ऑपरेशन थिएटर (Operation Theatre) वो जगह होती है जहां से इंसान को दूसरी ज़िंदगी मिलती है. इस दौरान डॉक्टर मरीज़ के लिए फ़रिश्ते बनकर आते हैं और उसकी जान बचा लेते हैं. ‘ऑपरेशन थिएटर’ को हिंदी में ‘शल्य चिकित्सा प्रेक्षागार’ या ‘शल्य चिकित्सा रंगमंच’ भी कहते हैं. लेकिन क्या आपने कभी ये जानने की कोशिश की कि ‘ऑपरेशन रूम’ को ‘ऑपरेशन थिएटर’ क्यों कहा जाता है? आख़िर इसमें ‘थिएटर’ शब्द का इस्तेमाल क्यों किया जाता है?

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20वीं सदी में ऑपरेशन या सर्जरी बेहद मुश्किल काम माना जाता था. इस दौरान मरीज़ को बिना बेहोश किए ऑपरेशन से गुज़रना पड़ता था. 21वीं सदी में भले ही चीज़ें आसान हो गई हों, लेकिन मुश्किलें अब भी हैं. हालांकि, सर्जरी के दौरान पहले भी मरीज़ की जान हर वक़्त ख़तरे में रहती थी और आज भी रहती है.

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दरअसल, 20वीं सदी की शुरुआत से ही अस्पतालों में ‘ऑपरेशन थिएटर’ हूबहू ‘फ़िल्म थिएटर’ की तरह बनाए जाते थे. ऐसा इसलिए क्योंकि उस दौर में मेडिकल के छात्रों और नर्सों को सर्जरी देखने के लिए आमंत्रित किया जाता था. सर्जरी किस तरह से होती है ये देखने के लिए लोग ‘ऑपरेशन थिएटर’ जाते थे. दर्शकों के बैठने के लिए बाक़ायदा सीटें बनी होती थीं. इस दौरान ऐसा लगता था मानो लोग सर्जरी नहीं, कोई फ़िल्म देख रहे हों.

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इसके पीछे का एक कारण ये भी था कि उस दौर में जब किसी नौसिखिए डॉक्टर को सर्जरी की ज़िम्मेदारी दी जाती थी, तब ‘विशेष चिकित्सा दल’ के लिए प्रेक्षागार में बैठने की व्यवस्था की जाती थी. इस दौरान पेशेवर और अनुभवी डॉक्टरों का ये दल इनकी ग़लतियों पर नज़र रखता था. हालांकि, ऑपरेशन दौरान जूनियर डॉक्टरों के साथ एक सीनियर डॉक्टर भी होता.

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ऑपरेशन के दौरान सबसे हैरान करने वाली बात ये होती थी कि इस पूरी प्रकिया को देखने के लिए हॉस्पिटल के बाहर के मेडिकल छात्रों व नर्सों को भी आमंत्रित किया जाता था. वो दर्शक दीर्घा में बैठकर ये सब देखते थे. शरुआती दिनों में ‘ऑपरेशन थिएटर’ में दर्शक दीर्घा केवल ‘विशेष चिकित्सा दल’ के लिए होती थी, लेकिन समय के साथ इसका आकार बड़ा होने लगा और इसमें बाहरी लोगों को भी बैठने की इजाज़त मिलने लगी. हालांकि, ऐसा हर मरीज़ के मामले में नहीं होता था.

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20वीं सदी से ही ‘ऑपरेशन रूम’ को ‘ऑपरेशन थिएटर’ कहा जा रहा है. हालांकि, आज के दौर में ‘ऑपरेशन थिएटर’ में केवल डॉक्टर और सहयोगी दल ही जा सकता है. 

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