दिल्ली में बहुत सारे मक़बरे देखे होंगे, जो उस्मानी सल्तनत और मुगल काल के शासकों के हैं. इन्हीं शासकों में से कुछ शासक थे, बादशाह सुलेमान और शाहजहां, जिन्होंने अपने ज़िंदा रहते ही अपने मक़बरे को बनवा लिया था. ऐसा ही एक और बादशाह था, गयासुद्दीन तुग़लक़. इन्होंने भी अपने ज़िंदा रहते ही क़ुतुब-बदरपुर सड़क पर ख़ुद के लिए ‘दारूल अमन’ यानि ‘शांति का आवास’ नाम का मक़बरा बनवाया था. दिल्ली के तुग़लक़ाबाद क़िले के सामने ये ख़ूबसूरत सा मक़बरा बना है. इसे गयासुद्दीन तुग़लक़ ने 1328 ईसवीं में बनवाया था.

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अगर बात की जाए मक़बरे की ख़ूबसूरती और बनावट की तो, इस मक़बरे को ऊंचे-ऊंचे झुकावदार पत्थरों से एक जलाशय के बीच में बना है. लाल बलूआ पत्थरों के विशाल दरवाज़े से घुसते ही सीढ़ियां हैं, जिससे मक़बरे में प्रवेश किया जाता है. मक़बरे और तुग़लक़ाबाद क़िले के बीच में सड़क बनने से पहले ये मक़बरा क़िले में ही आता था. ये मक़बरा 8 मीटर तक लाल बलुआ पत्थर की दीवारों और कंगूरों से घिरा है. इसके ऊपर सफ़ेद संगमरमर का गुंबद बना है, जिसे अष्टभुजाकार ढोल पर बनाया गया है. इसके मेहराबों के किनारे पर जालीदार संगमरमर के पर्दे लगे हुए हैं.

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इतिहासकारों का मानना है कि, इस मक़बरे के अंदर तीन कब्रें बनी हैं, जिसमें एक गयासुद्दीन तुग़लक़ की है तो बाकी दो उसके बेग़म और बेटे मुहम्मद बिन तुग़लक़ की है. इसके अलावा मक़बरे के उत्तर-पश्चिमी बुर्ज में दक्षिणी दरवाज़े के ऊपर एक अष्टभुजाकार मक़बरा भी है, जिसके पत्थर पर कुछ लिखा है उसके अनुसार, वो मक़बरा दिल्ली सल्तनत के मशहूर जनरल ज़फ़र ख़ां का है, जहां उसे दफ़नाया गया था, जिसने बहुत सारी लड़ाइयां जीती थीं. ज़फ़र ख़ां इतना ख़ौफ़नाक़ जनरल था कि उसके बारे में कहा जाता है कि उसका नाम सुनकर मंगोलों के घोड़े भी पानी नहीं पीते थे कहीं ज़फ़र ख़ां देख तो नहीं रहा. 

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कुछ इतिहासकारों की मानें तो, ज़फ़र ख़ां का मक़बरा यहां पहले से बना था जिसपर बाद में गयासुद्दीन ने अपना मक़बरा बनवाया और उसका नाम ‘दारूल अमन’ लिखवाया. हांलाकि, गयासुद्दीन तुग़लक़ दिल्ली सल्तनत में 1320 में तुग़लक़ वंश का शासक बना था. इसने 29 बार मंगोलों के आक्रमण को विफ़ल कर दिया था. इसे गाज़ी मलिक या तुग़लक़ गाज़ी के नाम से भी जाना जाता था.

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आपको बता दें, गयासुद्दीन तुग़लक़ के पिता का नाम करौना तुर्क ग़ुलाम था, जो भारत में नहरों का निर्माण करवाने वाला पहला सुल्तान था. करौना तुर्क ग़ुलाम ने ही तुग़लक़ाबाद क़िले को बनवाना शुरू किया था. साथ ही इसके ही शासनकाल में दक्षिण के राज्यों को पहली बार दिल्ली सल्तनत में मिलाया गया था.