होमी व्यारावाला (Homai Vyarawalla) का जन्म 9 दिसंबर 1913 को गुजरात के नवसारी में एक मध्यवर्गीय पारसी परिवार में हुआ था. होमी के पिता पारसी उर्दू थियेटर में अभिनेता थे. इसके बाद उनका परिवार मुंबई आ गया. मुंबई में ही उन्होंने स्कूली शिक्षा के अपने दोस्त मानेकशाॉ व्यारावाला से फ़ोटोग्राफ़ी सीखे. इसलके बाद उन्होंने मुंबई के मशहूर ‘जे.जे. स्कूल ऑफ़ आर्ट’ में दाखिला ले लिया.

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भारत की पहली महिला फ़ोटो जर्नलिस्ट

भारत की पहली महिला फ़ोटो जर्नलिस्ट माना जाता है. उन्हें आज भी पूरी दुनिया ‘डालडा 13’ के नाम से जानती है. होमी ने बतौर फ़ोटो जर्नलिस्ट अपने करियर की शुरूआत 1930 में की थी. वो 1970 तक इस फ़ील्ड में रही. इस दौरान उन्होंने देश विदेश में खूब नाम कालमाया. होमी की विशिष्ट उपलब्धियों को देखते हुए 2011 में भारत के दूसरे सबसे बड़े नागरिक सम्मान ‘पद्म विभूषण’ से सम्मानित किया गया था.

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बता दें कि बतौर फ़ोटो जर्नलिस्ट होमी की पहली तस्वीर ‘बॉम्बे क्रॉनिकल’ में प्रकाशित हुई. इस दौरान उन्हें एक तस्वीर के लिए 1 रुपया बतौर पारिश्रमिक मिलता था. इसके बाद होमी ‘टाइम्स ऑफ़ इंडिया’ में बतौर फ़ोटो जर्नलिस्ट काम करने वाले मानेकशाॉ जमशेतजी व्यारावाला से शादी कर पति के साथ दिल्ली आ गईं और ‘ब्रिटिश सूचना सेवा’ में नौकरी करने लगी. इस दौरान उन्होंने ‘स्वतंत्रता आंदोलन’ की तस्वीरें खींचना शुरू कर दिया.

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दिल्ली आते ही होमी को उनके असाधारण काम की वजह से राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिलने लगी. सन 1942 के ‘भारत छोड़ो आंदोलन’ के दौरान होमी, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और मुहम्मद अली जिन्ना की कई यादगार तस्वीरें खींचकर चर्चा में रही. इसके बाद ‘द्वितीय विश्व युद्ध’ के दौरान उन्होंने ‘इलेस्ट्रेटिड वीकली ऑफ़ इंडिया मैगज़ीन’ के लिए काम करना शुरू किया जो 1970 तक चला. इस दौरान की उनकी कई तस्वीरें आज भी चर्चित हैं.  

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‘डालडा-13’ नाम के पीछे थी ये वजह  

होमी की अधिकतर तस्वीरें उनके उपनाम ‘डालडा-13’ के नाम से प्रकाशित होती थीं. 13 होमी का लकी नंबर था. इस नाम के पीछे भी एक रोचक वाकया है. दरअसल, होमी का जन्म 1913 में हुआ था, अपने होने वाले पति से उनकी पहली मुलाक़ात 13 साल की उम्र में हुई थी. इसके अलावा उनकी पहली कार का नंबर प्लेट ‘डी.एल.डी 13’ था. इसी ‘डी.एल.डी 13’ की वजह से होमी का नाम ‘डालडा-13’ पड़ा.

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क्या उपलब्धियां थी होमी की? 

होमी ने अपनी तस्वीरों के माध्यम से राष्ट्र के तत्कालीन सामाजिक तथा राजनैतिक जीवन को दिखाने का काम किया था. 16 अगस्त 1947 को लाल क़िले पर पहली बार तिरंगा फ़हराना, भारत से लॉर्ड माउन्टबेटन का प्रस्थान, महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और लाल बहादुर शास्त्री की अंतिम यात्रा की सभी तस्वीरें होमी ने ही खींची थीं.  

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भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सिगरेट पीने वाली तस्वीर हो या फ़िर उनके द्वारा भारत में तत्कालीन ब्रिटिश उच्चायुक्त की पत्नी सुश्री सिमोन की मदद करना. जवाहर लाल नेहरू की जितनी भी तस्वीरें आज हम देख पा रहे हैं वो सभी होमी व्यारावाला द्वारा खींची गई थीं. 

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सन 1970 में पति के निधन के बाद होमी व्यारावाला ने पत्रकारिता छोड़ दी. इसके बाद 1982 में वो अपने बेटे फ़ारूख के पास राजस्थान के पिलानी में चली गई. फ़ारूख पिलानी के ‘बिड़ला प्रौद्योगिकी एवं विज्ञान संस्थान (बिट्स)’ में पढ़ाई कर रहा था. लेकिन सन 1989 में कैंसर से बेटे की मौत के बाद होमी एक बार फिर अकेली हो गईं. बाद का जीवन उन्होंने अकेलेपन में वडोदरा के एक छोटे से घर में बिताया. इसके बाद 15 जनवरी 2012 होमी व्यारावाला का देहांत हो गया.