1933 से 1945 तक नाज़ियों ने अपने यातना शिविरों में लाखों लोगों को मौत के घाट उतारा था. इन यातना शिविरों का नाम सुन आज भी कुछ लोग कांप उठते हैं. इनमें से एक भारतीय शख़्स भी था जिसे नाज़ियों ने गोली मार कर उसकी हत्या की थी. कहते हैं वो एक मात्र भारतीय था जिसे नाज़ियों ने यातना शिविर में मार डाला था.

ये कौन था और क्यों उसे नाज़ियों ने मारा इसकी कहानी आज हम आपको बताएंगे. 

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इस शख़्स का नाम था. M. Madhavan जो एक मलयाली था और केरल के माहे का रहने वाला था. वो थिया समुदाय से ताल्लुक रखता था. माधवन जिस फ़्रेच कॉलोनी में रहते थे वहां पर 1934 दलित समुदाय के उत्थान के लिए महात्मा गांधी भी पहुंचे थे. उन्होंने वहां ‘हरिजन सेवक संघ’ की स्थापना की जो दलितों को उच्च शिक्षा पाने और मंदिरों तक पहुंच बनाने में मदद करते थे.

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महात्मा गांधी के साथ किया काम

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माधवन भी इस संघ के सदस्य थे. उन्होंने इसके ज़रिये दलितों की ख़ूब मदद की. यही नहीं गांधी जी के साथ मिलकर उन्होंने दलितों को अंग्रेज़ों से आज़ादी पाने की अलख जगाने का भी काम किया. 1937 में माधवन उच्च शिक्षा हासिल करने पेरिस चले गए. इस दौरान वो Sorbonne University के हॉस्टल में रहे. तभी नाज़ियों ने फ़्रांस पर हमला कर दिया.

फ़्रांसीसी कम्युनिस्ट पार्टी के थे मेंबर

माधवन फ़्रांसीसी कम्युनिस्ट पार्टी के मेंबर थे और नाज़ियों के धुर विरोधी. इसलिए उन्हें भी गिरफ़्तार कर एक यातना शिविर में पहुंचा दिया गया. उनके साथ एक और कै़दी था जो नाज़ियों से बच निकला था. उसने अपनी डायरी में लिखा कि वो चाहते तो नाज़ियों के भारतीय होने का सबूत देकर आराम से बच सकते थे, मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया. माधवन को भी दूसरे लोगों की तरह Mont-Valerien में एक पोल से बांध गोली मार दी गई.

नाज़ियों की गोली का शिकार बनने वाले एकमात्र भारतीय  

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कै़द में रहने के दौरान वो भी फ़्रांसीसियों के साथ La Marseillaise फ़्रांसीसी राष्ट्रगान गाया करते थे. उनके बारे में बहुत कम लोग ही जानते हैं. इतिहासकारों का मानना है कि वो नाज़ियों के अत्याचार के शिकार हुए संभवत: पहले और एकमात्र भारतीय थे. गौरतलब है कि, प्रसिद्ध जासूस, नूर इनायत ख़ान, जिसे 1944 में नाज़ियों के फ़ायरिंग दस्ते ने मार डाला था, उनका जन्म मास्को में हुआ था.

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माधवन का नाम मेमोरियल ऑफ़ फ़ाइटिंग फ़्रांस(Mémorial de la France Combattante) में भी अंकित है. माहे(केरल) और बाद में फ़्रांस के लोगों के साथ खड़े होकर अत्याचारियों का सामना करने वाले इस भारतीय के योगदान को भुलाया नहीं जा सकता.