इच्छाएं पूरी होती हैं. गांव और आसपास के लोग इस मंदिर को काफ़ी मानते हैं. दोनों नवरात्रि पर बड़ी संख्या में श्रद्धालु मंदिर में ज्योतिकलश प्रज्ज्वलित करवाते हैं.

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