Baijnath Temple, Madhya Pradesh. अंग्रेज़ों ने वर्षों तक हम भारतीयों पर राज किया. सैंकड़ों वर्षों तक सोने की चिड़िया कहलाने वाला ये देश, ग़ुलामी के जंजीरों में क़ैद रहा. अंग्रेज़ों न सिर्फ़ हमारी संपत्ति लूटी बल्कि हमारी संस्कृति को भी नुक़सान पहुंचाया. यूं तो बहुत से विदेशी शासकों ने भारत पर आक्रमणि किया लेकिन सभी ने किसी न किसी तरह से भारतीय संस्कृति को अपनाया, बदलाव किये. अंग्रेज़ कभी भारत का हिस्सा नहीं बन पाये, वे हमेशा ख़ुद को उत्कृष्ट और बाक़ी देशों को ‘जंगली’ या ‘संस्कृति विहीन’ ही समझते थे.
भारत में मिशनरी (Missionaries) ने अंग्रेज़ी तौर-तरीक़े और ईसाई धर्म का प्रचार-प्रसार किया. भारत में कई Cathedrals और गिरजाघरों का निर्माण किया. अंग्रेज़ों ने भारतीयों या भारतीयता को कभी नहीं अपनाया. कुछ ऐसे अंग्रेज़ थे जिन्हें भारतीय संस्कृति भली लगी, और ऐसे ही एक अंग्रेज़ ने भारत में मंदिर का निर्माण किया. ये मंदिर इकलौता मंदिर है जिसे किसी अंग्रेज़ ने बनवाया था.
मध्य प्रदेश के ज़िला अगर मालवा (Agar Malwa) में है बैजनाथ मंदिर जिसे 1883 में एक अंग्रेज़ दम्पति ने बनवाया था. एक लेख की मानें तो अंग्रेज़ Lieutenant Colonel C.Martin अफ़गानों से युद्ध करने गया था और सही सलामत लौट आया. अंग्रेज़ का कहना था कि महादेव ने योगी का भेष बनाकर उसकी रक्षा की थी. Lieutenant Colonel Martin मध्य भारत में पोस्टेड थे और उन्हें अफ़गानों को सबक सिखाने के लिये बॉर्डर पर भेजा गया था.
Lieutenant Colonel Martin युद्ध क्षेत्र से अपनी पत्नी को चिट्ठियां लिखते लेकिन एक दिन अचानक चिट्ठियां आना बंद हो गई. बॉर्डर पर अफ़गान, अंग्रेज़ों पर भारी पड़ रहे थे. Martin की पत्नी की चिंतायें बढ़ने लगी. एक दिन वो बैजनाथ मंदिर के पास से गुज़र रही थी, शंख और घंटियों की आवाज़ सुनकर वो मंदिर के भीतर पहुंची. मंदिर की स्थिति ठीक नहीं थी. अंदर मौजूद ब्राह्मणों को उसने अपनी समस्या बताई. ब्राह्मणों ने उससे कहा कि भगवान शिव सबकी सुनते हैं और भक्तों के कष्ट हर लेते हैं. ब्राह्मणों ने उसे 11 दिनों तक ‘लघुरूद्री अनुष्ठान’ करने को कहा.
कहते हैं कि अंग्रेज़ की पत्नी ने भगवान शिव से मन्नत मांगी थी कि अगर उसका पति लौट आया तो वो शिव मंदिर को दोबारा बनवायेगी. अनुष्ठान के 11वें दिन उसे अपने पति की चिट्ठी मिली और उसे पता चला कि अंग्रेज़ युद्ध जीत गये और उसका पति सही-सलामत है.
बैजनाथ मंदिर के अंदर एक पत्थर पर ये सब लिखा हुआ है. स्थानीय लोग भी इस कहानी को सच्ची बताते हैं.
Sources- The New Indian Express, The Speaking Tree, Agar Malwa