हिंदू त्योहार विभिन्न मान्यताओं और रीति रिवाज़ों से गुंथे हुए हैं. ये ही चीज़ें इन त्योहारों को ख़ास बनाने का काम करती हैं. ‘धनतेरस’ से भी कई मान्यताएं जुड़ी हैं जिनका पालन करना ज़रूरी माना जाता है. इस ख़ास दिन भगवान धन्वन्तरि, देवी लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है. साथ ही कुछ ख़ास चीज़ों जैसे सोना, चांदी व मोती शंख ख़रीदना शुभ माना जाता है. इसके अलावा, इस दिन दीपदान भी परंपरा है, लेकिन माना जाता है कि इस दिन दीपदान दक्षिण दिशा में करना चाहिए. ऐसा क्यों करना चाहिए, ये हम आपको इस लेख में बताएंगे. साथ ही धनतेरस से जुड़ी प्रचलित कथाएं भी आपको बताएंगे.   

क्यों किया जाता है धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा में दीपदान? 

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दीपदान यानी दीपक जलाना. धनतेरस वाले दिन अन्य चीज़ों के साथ दीपदान की भी मान्यता है, लेकिन इस दिन दीपदान दक्षिण दिशा में किया जाता है. इस दिन दक्षिण दिशा में दीप जलाना शुभ माना जाता है. दरअसल, इससे एक पौराणिक मान्यता जुड़ी है. आइये, जानते हैं दक्षिण दिशा में दीपदान से जुड़ी मान्यता व कथा के बारे में.  

यमराज से जुड़ी है मान्यता  

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मान्यता है कि एक बार दूत ने यमराज से बातों ही बातों में ये पूछ लिया कि क्या अकाल मृत्यु से बचा जा सकता है? इस सवाल के जवाब में यमराज ने उत्तर दिया था कि अगर कोई व्यक्ति धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा में दीपक जलाता है, तो उसकी अकाल मृत्यु नहीं होती है. इस वजह से धनतेरस के दिन दक्षिण दिशा में दीपदान किया जाता है.  

धनतेरस से जुड़ी प्रचलित कथाएं 

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जब भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए 

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माना जाता है कि कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी के दिन समुद्र मंथन से भगवान धन्वंतरि प्रकट हुए थे और उनके हाथ में अमृत से भरा पात्र था. कहते हैं तभी से धनतेरस मनाया जा रहा है. वहीं, इस दिन कुबेर और माता लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है.  

धनतेरस से जुड़ी एक और प्रचलित कथा   

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एक बार भगवान विष्णु मृत्युलोक भ्रमण के लिए आ रहे थे. इसी बीच देवी लक्ष्मी ने भी उनके साथ जाने की इच्छा ज़ाहिर की. भगवान विष्णु ने कहा कि आप एक ही शर्त पर हमारे साथ आ सकती हैं. हम जो कहेंगे आपको वो बाते माननी होंगी. देवी लक्ष्मी ने हामी भरी और उनके साथ मृत्युलोक आ गईं. चलते-चलते भगवान विष्णु मृत्युलोक की एक जगह पर रुक गए और देवी लक्ष्मी से कहा कि मैं दक्षिण दिशा की ओर जा रहा हूं और जब तक मैं वापस न आऊं आप यहीं खड़ी रहना. 

