ऐतिहासिक भूमि ‘राजस्थान’ अपने खान-पान और कला-संस्कृति के लिए पूरे विश्व भर में जाना जाता है. दूर-दराज से लोग यहां के शाही अंदाज़, विविधता और प्राचीन धरोहर को देखने के लिए आते हैं. वहीं, यहां की भाषा व बोलियां भी पर्यटकों को काफ़ी ज़्यादा प्रभावित करती हैं. 1956 में कई रियासतों का मिलाकर राजस्थान को एक राज्य के रूप में बनाया गया था. यही वजह है कि यहां विभिन्न तरह की भाषाओं व बोलियों का चलन है. बारीकी से नज़र डालें, तो पता चलता है कि राजस्थानी एक “इंडो-आर्यन” भाषा है और इसकी जड़ें “वेदिक संस्कृत” और “सौरासेनी प्राकृत” से जुड़ी बताई जाती हैं. वैसे क्या आप जानते हैं राजस्थान में कितनी उपभाषाओं का चलन है? अगर नहीं, तो इस लेख को अंत तक ज़रूर पढ़ें. 

(8 Dialects of Rajasthan)आइये, अब क्रमवार राजस्थान की उपभाषाओं पर नज़र डालते हैं. 

1. मारवाड़ी 

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मारवाड़ी राजस्थान की सबसे आम बोली जाने वाली उपभाषा है और इसका ऐतिहासिक नाम “मारू” है. ऐतिहासिक रूप से यह एक महाजनी लिपि थी, लेकिन अब देवनागरी लिपि में लिखी जाती है. मारवाड़ी भाषा राजस्थान के बीकानेर, चूरू, अजमेर, नागौर, पाली, जालौर, जोधपुर, बाड़मेर और जैसलमेर ज़िलों के लोगों द्वारा बोली जाती है. थाली और गोड़वाड़ी मारवाड़ी की “उपबोली” हैं.(8 Dialects of Rajasthan) 

2. धुंधरी

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मारवाड़ी के बाद, धुंधरी या जयपुरी सबसे आम बोले जाने वाली उपभाषा है. इस उपभाषा को जयपुरी या झाड़शाही भी कहते हैं. ये जयपुर के कुछ ज़िलों में, कोटा, अजमेर, बूंदी और किशनगढ़ के कुछ हिस्सों में बोली जाती है. तोरावाटी, नागरचल और राजवती धुंधरी की “उपबोली” हैं.(8 Dialects of Rajasthan)

3. शेखावाटी  

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शेखावाटी एक महत्वपूर्ण राजस्थानी उपभाषा है, जो झुंझुनू, हनुमानगढ़, सीकर और चुरू ज़िलों के लोगों द्वारा बोली जाती है. ये ऐतिहासिक रूप से भी महत्व रखती है. इस उपभाषा का नाम शेखावाटी राजपूतों से लिया गया है. (8 Dialects of Rajasthan)   

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4. हाड़ौती 

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राजस्थान के बहुत से क्षेत्रों में लोग हाड़ौती भी बोलते हैं. इसका प्रयोग मुख्य रूप से बूंदी, कोटा, टोंक व झालावाड़ में किया जाता है. वहीं, मध्य प्रदेश के कुछ हिस्सों में भी हाड़ौती बोली जाती है. ये सभी क्षेत्र मिलकर ऐतिहासिक “हाड़ौती” क्षेत्र का निर्माण करते हैं. इस बोली को इंडो-यूरोपियन परिवार के अंतर्गत वर्गीकृत किया गया है.(8 Dialects of Rajasthan)

5. मेवाती

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 मेवाती का प्रयोग जयपुर के उत्तर-पूर्व में यानी अलवर ज़िले और उसके आसपास के क्षेत्रों में किया जाता है. मूल रूप से मेवाती “मेवात” की बोली है, जो मेवों का घर है. मेवाती ब्रज भाषा के समान है, जो भरतपुर ज़िले में बहुत उपयोग की जाने वाली बोली है. (8 Dialects of Rajasthan)

6. वागड़ी 

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भील एक शेड्यूल ट्राइब कम्युनिटी है और भीली बोलने वाले लोग ख़ुद को वागड़ी भाषा कहते हैं. राजस्थान के अलावा, ये गुजरात, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश में भी बोली जाती है. राजस्थान में सबसे ज़्यादा वागड़ी बोलने वाले ज़िले डूंगरपुर, बांसवाड़ा और उदयपुर हैं.(8 Dialects of Rajasthan)

7. मेवाड़ी

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मेवाड़ी राजस्थान की सबसे प्रमुख उपभाषाओं में से एक है. इस उपभाषा का नाम “मेवाड़” क्षेत्र से लिया गया है. इसलिए, इन जगहों पर “मेवाड़ी” बोली जाती है. मेवाड़ी उदयपुर, चित्तौरगढ़, राजसमंद व भीलवाड़ा में बोली जाती है और मेवाड़ का शुद्ध रूप आपको मेवाड़ के गांवों में ही देखने को मिलेगा. (8 Dialects of Rajasthan)

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8. मालवी 

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मालवा क्षेत्र राजस्थान और मध्य प्रदेश में फैला हुआ है. इन क्षेत्रों के निवासी “मालवी” बोली का प्रयोग करते हैं. मालवी राजस्थान के झालावाड़, कोटा और प्रतापगढ़ के ज़िलों में बोली जाती है. वहीं, मध्यप्रदेश के मालवा, नीमच, मंदसौर, रतलाम और उज्जैन में भी इसका प्रयोग किया जाता है. रजवाड़ी, दशोरी, उमठवाड़ी, रांगड़ी और भंसावर मालवी की “उपबोली” हैं. (8 Dialects of Rajasthan)