इसके बाद भगवान विष्णु चले गए, लेकिन देवी लक्ष्मी के मन में सवाल रह गया कि आख़िर दक्षिण दिशा में ऐसा क्या है, जहां मैं नहीं जा सकती. जब उनसे रहा नहीं गया, तो वो भगवान विष्णु के पीछे-पीछे चलने लगीं. चलते-चलते उन्हें सरसों का ख़ूबसूरत खेत दिखाई दिया. देवी लक्ष्मी को सरसों के फूल बहुत अच्छे लगे. उन्होंने कुछ फूल तोड़ लिए और आगे चलने लगीं. इसके बाद उन्हें गन्ने का खेत दिखाई दिया. उन्होंने खेत से गन्ना तोड़ा और उसका रस पीने लगीं. 
 देवी लक्ष्मी को ऐसा करते देख भगवान विष्णु ने उन्हें देख लिया और वो उनसे नाराज हो गए. भगवान विष्णु ने कहा कि तुमने चोरी की है, इसलिए मैं तुम्हें श्राप देता हूं कि तुम 12 वर्षों तक मृत्यु लोक में ही रहोगी और किसान की सेवा करोगी. इसके बाद देवी लक्ष्मी एक उस ग़रीब किसान के घर रहने लगीं. एक दिन देवी लक्ष्मी ने किसान की पत्नी से कहा कि तुम खाना बनाने से पहले मेरी द्वारा बनाई गई इस देवी की पूजा किया करो, जो तुम मांगोगी तुम्हें मिलेगा. किसान की पत्नी ने वैसा ही किया. किसान के घर की ग़रीबी चली गई और देवी लक्ष्मी के 12 वर्ष भी आराम से कट गए. जब देवी लक्ष्मी स्वर्ग लोक जाने को तैयार हुईं, तो किसाने से उन्हें रोकना चाहा. 
तभी भगवान विष्णु वहां प्रकट हुए और किसान से कहा कि देवी लक्ष्मी चंचल हैं, वो एक जगह नहीं ठहरती हैं. तभी देवी लक्ष्मी ने किसान का मन रखने के लिए कहा कि कल त्रयोदशी है, तुम घर को साफ़ करना और शाम में मेरी पूजा करना. साथ ही दीपक भी जलाना और तांबे के कलश में धन भरकर रखना. मैं उस कलश में निवास करूंगी, लेकिन नज़र नहीं आऊंगी. किसान ने वैसा ही किया और उस उसका घर धन-दौलत से भर गया. इसलिए, धनतेरस के दिन मां लक्ष्मी की भी पूजा की जाती है.  

एक अन्य कथा

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एक अन्य कथा के अनुसार, एक बार देवताओं को राजा बलि के भय से मुक्त कराने के लिए भगवान विष्णु ने वामन का अवतार लिया था. भगवान विष्णु राजा बलि के यज्ञ वाले स्थान पर वामन अवतार में पहुंच गए. वहां, मौजूद शुक्राचार्य ने भगवान विष्णु को पहचान लिया था. शुक्राचार्य ने बलि से कहा कि ये ये वामन रूप में विष्णु हैं और ये कुछ भी मांगे इन्हें न देना. लेकिन, राजा बलि ने शुक्राचार्य की बात नहीं मानी और भगवान विष्णु के मांगने पर तीन पग भूमि दान करने के लिए कमंडल से जल लेकर संकल्प के लिए आगे बढ़े. तभी शुक्राचार्य छोटा रूप धारण करके कमंडल में घुस गए. 

 इससे कमंडल से पानी निकलना बंद हो गया. वामन रूप में भगवान विष्णु सब समझ गए. उन्होंने अपने हाथ में रखे कुशा को कमंडल में ऐसे डाला कि शुक्राचार्य की एक आंख फूट गई. तभी शुक्राचार्य कमंडल से बाहर आ गए. इसके बाद बलि ने अपना संपल्प पूरा किया और तीन पर भूमि दान कर दी. वामन रूप में भगवान विष्णु ने एक पैसे से पूरी पृथ्वी और दूसरे पैर से अंतरिक्ष को नाप लिया. 
लेकिन, तीसरा पैर रखने के लिए कोई जगह न बची. ये देख राजा बलि ने अपना सिर वामन देवता के चरणों में रख दिया. बलि दान में सब कुछ खो बैठे. इस तरह देवताओं को बलि के भय से मुक्ति मिली और बलि द्वारा लूटी सभी संपत्ति के साथ और भी धन-दौलत देवताओं को मिल गई. कहते हैं इसी उपलक्ष्य पर धनतेरस मनाया जाता है.